

अमेरिका द्वारा भारत और चीन पर लगाए गए टैरिफ के जवाब में दोनों देश वैकल्पिक भुगतान प्रणाली विकसित कर रहे हैं, जिससे वैश्विक व्यापार में डॉलर की भूमिका घट सकती है। यह कदम आने वाले वर्षों में अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है।
पीएम मोदी और शी जिनपिंग (Img: Google)
New Delhi: अमेरिका की टैरिफ नीति का असर अब वैश्विक स्तर पर दिखने लगा है। भारत और चीन ने अमेरिकी टैरिफ का जवाब देने के लिए मिलकर रणनीतिक पहल शुरू कर दी है। दोनों देश अब डॉलर-आधारित वैश्विक व्यापार प्रणाली को चुनौती देने के लिए वैकल्पिक भुगतान प्रणाली विकसित करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। यह कदम आने वाले वर्षों में अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है।
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन के तिनजियान में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) समिट में भाग लिया। इस दौरान उनकी मुलाकात चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से हुई। तीनों नेताओं की एक साथ मौजूदगी ने एक मजबूत राजनीतिक संकेत दिया कि एशिया की प्रमुख शक्तियां अब अमेरिकी वर्चस्व को संतुलित करने की दिशा में कदम बढ़ा रही हैं।
एससीओ समिट 2025 (Img: Google)
समिट के दौरान व्यापार में डॉलर की निर्भरता को कम करने और एक नया बहुपक्षीय भुगतान ढांचा तैयार करने पर चर्चा हुई। भारत और चीन ने संकेत दिए हैं कि वे पारंपरिक डॉलर-आधारित सिस्टम की जगह एक नया प्रणाली विकसित कर सकते हैं जो क्षेत्रीय व्यापार को अधिक स्वतंत्र और प्रभावी बना सके।
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स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के ग्रेजुएट स्कूल ऑफ बिजनेस के प्रोफेसर मत्तेओ माज्जियोरी ने कहा कि वैश्विक शक्तियां अब व्यापार और वित्तीय तंत्र को राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही हैं। उन्होंने चीन का उदाहरण देते हुए कहा कि वह दुर्लभ खनिजों के नियंत्रण से वैश्विक सप्लाई चेन को प्रभावित करता है, वहीं अमेरिका वित्तीय प्रणाली के जरिए दबाव बनाता है।
भारत और चीन अब वैकल्पिक भुगतान प्रणालियों के निर्माण पर तेजी से काम कर रहे हैं, जिससे अमेरिकी दबाव को कम किया जा सके। यह रणनीति न केवल इन देशों के लिए व्यापारिक स्वतंत्रता लाएगी, बल्कि वैश्विक वित्तीय प्रणाली में एक संतुलन भी स्थापित कर सकती है।
अमेरिका ने हाल ही में भारत पर 50% तक का टैरिफ लगाया है। चीन पर भी कई प्रकार के आयात शुल्क लागू किए गए हैं। यदि भारत और चीन अपने व्यापारिक लेनदेन में डॉलर की जगह किसी वैकल्पिक मुद्रा या प्रणाली का इस्तेमाल करते हैं, तो यह अमेरिकी अर्थव्यवस्था और डॉलर की वैश्विक स्थिति को कमजोर कर सकता है।