हार्मोनल असंतुलन और बिगड़ी लाइफस्टाइल!: महिलाओं की फर्टिलिटी में तेजी से गिरावट, जानें क्या हैं मुख्य कारण?

आज भी भारतीय समाज में महिला की प्रजनन क्षमता यानी फर्टिलिटी पर खुलकर बात करना एक वर्जित विषय बना हुआ है। जबकि सच्चाई यह है कि बदलती जीवनशैली, तनाव, हार्मोनल असंतुलन और देर से शादी जैसे कारणों के चलते महिलाओं की फर्टिलिटी में गिरावट तेजी से बढ़ रही है। यह रिपोर्ट बताती है कि आखिर फर्टिलिटी क्यों घट रही है, समाज की सोच इसमें कैसे रुकावट बन रही है और महिलाएं किन कदमों से समय रहते जागरूक हो सकती हैं।

Post Published By: Asmita Patel
Updated : 24 July 2025, 11:38 AM IST
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New Delhi: 21वीं सदी में कदम रखने के बावजूद ‘बांझपन’ जैसे मुद्दे पर समाज में खुलकर बातचीत नहीं होती। शादी के कुछ समय बाद बच्चा न होना आज भी महिला की ‘कमजोरी’ मान लिया जाता है। सामाजिक दबाव, पारिवारिक अपेक्षाएं और मानसिक थकावट, इस विषय को और जटिल बना देते हैं।

तेजी से घट रही है महिलाओं की फर्टिलिटी

WHO की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया भर में करीब 18.6 करोड़ लोग किसी न किसी रूप में बांझपन का सामना कर रहे हैं। भारत में प्राइमरी इंफर्टिलिटी की दर 3.9% से लेकर 16.8% तक है। कुछ राज्यों जैसे कश्मीर, केरल और आंध्र प्रदेश में यह आंकड़ा और भी अधिक है।

देर से शादी और करियर प्रायॉरिटी का असर

महिलाएं आज आत्मनिर्भरता और करियर को प्राथमिकता दे रही हैं, लेकिन इसका असर उनकी बायलॉजिकल क्लॉक पर पड़ रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, 35 की उम्र के बाद अंडाणुओं की क्वालिटी और संख्या में गिरावट शुरू हो जाती है और 40 के बाद यह गिरावट और तेज हो जाती है।

घट रही है महिलाओं की फर्टिलिटी

बदलती जीवनशैली और हार्मोनल समस्याएं

थायरॉइड, पीसीओएस, मोटापा और अनियमित पीरियड्स जैसी स्थितियां महिलाओं की फर्टिलिटी को बुरी तरह प्रभावित करती हैं। लगातार तनाव, नींद की कमी और असंतुलित खानपान इस स्थिति को और भी गंभीर बना देते हैं।

तनाव बन रहा है सबसे बड़ा दुश्मन

आईवीएफ से गुजरने वाली अधिकतर महिलाओं में तनाव और अवसाद आम है। मानसिक मजबूती यानी ‘रेजिलिएंस’ ज्यादा होने पर इस प्रक्रिया में सफलता की संभावना भी बढ़ जाती है। लेकिन जब समाज और परिवार का सहयोग न मिले, तो मानसिक दबाव और बढ़ जाता है।

‘बच्चा कब होगा?’ जैसे सवाल औरतों को तोड़ते हैं

शादी के तुरंत बाद समाज का यह सवाल, महिला के लिए मानसिक पीड़ा बन जाता है। एक अध्ययन में सामने आया कि जिन महिलाओं को पारिवारिक सहयोग मिला, उनमें अवसाद की आशंका 25% तक कम पाई गई।

मिथक जो फर्टिलिटी को लेकर अब भी ज़िंदा हैं

बहुत से लोग मानते हैं कि बांझपन सिर्फ महिलाओं की समस्या है, जबकि सच यह है कि 30-50% मामलों में पुरुष भी जिम्मेदार होते हैं। इसके अलावा सेकेंडरी इंफर्टिलिटी (दूसरा बच्चा न हो पाना) भी एक वास्तविक समस्या है जिसे गंभीरता से लेना जरूरी है।

महिलाओं के लिए फर्टिलिटी हेल्थ टिप्स

• 30 की उम्र के बाद फर्टिलिटी की जांच नियमित करानी चाहिए।
• यदि पीरियड्स अनियमित हैं या हार्मोनल दिक्कत है तो जल्द डॉक्टर से संपर्क करें।
• हेल्दी डाइट, पर्याप्त नींद और तनावमुक्त जीवनशैली को प्राथमिकता दें।
• IVF, IUI या एग फ्रीजिंग जैसे विकल्पों के बारे में समय रहते जानना बुद्धिमानी है।

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