

हिंदू धर्म में जूठे भोजन को अशुद्ध बताया गया है, लेकिन क्या यह नियम पति-पत्नी पर भी लागू होता है? जानिए शास्त्रों, पुराणों और धर्मग्रंथों में क्या लिखा है इस परंपरा के पीछे की सच्चाई के बारे में।
जूठा खाना परंपरा है या अंधविश्वास
New Delhi: हिंदू धर्म में भोजन केवल शरीर की भूख मिटाने का माध्यम नहीं, बल्कि यह संस्कार, शुद्धता और आचरण से भी जुड़ा हुआ माना गया है। भोजन को 'अन्न ब्रह्म' कहा गया है, अर्थात् अन्न में ईश्वर का वास होता है। ऐसे में जूठा भोजन खाना या किसी का बचा हुआ खाना ग्रहण करना सदैव शास्त्रों में निषिद्ध बताया गया है। लेकिन जब बात पति-पत्नी के रिश्ते की आती है, तो सवाल उठता है- क्या पति-पत्नी एक-दूसरे का जूठा खाना खा सकते हैं? क्या यह धार्मिक दृष्टि से सही है? आइए जानते हैं शास्त्रों, पुराणों और परंपराओं में इस विषय पर क्या कहा गया है।
'मनुस्मृति', 'गरुड़ पुराण' और 'अग्नि पुराण' जैसे धर्मग्रंथों में स्पष्ट उल्लेख है कि जूठा भोजन अशुद्ध होता है। इसका कारण केवल धार्मिक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक भी है। जूठे भोजन में व्यक्ति के लार (Saliva) के माध्यम से अनेक बैक्टीरिया और सूक्ष्म जीवाणु प्रवेश करते हैं, जो दूसरे व्यक्ति के शरीर में जाने पर रोग उत्पन्न कर सकते हैं। इसलिए इसे अशुद्ध माना गया। शास्त्रों के अनुसार, जूठा भोजन करने से मन की पवित्रता भी प्रभावित होती है, क्योंकि भोजन से व्यक्ति के संस्कार, भावनाएं और ऊर्जा का आदान-प्रदान होता है।
अब बात आती है पति-पत्नी की। विवाह के बाद हिंदू शास्त्रों में पति-पत्नी को 'अर्धांगिनी' और 'अर्धांग' कहा गया है- यानी एक शरीर और दो आत्माएं। इस दृष्टिकोण से कई ग्रंथों में यह माना गया है कि पति-पत्नी का एक-दूसरे का जूठा खाना अशुद्ध नहीं होता, बल्कि उनके आपसी स्नेह, विश्वास और प्रेम का प्रतीक माना गया है।
मनुस्मृति में कहा गया है- "पत्नी और पति का परस्पर भोजन करना प्रेम की वृद्धि और एकात्मता का द्योतक है।" अर्थात, पति-पत्नी का एक-दूसरे का जूठा खाना उनके बीच आत्मीयता और भावनात्मक जुड़ाव को दर्शाता है।
भट्ट धर्म ग्रंथ में उल्लेख है कि पति-पत्नी का जूठा खाना तभी स्वीकार्य है जब यह स्नेहपूर्वक और सहमति से किया जाए। यह धार्मिक नियमों का उल्लंघन नहीं, बल्कि संबंधों की मधुरता का प्रतीक है।
प्रतीकात्मक छवि (फोटो सोर्स-इंटरनेट)
विष्णु पुराण और भागवत पुराण के अनुसार, पति-पत्नी के बीच प्रेम और समर्पण सर्वोपरि होता है। यदि दोनों के बीच सच्चा प्रेम है और उनके मन में कोई अपवित्रता नहीं है, तो एक-दूसरे का जूठा खाना पवित्र भाव से किया गया कार्य माना जाता है। हालांकि, इसे नियमित आदत के रूप में नहीं अपनाने की सलाह दी गई है। शास्त्रों में स्पष्ट लिखा है कि प्रेम के भाव में किया गया यह कर्म पवित्र हो सकता है, लेकिन लापरवाही या अंधविश्वास के कारण ऐसा करना अनुचित है।
भारत के कई ग्रामीण और पारंपरिक परिवारों में आज भी यह प्रथा देखने को मिलती है कि पत्नी अपने पति की थाली में से ही भोजन करती है। इस परंपरा के पीछे यह मान्यता है कि पति की थाली से खाना पत्नी के समर्पण और आदर का प्रतीक है। हालांकि, आधुनिक समाज में इस परंपरा को कई लोग असमानता और रूढ़िवादिता से भी जोड़ते हैं। आज की महिलाएं बराबरी का स्थान चाहती हैं और अपने सम्मान को सर्वोपरि मानती हैं।
बॉलीवुड की फिल्म "Mrs." में भी इसी विषय को उठाया गया था, जिसमें अभिनेत्री सान्या मल्होत्रा का किरदार अपने पति की जूठी थाली में खाना खाता है। यह दृश्य उस सामाजिक सोच को दर्शाता है जो परंपरा और आधुनिकता के बीच झूल रही है।
आज के युग में विज्ञान और स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से जूठा भोजन खाना उचित नहीं माना जाता। पति-पत्नी के बीच प्रेम दिखाने के कई और तरीके हैं- जैसे साथ भोजन करना, एक-दूसरे के हाथ से पहला निवाला खाना आदि। इससे न केवल प्रेम की अभिव्यक्ति होती है बल्कि स्वच्छता भी बनी रहती है।
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