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हम रोजमर्रा के जिन बर्तनों का इस्तेमाल करते हैं, वे लिवर के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं। नॉन-स्टिक की कोटिंग, प्लास्टिक के केमिकल और एल्युमीनियम के कण धीरे-धीरे शरीर में जमा होते हैं। विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि सुरक्षित बर्तनों का चुनाव लिवर को बचाने में अहम भूमिका निभाता है।
लिवर की सेहत (फोटो सोर्स-इंटरनेट)
New Delhi: लिवर हमारे शरीर का वह महत्वपूर्ण अंग है जो टॉक्सिन्स को बाहर निकालने, भोजन को पचाने, ऊर्जा स्टोर करने और कई जरूरी प्रक्रिया को नियंत्रित करने का काम करता है। आमतौर पर जब लिवर हेल्थ की बात होती है, तो लोग तला-भुना खाना, जंक फूड, शराब या ज्यादा दवाइयों का सेवन ही इसकी खराबी का कारण मानते हैं। लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार, हमारी रोजमर्रा की जीवनशैली में कई ऐसी छिपी आदतें भी हैं जो धीरे-धीरे लिवर को नुकसान पहुंचाती हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि इनमें से कुछ चीजें हमारे किचन में मौजूद बर्तनों से भी जुड़ी होती हैं।
जब शरीर में टॉक्सिन्स बढ़ते हैं, तो लिवर उन्हें निष्क्रिय करने और बाहर निकालने में जुट जाता है। लेकिन जब जहरीले तत्व लगातार शरीर में प्रवेश करते रहते हैं, तो लिवर पर बोझ बढ़ने लगता है और वह कमजोर पड़ने लगता है। यही वजह है कि केवल खाना ही नहीं, खाना पकाने और स्टोर करने के तरीके भी लिवर की सेहत पर बड़ा असर डालते हैं।
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इसी सिलसिले में तीन प्रकार के बर्तन सबसे अधिक चर्चा में हैं- नॉन-स्टिक, प्लास्टिक और एल्युमीनियम। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर इनका गलत तरीके से उपयोग किया जाए, तो ये लिवर के लिए हानिकारक साबित हो सकते हैं।
नॉन-स्टिक बर्तन आज हर घर में आम हो गए हैं क्योंकि इनमें कम तेल में खाना पक जाता है और खाना चिपकता भी नहीं है। लेकिन इनकी चमक के पीछे एक खतरनाक सच छुपा है।
जब नॉन-स्टिक पैन बहुत ज्यादा गर्म हो जाते हैं या उनकी कोटिंग पर खरोंच आ जाती है, तो वे PFOA और PTFE जैसे केमिकल छोड़ सकते हैं। शोध बताते हैं कि ये तत्व शरीर में जमा होकर लिवर की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकते हैं और फैटी लिवर जैसी समस्याओं का खतरा बढ़ा सकते हैं।
विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि अगर नॉन-स्टिक पैन खराब हो जाए या उसमें स्क्रैच आ जाए, तो उसे तुरंत बदल देना चाहिए। इसकी जगह कास्ट आयरन, स्टेनलेस स्टील या मिट्टी के बर्तन बेहतर विकल्प हैं।
कई लोग प्लास्टिक के डिब्बों में खाना स्टोर करते हैं या माइक्रोवेव में उन्हें गरम करते हैं। यह आदत देखने में सहज लगती है, लेकिन यह शरीर के हार्मोनल बैलेंस और लिवर की सफाई प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती है।
प्रतीकात्मक छवि (फोटो सोर्स-इंटरनेट)
प्लास्टिक जब गर्म होता है, तो BPA और Phthalates जैसे रसायन निकल सकते हैं। ये केमिकल हार्मोन को बाधित करते हैं और लिवर के डिटॉक्स तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
विशेषज्ञ कहते हैं कि बच्चों और महिलाओं में इनका असर और अधिक तेज देखा जाता है। लिवर को स्वस्थ रखने के लिए कांच, स्टील या फूड-ग्रेड कंटेनरों का उपयोग बेहतर माना जाता है।
अगर प्लास्टिक का उपयोग करना ही पड़े, तो माइक्रोवेव-सेफ और BPA-free लेबल वाले कंटेनर ही इस्तेमाल करें।
भारतीय रसोई में एल्युमीनियम के बर्तन वर्षों से उपयोग में हैं। ये हल्के, सस्ते और जल्दी गर्म होने वाले होते हैं। लेकिन अम्लीय चीजें जैसे- टमाटर, नींबू, इमली आदि। जब एल्युमीनियम बर्तनों में पकती हैं, तो धातु के सूक्ष्म कण खाने में घुल सकते हैं।
शरीर में एल्युमीनियम की अधिकता जमा होने पर यह लिवर की क्षमता को कमजोर कर सकता है और लंबे समय में गंभीर स्थितियों का कारण बन सकता है।
कुछ शोधों में यह भी पाया गया है कि एल्युमीनियम का ज्यादा सेवन न्यूरोलॉजिकल समस्याओं को भी बढ़ा सकता है। इसलिए विशेषज्ञ स्टेनलेस स्टील, कास्ट आयरन या एनोडाइज्ड एल्यूमीनियम जैसे सुरक्षित विकल्प अपनाने की सलाह देते हैं।
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नॉन-स्टिक बर्तनों का तापमान बहुत ज्यादा न होने दें।
स्क्रैच वाले नॉन-स्टिक पैन तुरंत बदलें।
प्लास्टिक बर्तनों में गरम खाना रखने से बचें।
एल्युमीनियम में अम्लीय चीजें पकाने से परहेज करें।
कांच, स्टेनलेस स्टील और कास्ट आयरन जैसे सुरक्षित विकल्प अपनाएं।
संतुलित आहार लें और पर्याप्त पानी पिएं ताकि लिवर बेहतर काम कर सके।
Disclaimer: यह रिपोर्ट विभिन्न शोध अध्ययनों और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है। इसे चिकित्सा परामर्श का विकल्प न मानें। किसी भी स्वास्थ्य-संबंधी निर्णय या बदलाव से पहले अपने डॉक्टर या विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लें।