

भगवान जगन्नाथ की अधूरी मूर्ति और बड़ी आंखों का रहस्य पौराणिक कथाओं और आध्यात्मिक संदेशों से भरा है। आईये जानते हैं इन्हीं पौराणिक रहस्यमयी कथाओं के बारे में
जगन्नाथ रथ यात्रा (सोर्स-ट्वीटर)
New Delhi: हिन्दू धर्म में भगवान जगन्नाथ का स्वरूप केवल एक मूर्ति नहीं, बल्कि भक्ति, रहस्य और आध्यात्मिकता का अनूठा संगम है। उनकी बड़ी-बड़ी गोल आंखें और बिना हाथ-पैर का अनोखा रूप हर भक्त के मन में कौतूहल जगाता है। यह स्वरूप न केवल दृश्य रूप से अनूठा है, बल्कि इसके पीछे छिपी पौराणिक कथाएं और गहरे अर्थ इसे और भी विशेष बनाते हैं। आइए, जानते हैं भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों के इस रहस्यमय स्वरूप की कहानी।
बड़ी आंखों का आध्यात्मिक रहस्य
भगवान जगन्नाथ की विशाल गोल आंखों के पीछे एक भावुक कथा जुड़ी है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब श्रीकृष्ण द्वारका में थे, तब माता रोहिणी वृंदावन की रासलीलाओं की कथा सुना रही थीं। श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा दरवाजे के पास खड़े होकर यह कथा सुन रहे थे। कथा इतनी मधुर थी कि तीनों भाई-बहन प्रेम और विस्मय में डूब गए और उनकी आंखें आश्चर्य से फैल गईं। तभी नारद मुनि ने उन्हें इस रूप में देखा और प्रार्थना की कि यह दिव्य स्वरूप भक्तों के लिए अमर हो जाए। भगवान ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और तभी से जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां इस रूप में पूजी जाती हैं। यह स्वरूप भक्तों को सिखाता है कि भगवान का प्रेम और भक्ति ही उनकी सच्ची पहचान है।
अधूरी मूर्तियों की पौराणिक कथा
जगन्नाथ की अधूरी मूर्तियों की कहानी भी कम रोचक नहीं है। कथानुसार, जब श्रीकृष्ण ने देह त्यागी, तो उनका हृदय दाह संस्कार में भी नहीं जला। पांडवों ने उसे पवित्र नदी में प्रवाहित कर दिया, जो एक लकड़ी के लट्ठे का रूप ले चुका था। भगवान ने राजा इंद्रद्युम्न को स्वप्न में इस लट्ठे से मूर्तियां बनाने का आदेश दिया। तब भगवान विश्वकर्मा एक वृद्ध बढ़ई के रूप में आए और मूर्तियां बनाने का कार्य शुरू किया।
उनकी शर्त थी कि 21 दिन तक कोई उन्हें न देखे। लेकिन 14वें दिन रानी गुंडिचा की उत्सुकता के कारण दरवाजा खोल दिया गया। विश्वकर्मा गायब हो गए और मूर्तियां अधूरी रह गईं। जगन्नाथ और बलभद्र के छोटे हाथ बने, पर पैर नहीं और सुभद्रा की मूर्ति बिना हाथ-पैर की रही। राजा ने इसे भगवान की इच्छा मानकर इन्हीं मूर्तियों को मंदिर में स्थापित किया।
यह अधूरा स्वरूप हमें सिखाता है कि भगवान की पूजा में पूर्णता की आवश्यकता नहीं, बल्कि श्रद्धा और विश्वास ही पर्याप्त हैं। जगन्नाथ का यह रूप भक्तों को प्रेम और समर्पण का संदेश देता है। आज भी पुरी के जगन्नाथ मंदिर में ये मूर्तियाँ करोड़ों भक्तों के लिए आस्था का केंद्र हैं।
डिस्क्लेमर: डाइनामाइट न्यूज़ इस लेख की पुष्टि नहीं करता, दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं, ज्योतिष, पंचांग, धार्मिक ग्रंथों आदि पर आधारित हैं।