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झारखंड की राजनीति में आदिवासी नेतृत्व की सबसे प्रभावशाली आवाज़ रहे शिबू सोरेन का आज निधन हो गया। 81 वर्ष की उम्र में उन्होंने दिल्ली में अंतिम सांस ली। उनके निधन से झारखंड ही नहीं, बल्कि पूरे देश की राजनीति में शोक की लहर है।
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का निधन (सोर्स इंटरनेट)
New Delhi: झारखंड की राजनीति में आदिवासी नेतृत्व की सबसे प्रभावशाली आवाज़ रहे शिबू सोरेन का आज निधन हो गया। 81 वर्ष की उम्र में उन्होंने दिल्ली में अंतिम सांस ली। उनके निधन से झारखंड ही नहीं, बल्कि पूरे देश की राजनीति में शोक की लहर है। उन्हें लोग सम्मानपूर्वक ‘दिशोम गुरु’ के नाम से जानते थे। उनके पुत्र और झारखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उनके निधन की पुष्टि करते हुए भावुक शब्दों में कहा, “आज मैं शून्य हो गया हूं।”
शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को झारखंड के धनबाद जिले में हुआ था। उनका जीवन आदिवासी समुदाय के अधिकारों की रक्षा और झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाने के संघर्ष में बीता। उन्होंने 1972 में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की, जिसने अलग राज्य आंदोलन को एक व्यापक जन आंदोलन में बदल दिया। वर्षों के संघर्ष के बाद 2000 में झारखंड को बिहार से अलग कर एक नया राज्य बनाया गया, जिसमें शिबू सोरेन की केंद्रीय भूमिका रही।
शिबू सोरेन तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने—पहली बार मार्च 2005 में, फिर अगस्त 2008 से जनवरी 2009 और तीसरी बार दिसंबर 2009 से मई 2010 तक। इसके अलावा, वे केंद्रीय मंत्री के रूप में कोयला मंत्रालय का कार्यभार भी संभाल चुके थे। उन्होंने दुमका लोकसभा सीट से कई बार संसद में झारखंड की आवाज़ उठाई।
उनका राजनीतिक जीवन हमेशा आदिवासी अधिकारों, सामाजिक न्याय और संसाधनों के स्थानीय उपयोग पर केंद्रित रहा। उन्होंने जमीन और जल-जंगल पर स्थानीय समुदायों के अधिकार को लेकर कई बार केंद्र सरकार और पूंजीवादी नीतियों का विरोध भी किया। उनकी सादगी, संघर्षशीलता और जमीन से जुड़ाव उन्हें जनता के बीच अत्यंत लोकप्रिय बनाता था।
शिबू सोरेन का निधन केवल एक राजनीतिक नेता की मृत्यु नहीं, बल्कि एक विचारधारा, एक आंदोलन और एक जन नेता का अंत है। वे झारखंड के उन विरले नेताओं में से थे, जिन्होंने सत्ता को साधन नहीं, बल्कि सेवा का माध्यम माना। आज उनके जाने से राज्य की राजनीति में एक रिक्तता उत्पन्न हो गई है, जिसे भरना आसान नहीं होगा।
उनकी राजनीतिक विरासत अब उनके पुत्र हेमंत सोरेन आगे बढ़ा रहे हैं, लेकिन दिशोम गुरु जैसा जन नेता फिर शायद ही मिले। उनका जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बना रहेगा।