

हिंदू धर्म में सूतक काल को अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र समय माना जाता है, जो सूर्य या चंद्र ग्रहण से पहले और उसके दौरान लागू होता है। यह काल अशुभ और अशुद्ध माना जाता है, जिसमें पूजा-पाठ, भोजन और शुभ कार्यों पर रोक होती है। इस लेख में जानिए सूतक की गणना, इसके पीछे का वैज्ञानिक आधार और धार्मिक मान्यताएं।
प्रतीकात्मक तस्वीर (सोर्स- गूगल)
New Delhi: सूतक काल एक ऐसा विशेष समय है जो सूर्य या चंद्र ग्रहण से पहले और ग्रहण की समाप्ति तक माना जाता है। हिंदू धर्म और ज्योतिष शास्त्रों में इसे अशुभ समय माना गया है। इस दौरान व्यक्ति को पूजा-पाठ, खाना पकाना, खाना खाना, शुभ कार्यों को करना आदि से बचने की सलाह दी जाती है। धार्मिक मान्यता है कि इस समय देवता भी "कष्ट" में होते हैं, इसलिए मंदिरों के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। यह एक ऐसा समय है जो व्यक्ति को आत्म-चिंतन, मौन और संयम की ओर प्रेरित करता है।
ग्रहण में सूतक की गणना कैसे होती है?
ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास के अनुसार, सूतक काल की गणना ग्रहण के दिन और समय के आधार पर की जाती है।
• सूर्य ग्रहण: ग्रहण से 12 घंटे पहले सूतक शुरू हो जाता है।
• चंद्र ग्रहण: ग्रहण से 9 घंटे पहले सूतक लगता है।
• जैसे ही ग्रहण समाप्त होता है, सूतक काल भी समाप्त हो जाता है।
इस गणना का उद्देश्य व्यक्ति को ग्रहण से जुड़ी ऊर्जा परिवर्तन और नकारात्मक प्रभावों से बचाना होता है।
सूतक मानना क्यों जरूरी है?
सूतक काल का पालन करना धार्मिक, सामाजिक और वैज्ञानिक तीनों दृष्टिकोणों से आवश्यक है।
• धार्मिक रूप से, यह समय पवित्रता बनाए रखने का प्रतीक है।
• सामाजिक रूप से, यह नियम समुदाय में अनुशासन और एकरूपता बनाए रखने में सहायक हैं।
• वैज्ञानिक दृष्टि से, यह माना जाता है कि ग्रहण के समय सूर्य और चंद्रमा की किरणों में बदलाव से पृथ्वी पर बैक्टीरिया की वृद्धि होती है।
इसी कारण भोजन में तुलसी के पत्ते डालने की परंपरा है और इस दौरान भोजन पकाने और खाने की मनाही होती है।
गर्भवती महिलाओं के लिए विशेष निर्देश
गर्भवती महिलाओं को सूतक काल के दौरान खास सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है। धार्मिक मान्यता है कि इस समय कोई भी नकारात्मक ऊर्जा गर्भस्थ शिशु को प्रभावित कर सकती है। उन्हें घर के भीतर रहने, नुकीली चीजों का उपयोग न करने, और विशेष मंत्रों का जाप करने की सलाह दी जाती है।