Guru Nanak Jayanti 2025: जानिए क्यों खास है यह दिन, कब और कैसे मनाया जाता है प्रकाश उत्सव

गुरु नानक जयंती 2025 देश और दुनिया भर में श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाई जा रही है। यह दिन सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी की 556वीं जयंती का प्रतीक है। इस अवसर पर गुरुद्वारों में कीर्तन, नगर कीर्तन और लंगर का आयोजन किया जा रहा है।

Post Published By: Sapna Srivastava
Updated : 4 November 2025, 11:31 AM IST
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New Delhi: भारत समेत दुनियाभर में हर साल की तरह इस बार भी गुरु नानक जयंती पूरे श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाई जा रही है। यह पर्व सिख धर्म के संस्थापक और प्रथम गुरु, गुरु नानक देव जी के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष बुधवार, 5 नवंबर 2025 को उनकी 556वीं जयंती है। इस दिन को गुरुपरब या प्रकाश उत्सव के नाम से भी जाना जाता है, जो प्रेम, समानता और भाईचारे का प्रतीक है।

गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 में राय भोई की तलवंडी (अब ननकाना साहिब, पाकिस्तान) में हुआ था। उन्होंने समाज में व्याप्त अंधविश्वास, भेदभाव और असमानता के खिलाफ आवाज उठाई। उनके उपदेश ‘नाम जपना, कीरत करनी और वंड छकना’ आज भी जीवन जीने की सच्ची राह दिखाते हैं। उन्होंने “इक ओंकार” यानी ईश्वर एक है, का संदेश देकर मानवता में एकता और प्रेम का भाव जगाया।

गुरु नानक जयंती का इतिहास और महत्व

गुरु नानक देव जी बचपन से ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति और समाज सुधार की सोच रखते थे। उन्होंने अपने जीवन में भारत और विदेशों की यात्राएं कीं और हर जगह समानता, सच्चाई और ईश्वर भक्ति का संदेश फैलाया। गुरु नानक जयंती की परंपरा सैकड़ों साल पहले शुरू हुई और आज यह सिर्फ सिख समुदाय ही नहीं, बल्कि हर धर्म और संस्कृति के लोगों के लिए प्रेरणा का दिन बन गई है।

Guru Nanak Jayanti

गुरु नानक देव जी की 556वीं जयंती

इस पर्व का मुख्य उद्देश्य गुरु नानक के विचारों को जीवन में अपनाना है सभी के साथ समान व्यवहार करना, जरूरतमंदों की मदद करना और अहंकार से दूर रहना।

ऐसे मनाई जाती है गुरु नानक जयंती

गुरु नानक जयंती के उत्सव की शुरुआत मुख्य दिन से दो दिन पहले होती है, जब गुरुद्वारों में अखंड पाठ यानी गुरु ग्रंथ साहिब का 48 घंटे तक लगातार पाठ किया जाता है। इसके बाद नगर कीर्तन निकाला जाता है, जिसमें गुरु ग्रंथ साहिब को पालकी में सजाकर शहर में भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। शोभायात्रा में बच्चे और युवा ‘गटका’ नामक पारंपरिक मार्शल आर्ट का प्रदर्शन करते हैं, और पूरे वातावरण में कीर्तन और भजन की गूंज रहती है।

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मुख्य दिन पर श्रद्धालु सुबह-सुबह प्रभात फेरी में भाग लेते हैं और फिर गुरुद्वारों में अरदास, भजन-कीर्तन और लंगर का आयोजन होता है।

लंगर की परंपरा: समानता और सेवा का प्रतीक

लंगर गुरु नानक देव जी की सबसे अनोखी और मानवता से भरी परंपरा है। इसकी शुरुआत उन्होंने 15वीं शताब्दी में की थी, ताकि समाज के हर वर्ग के लोग बिना भेदभाव एक साथ बैठकर भोजन कर सकें। इसने जाति और धर्म की दीवारें तोड़ दीं। आज भी दुनिया भर के गुरुद्वारों में रोजाना हजारों लोगों को निःशुल्क भोजन कराया जाता है।

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लंगर केवल भोजन का आयोजन नहीं, बल्कि समानता और सेवा का जीवंत उदाहरण है। यह गुरु नानक की उस भावना को जीवित रखता है जिसमें उन्होंने कहा था “सब में जोत, जोत है सोई।”

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  • New Delhi

Published : 
  • 4 November 2025, 11:31 AM IST