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डासना जेल में बंद पूर्व ब्लॉक प्रमुख लेखराज यादव की दिल्ली में इलाज के दौरान मौत हो गई। हत्या और गैंगस्टर एक्ट समेत 60 से अधिक मामलों में उसका नाम दर्ज था। शनिवार को झांसी के रानीपुर कस्बे में अंतिम संस्कार किया जाएगा।
पढ़ें कुख्यात लेखराज की पूरी कहानी
Ghaziabad: हत्या, गैंगस्टर एक्ट समेत चार गंभीर मामलों में गाजियाबाद की डासना जेल में बंद पूर्व ब्लॉक प्रमुख लेखराज यादव (76) की बृहस्पतिवार रात दिल्ली के डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में उपचार के दौरान मौत हो गई। जेल प्रशासन के अनुसार लेखराज लंबे समय से गंभीर बीमारियों से जूझ रहा था। उसकी तबीयत लगातार बिगड़ती जा रही थी, जिसके चलते उसे अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती कराया गया था।
जेल अधिकारियों ने बताया कि लेखराज यादव लीवर सिरोसिस, शुगर सहित कई गंभीर बीमारियों से पीड़ित था। उसका इलाज एम्स दिल्ली के अलावा मेरठ और गाजियाबाद के विभिन्न अस्पतालों में चल रहा था। 22 दिसंबर को उसे एम्स ले जाया गया था, जहां से दोबारा बुलाने की तारीख दी गई थी। इसी बीच उसकी हालत अचानक बिगड़ गई।
तबीयत बिगड़ने पर पहले लेखराज को गाजियाबाद के एमएमजी अस्पताल ले जाया गया। वहां से हालत गंभीर होने पर उसे एम्स रेफर किया गया। एम्स से डॉक्टरों ने उसे डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल भेजा, जहां उपचार के दौरान बृहस्पतिवार रात उसकी मौत हो गई। मौत की सूचना मिलते ही प्रशासनिक और पुलिस महकमे में हलचल मच गई।
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लेखराज यादव का नाम बुंदेलखंड में दशकों तक आतंक का पर्याय रहा। वह झांसी के रानीपुर कस्बे का निवासी था और उस पर उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश में छह दर्जन से अधिक आपराधिक मामले दर्ज थे। वर्ष 2019 में दस्यु उन्मूलन विशेष अदालत ने उसे और उसके आठ साथियों को भाजपा युवा मोर्चा नेता मनोज श्रोत्रिय समेत चार लोगों की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इसके बाद से वह जेल में बंद था।
लेखराज यादव की ताकत के पीछे सियासी सरपस्ती को बड़ा कारण माना जाता है। समर्थक उसे “लंकेश” और “पापाजी” जैसे नामों से बुलाते थे। वह अपने अहाते में दरबार लगाता था, जहां न्याय के नाम पर उसके फैसले अंतिम माने जाते थे। इलाके के लोग उसके फैसलों को मानने को मजबूर रहते थे।
लेखराज ने छोटे-मोटे अपराधियों को जोड़कर एक मजबूत आपराधिक नेटवर्क तैयार किया था। यूपी में वारदात करने के बाद वह अक्सर मध्य प्रदेश भाग जाता था और वहीं शरण लेता था। जिन लोगों के यहां वह पनाह लेता था, समय आने पर उनकी मदद भी करता था। यही कारण था कि उसका नेटवर्क यूपी से लेकर एमपी तक फैला हुआ था।
सियासी रसूख के दम पर लेखराज खुद दो बार झांसी के बंगरा ब्लॉक का प्रमुख बना। एक बार उसने अपनी बहू शशि यादव को भी ब्लॉक प्रमुख बनवाया। रानीपुर नगर पंचायत में उसका बेटा भगत सिंह और पत्नी राममूर्ति चेयरमैन रह चुके हैं। जेल में होने के बावजूद उसकी पत्नी राममूर्ति ने नगर पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जीता था।
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लेखराज यादव पर जमीनों पर कब्जा, अवैध खनन और अन्य काले कारोबारों में शामिल रहने के आरोप रहे। उसके रसूख को देखते हुए कई बार पुलिस भी सीधे कार्रवाई करने से बचती थी। दबिश की भनक उसे पहले ही लग जाती थी और वह फरार हो जाता था।
17 दिसंबर 2006 को लेखराज ने तत्कालीन भाजयुमो जिलाध्यक्ष मनोज श्रोत्रिय, दीपचंद्र, विमल और मोनी पाल की सरेआम गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस घटना से पूरा बुंदेलखंड दहल उठा था। वारदात के बाद लेखराज मध्य प्रदेश फरार हो गया था।
पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार लेखराज यादव के खिलाफ झांसी, आसपास के जिलों और मध्य प्रदेश में करीब 60 से अधिक मुकदमे दर्ज थे। वह मऊरानीपुर थाने का हिस्ट्रीशीटर और गैंगस्टर था। उसके गैंग में उसका बेटा जय हिंद यादव सहित नौ सदस्य शामिल थे।
लेखराज और एक कोतवाल के बीच कथित मुठभेड़ को लेकर हुई बातचीत की ऑडियो क्लिप वायरल हुई थी, जिसने पूरे यूपी में हंगामा मचा दिया था। इस ऑडियो के सामने आने के बाद संबंधित कोतवाल को नौकरी से हाथ धोना पड़ा था और योगी सरकार पुलिस मुठभेड़ों को लेकर सवालों में घिर गई थी।
16 सितंबर 2022 को झांसी में पुलिस काफिले पर हमला कर लेखराज को छुड़ाने की कोशिश भी हुई थी। इस मामले में कई लोगों के खिलाफ केस दर्ज हुआ था, जिसमें एक पूर्व विधायक का नाम भी सामने आया था।
लेखराज यादव का अंतिम संस्कार शनिवार को झांसी के रानीपुर कस्बे में किया जाएगा। उसकी मौत के साथ ही बुंदेलखंड के एक लंबे आपराधिक अध्याय का अंत माना जा रहा है।