

बिहार की राजनीति एक बार फिर सवालों में है कि अगर नीतीश कुमार मुख्यमंत्री नहीं बने तो क्या होगा? सात बार मुख्यमंत्री रहे जेडीयू नेता नीतीश कुमार की उम्र, स्वास्थ्य और राजनीतिक अनिश्चितताओं के कारण आगामी चुनाव में मुख्यमंत्री पद से हटने की चर्चा जोरों पर है। उनके न बनने पर बिहार की सियासत में बड़े बदलाव आ सकते हैं। जेडीयू में नेतृत्व संकट, गठबंधनों की राजनीति में उथल-पुथल और राज्य के विकास मॉडल पर असर हो सकता है। यह निर्णय बिहार की राजनीति की दिशा तय करेगा।
नीतीश कुमार
Patna: बिहार की राजनीति एक बार फिर उस मोड़ पर खड़ी है जहां यह सवाल उठ रहा है "अगर नीतीश कुमार मुख्यमंत्री नहीं बनते तो क्या होगा?" जेडीयू प्रमुख और सात बार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जिन्होंने बिहार की राजनीति को दशकों तक दिशा दी, अब उम्र, स्वास्थ्य और राजनीतिक अनिश्चितताओं के कारण अगला चुनाव लड़ने या मुख्यमंत्री बनने की संभावनाओं को लेकर चर्चा के केंद्र में हैं। ऐसे में यदि वे खुद को मुख्यमंत्री पद की दौड़ से अलग करते हैं, तो राज्य की सियासत में कई स्तरों पर बड़ा बदलाव हो सकता है।
नीतीश कुमार के बिना JDU की राजनीतिक पहचान और स्थिति पर गहरा असर पड़ सकता है। नीतीश कुमार JDU के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं और उनकी छत्रछाया में पार्टी की छवि काफी मजबूत हुई है। उनके बिना, JDU को एक नए, प्रभावशाली और करिश्माई नेता की तलाश करनी पड़ेगी।
नीतीश कुमार की वजह से JDU ने एनडीए के साथ लंबे समय तक गठबंधन बनाए रखा। अगर वे मुख्यमंत्री नहीं बनते, तो JDU का भाजपा के साथ गठबंधन स्थिर रहना मुश्किल हो सकता है। पार्टी को नई रणनीतियों पर विचार करना पड़ेगा। नीतीश कुमार के नेतृत्व में JDU ने ग्रामीण इलाकों और पिछड़े वर्गों में अपनी मजबूत पहचान बनाई है। अगर वे नहीं रहते हैं, तो यह संगठनात्मक कमजोरियों को बढ़ा सकता है, जिससे पार्टी के कार्यकर्ताओं और वोटबैंक पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
संभावित राजनीतिक गिरावट नीतीश कुमार की अनुपस्थिति में JDU को मतदाताओं का विश्वास खोने का खतरा रहेगा। नई पीढ़ी के नेताओं की कमी के चलते पार्टी का जनाधार घट सकता है, जो कि इसके राजनीतिक अस्तित्व के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता है। इसलिए, यह कहना गलत नहीं होगा कि नीतीश कुमार के बिना JDU का भविष्य काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है। पार्टी को नए नेतृत्व, मजबूत रणनीति और संगठनात्मक सुधार की सख्त जरूरत है, वरना बिहार की राजनीति में इसकी भूमिका सीमित हो सकती है।
नीतीश कुमार को लंबे समय से एक स्थिर और संतुलित नेता के रूप में देखा जाता रहा है, जो NDA और महागठबंधन दोनों ही धड़ों के साथ काम कर चुके हैं। अगर वे रेस से हटते हैं, तो यह स्थिरता कमजोर हो सकती है। जेडीयू में नेतृत्व संकट आ सकता है क्योंकि अब तक कोई दूसरा बड़ा चेहरा सामने नहीं आया है।
अगर नीतीश हटते हैं, तो कई नए चेहरे सामने आ सकते हैं। तेजस्वी यादव (RJD) पहले से ही खुद को एक विकल्प के तौर पर पेश कर चुके हैं। संजय कुमार झा और विजय चौधरी (JDU) जैसे नीतीश के करीबी लोग भी संभावित विकल्प हो सकते हैं, लेकिन उनके पास जनाधार की कमी है। भाजपा से गिरिराज सिंह, सम्राट चौधरी या नित्यानंद राय जैसे नेता सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं। यह लीडरशिप का खालीपन कई दलों को जोड़-तोड़ की राजनीति में धकेल सकता है।
बिहार के लोग और मध्यम वर्ग के मतदाता लंबे समय से नीतीश को एक भरोसेमंद नेता मानते आए हैं। लेकिन उनके जाने से जनता का एक हिस्सा शायद भ्रमित हो जाए। इससे मतदान के पैटर्न में अप्रत्याशित बदलाव देखने को मिल सकता है। युवा मतदाता नए चेहरों की तलाश में दूसरे विकल्पों की ओर बढ़ सकते हैं। अगर नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री नहीं बनते हैं, तो इसे सिर्फ सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि एक राजनीतिक युग का अंत माना जाएगा। उनकी जगह कौन लेगा, यह आने वाले वर्षों में बिहार की दिशा और दशा को तय करेगा।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 इस साल के अंत तक होने की उम्मीद है। राज्य की सभी 243 सीटों के लिए चुनाव होंगे। चुनाव आयोग का मानना है कि ये चुनाव अक्टूबर और नवंबर के बीच कराए जा सकते हैं। वर्तमान में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कार्यकाल 22 नवंबर 2025 तक है, इसलिए चुनाव उससे पहले ही संपन्न कर लिए जाएंगे। इस बार के विधानसभा चुनाव में मुख्य रूप से दो बड़े गठबंधन, एनडीए और महागठबंधन, के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिलेगा। इसके अलावा, प्रशांत किशोर की नई राजनीतिक पार्टी जन सुराज पार्टी भी चुनावी मैदान में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रही है। पिछली बार नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए सरकार बनी थी और इस बार भी दोनों प्रमुख गठबंधनों के बीच प्रतिस्पर्धा राजनीतिक परिदृश्य का मुख्य आकर्षण होगी।
फिलहाल पार्टी में ऐसा कोई विकल्प नहीं दिखता जो नीतीश की तरह लोकप्रिय हो। इस कमी के कारण JDU के भीतर नेतृत्व को लेकर मतभेद और फूट भी पैदा हो सकते हैं। क्या JDU इस राजनीतिक बदलाव के दौर में खुद को फिर से स्थापित कर पाएगी? यह आने वाले महीनों में स्पष्ट होगा। DN इस पर लगातार नजर रखेगा।