

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और रूस को लेकर चिंता जताई है। ट्रंप ने कहा कि अमेरिका ने भारत और रूस को चीन के पक्ष में खो दिया है। उनके इस बयान ने बदलते वैश्विक समीकरणों और अमेरिका की विदेश नीति को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप
New Delhi: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर भारत को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा, “हमें लगता है कि हमने भारत और रूस को खो दिया है। ये दोनों देश अब चीन के करीब जाते दिख रहे हैं।” ट्रंप के इस बयान ने अमेरिका की मौजूदा विदेश नीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह टिप्पणी वैश्विक स्तर पर बदलते समीकरणों को दर्शाती है। भारत ने हाल के वर्षों में जहां चीन से संतुलित दूरी बनाए रखी है, वहीं अमेरिका के साथ भी अपने रणनीतिक रिश्ते मजबूत किए।
दरअसल, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत और रूस को लेकर किए गए इस बयान के बाद अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक हलकों में चर्चा तेज हो गई है। ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'ट्रूथ सोशल' पर एक पोस्ट करते हुए कहा, “हमें लगता है कि हमने भारत और रूस को चीन के हाथों खो दिया है।”
ट्रंप ने इस बयान के साथ SCO (शंघाई सहयोग संगठन) की हालिया बैठक की एक तस्वीर भी साझा की, जिसमें भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग एक मंच पर नजर आ रहे हैं।
भारत के विदेश मंत्रालय ने ट्रंप की इस टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया। मंत्रालय के प्रवक्ता ने संक्षिप्त रूप में कहा, "इस पर हमारे पास कहने के लिए कुछ नहीं है।"
ट्रंप का यह बयान उस समय आया है जब अमेरिका और भारत के बीच टैरिफ को लेकर तनातनी बनी हुई है। ट्रंप ने हाल ही में भारत पर 50% टैरिफ लगाए हैं। उनका तर्क है कि भारत, रूस से सस्ते दामों पर तेल खरीद रहा है, जो अमेरिका की रणनीतिक नीति के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि यह टैरिफ एक तरह की “सजा” है।
एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ट्रंप ने यह भी दावा किया कि “भारत लंबे समय से अमेरिकी उत्पादों पर 100% तक टैरिफ लगाता आ रहा है, जो दुनिया में सबसे अधिक है।”
ट्रंप के इस बयान से यह स्पष्ट है कि अमेरिका, भारत और रूस के बीच बढ़ती सामरिक नजदीकी को लेकर चिंतित है। खासकर भारत का रूस से ऊर्जा खरीदना और SCO जैसे मंचों पर चीन और रूस के साथ सक्रिय भागीदारी अमेरिका के रणनीतिक हितों के विरुद्ध माना जा रहा है।