

बिहार चुनाव को लेकर राजनीति में हलतेज हो गई है। जिसके चलते है जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर ने ऐलान करते हुए कहा कि वह करगहर सीट से बिहार विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। ऐसे में चलिए जानते हैं क्या है इस सीट का चुनावी समीकरण
जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर
Patna: करगहर विधानसभा क्षेत्र रोहतास जिले में, सासाराम (एससी) लोकसभा के तहत आने वाली सामान्य (अनारक्षित) सीट है। 2008 के परिसीमन के बाद यह क्षेत्र अलग विधानसभा बना और पहली बार 2010 में यहां चुनाव हुआ। भूगोल की दृष्टि से इलाका पूरी तरह ग्रामीण है। 2011 की जनगणना के ब्लॉक-स्तरीय आंकड़ों के आधार पर यहां एससी मतदाता लगभग 20.41% और मुस्लिम मतदाता करीब 6.4% माने जाते हैं। 2020 में कुल पंजीकृत मतदाता 3.25 लाख रहे और मतदान 59.8% के आसपास रहा।
सूत्रों के अनुसार, 2010 में जेडीयू के राम धनी सिंह ने 13,197 वोटों से जीत दर्ज की। 2015 में भी जेडीयू ने बशिष्ठ सिंह के ज़रिये 12,907 वोटों से जीत दोहराई। 2020 में तस्वीर उलटी हुई और कांग्रेस के संतोष कुमार मिश्र ने जेडीयू के बशिष्ठ सिंह को 4,083 वोटों से हराकर सीट छीन ली। यह क्रम बताता है कि सीट किसी एक दल की “पकड़” में स्थायी नहीं है। मतदाता मुद्दों/ उम्मीदवार के आधार पर पाला बदलते रहे हैं।
सूत्रों के अनुसार, ब्लॉक-स्तरीय प्रोफ़ाइल के अनुसार करगहर पूरी तरह ग्रामीण मतदाताओं वाला क्षेत्र है। एससी और मुस्लिम हिस्सेदारी के अलावा, स्थानीय राजनीतिक चर्चाओं में ओबीसी समूह खासकर कुशवाहा, यादव, साथ ही ईबीसी व सवर्ण समुदाय निर्णायक माने जाते हैं। इन समूहों की परस्पर गोलबंदी (महागठबंधन बनाम एनडीए/अन्य) अक्सर नतीजों को दिशा देती है।
2024 के संसदीय चुनावों में, इसी विधानसभा सेगमेंट में भाजपा को लगभग 3,035 वोटों की बढ़त मिली बताई गई। इससे 2025 के विधानसभा रण में मुक़ाबला कड़ा रहने के संकेत हैं क्योंकि 2020 में विधानसभा स्तर पर जीत का फासला खुद 4,000 के आसपास था।
आज सूचना मिली कि जन सुराज पार्टी के संस्थापक और चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने स्पष्ट ऐलान किया है कि वे करगहर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे। उन्होंने कहा है कि करगहर उनकी जन्मभूमि है और यहां से चुनाव लड़ना उनका इच्छा है
सूत्रों के अनुसार, करगहर सीट का राजनीतिक इतिहास बताता है कि यहां एंटी-इंकम्बेंसी फैक्टर के साथ-साथ उम्मीदवार की व्यक्तिगत साख, जातीय समीकरण, गठबंधन की सीट-बंटवारा रणनीति और स्थानीय मुद्दे—जैसे रोज़गार, सिंचाई-सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य चुनाव परिणाम को निर्णायक रूप से प्रभावित करते हैं। 2010 से 2020 के बीच के चुनावी रुझान और 2024 के लोकसभा सेगमेंट लीड को देखें तो संकेत साफ है कि 2025 में यह सीट एक त्रिकोणीय मुकाबले की ओर बढ़ सकती है।
पारंपरिक तौर पर यहां मुकाबला एनडीए बनाम महागठबंधन के बीच होता आया है, लेकिन इस बार जन सुराज और प्रशांत किशोर की एंट्री समीकरण को नया मोड़ देती दिख रही है। अगर पी.के. इस क्षेत्र में मजबूत स्थानीय उम्मीदवार और जमीनी संगठन पेश करने में सफल होते हैं, तो मुकाबला सिर्फ दो दलों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि एक सशक्त तीसरे मोर्चे का उदय भी संभव है।
आखिरी तस्वीर, स्वाभाविक रूप से, इस बात पर निर्भर करेगी कि कौन-सी पार्टियां यहां से किसे उम्मीदवार बनाती हैं, सीट-बंटवारे की रणनीति कैसी रहती है और प्रचार अभियान ज़मीनी स्तर पर किस हद तक जनता को प्रभावित कर पाता है। यानी करगहर 2025 का चुनाव केवल जातीय जोड़-तोड़ और परंपरागत वोट-बैंक तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यहां का हर राजनीतिक दांव बिहार की सियासत का बड़ा संकेत भी देगा।