

भारतीय रुपया हाल के दिनों में ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंच गया है। अमेरिकी टैरिफ से जुड़ी चिंताओं और विदेशी पूंजी निकासी ने घरेलू मुद्रा पर दबाव डाला है। बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिकी डॉलर की मजबूती इस कमजोरी की बड़ी वजह हैं।
डॉलर के मुकाबले क्यों टूट रहा भारतीय रुपया
New Delhi: भारतीय रुपये में लगातार कमजोरी देखने को मिल रही है। गुरुवार को अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 35 पैसे टूटकर 88.20 के स्तर पर पहुंच गया। यह गिरावट रुपये की हालिया चार दिन की तेजी के बाद दर्ज की गई, जिसने बाजार में चिंता बढ़ा दी है।
विशेषज्ञों का मानना है कि रुपये की गिरावट की मुख्य वजह अमेरिकी टैरिफ से जुड़ी अनिश्चितता और विदेशी निवेशकों द्वारा पूंजी की निकासी है। HDFC सिक्योरिटीज के सीनियर रिसर्च एनालिस्ट दिलीप परमार ने कहा कि यह कमजोरी केवल भारतीय करेंसी तक सीमित नहीं है, बल्कि क्षेत्रीय मुद्राओं में भी दबाव देखने को मिल रहा है।
उन्होंने बताया कि अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में 0.25% की कटौती ने डॉलर को मजबूत कर दिया है। दरअसल, फेड ने साफ संकेत दिया है कि वर्ष 2025 के अंत तक दो और दर कटौतियां हो सकती हैं। इस बयान के बाद निवेशकों का भरोसा डॉलर पर बढ़ा है और इसका सीधा असर रुपये पर पड़ा है।
रुपये की गिरावट से बढ़ी चिंता
रुपये की कमजोरी को लेकर मिराए एसेट शेयरखान के रिसर्च एनालिस्ट (जिंस और मुद्रा) अनुज चौधरी ने कहा कि फेडरल रिजर्व का आक्रामक रुख और डॉलर की मजबूती भारतीय करेंसी को नीचे खींच रही है। उन्होंने बताया कि इस साल के अंत तक फेड दो और बार 0.25% की कटौती कर सकता है, जबकि 2026 में केवल एक बार कटौती की संभावना है।
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हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) रुपये की चाल पर पैनी नजर बनाए हुए है। विशेषज्ञों का मानना है कि RBI के हस्तक्षेप ने अब तक रुपये की गिरावट को आंशिक रूप से थामे रखा है।
रुपये की कमजोरी का असर आयात पर पड़ सकता है, क्योंकि कच्चे तेल और अन्य वस्तुओं का आयात महंगा हो जाएगा। इससे घरेलू महंगाई पर भी दबाव बढ़ सकता है। सरकार और RBI मिलकर इस स्थिति पर नियंत्रण करने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि बाजार में स्थिरता बनी रहे।
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विशेषज्ञों का कहना है कि मौजूदा समय में विदेशी निवेशक अमेरिकी डॉलर को सुरक्षित निवेश मान रहे हैं, जिसकी वजह से उभरते बाजारों से पूंजी निकासी तेज हुई है। जब तक अमेरिकी फेड का रुख नरम नहीं होता, रुपये पर दबाव बना रह सकता है।