

भारत में बदलते सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य के बीच अब कई युवा पुरुष शादी से दूरी बना रहे हैं। जानिए क्या कारण हैं कि भारतीय पुरुष अब विवाह को टालने या उससे डरने लगे हैं।
शादी से दूरी
New Delhi: भारतीय समाज में लंबे समय से यह मान्यता रही है कि एक निश्चित उम्र के बाद पुरुषों को विवाह करना ही चाहिए। लेकिन अब यह धारणा धीरे-धीरे बदल रही है। आज के कई भारतीय पुरुष शादी को लेकर उत्साहित नहीं हैं। मजाक में इसे “कमिटमेंट से डर” कहा जाता है, लेकिन इसके पीछे कुछ गंभीर सामाजिक, मानसिक और आर्थिक कारण छिपे हैं।
शादी नहीं, शादी के बाद की ज़िंदगी से डर
अक्सर देखा गया है कि युवा पुरुष अपने पिता, चाचाओं या विवाहित दोस्तों की ज़िंदगी से प्रेरित होकर विवाह से दूर रहना चाहते हैं। उन्होंने अपने करीबी लोगों को जिम्मेदारियों के बोझ में झुकते देखा है और उनके मन में यह डर बैठ जाता है कि क्या शादी के बाद वे अपनी पहचान और आज़ादी खो देंगे?
बढ़ती उम्मीदें और आर्थिक दबाव
वर्तमान समय में विवाह सिर्फ एक सामाजिक संस्था नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी भरा सौदा बन चुका है। पुरुषों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपने परिवार को आर्थिक रूप से मजबूत रखें, अच्छी ज़िंदगी दें और हर सुविधा मुहैया कराएं। बढ़ती महंगाई, नौकरी की अनिश्चितता और सामाजिक दबाव पुरुषों को भीतर से डरा देते हैं।
फ्रीडम का खत्म होना
आज का युवा अपनी स्वतंत्रता को सर्वोपरि मानता है। वह अपने निर्णय खुद लेना चाहता है, करियर, दोस्तों और शौकों को महत्व देता है। ऐसे में शादी एक बंधन जैसी लगती है, जिसमें व्यक्तिगत आज़ादी सीमित हो जाती है।
तलाक और कानूनी परेशानियां
विवाह टूटने के मामले भी युवाओं में डर पैदा कर रहे हैं। तलाक की प्रक्रिया, गुजारा भत्ता, कानूनी लड़ाइयां और सामाजिक बदनामी ऐसे कारण हैं जो पुरुषों को विवाह से दूर रखते हैं। वे नहीं चाहते कि भावनात्मक और आर्थिक रूप से वे किसी ऐसे झंझट में फंसे जो उनकी ज़िंदगी को अस्त-व्यस्त कर दे।
करियर पहले, शादी बाद में
कॉम्पिटिशन के इस दौर में युवा पुरुष पहले अपने करियर को स्थापित करना चाहते हैं। उनका मानना है कि शादी बाद में भी हो सकती है, लेकिन अगर करियर में समय गंवा दिया तो भविष्य असुरक्षित हो सकता है। इसलिए वे पहले खुद को सशक्त बनाना चाहते हैं।
भावनात्मक संकोच
समाज में पुरुषों को अपनी भावनाएं ज़ाहिर करने की आज़ादी कम मिलती है। कई बार वे खुद को अकेला महसूस करते हैं, लेकिन सामाजिक अपेक्षाओं के चलते वे खुलकर बात नहीं कर पाते। उन्हें डर होता है कि शादी में उनकी भावनात्मक ज़रूरतें नज़रअंदाज़ की जाएंगी।