

नन्दा देवी राज जात यात्रा उत्तराखंड की एक प्राचीन और दिव्य तीर्थयात्रा है, जो हर 12 वर्ष में आयोजित होती है। यह यात्रा देवी नन्दा के हिमालय लौटने की प्रतीक है, जिसमें श्रद्धालु कठिन मार्गों से गुजरते हैं।
नन्दा देवी राज जात यात्रा (सोर्स- इंटरनेट)
Chamoli: उत्तराखंड की नन्दा देवी राज जात यात्रा, जिसे 'हिमालयन कुम्भ' भी कहा जाता है, एक प्राचीन और दिव्य तीर्थयात्रा है। यह यात्रा हर 12 वर्ष में आयोजित होती है और देवी नन्दा के हिमालय लौटने की प्रतीक मानी जाती है। यात्रा की शुरुआत चमोली जिले के कुरुर गांव स्थित नन्दा देवी सिद्धपीठ मंदिर से होती है और यह लगभग 280-290 किलोमीटर की दूरी तय करती है, जिसमें श्रद्धालु कठिन हिमालयी मार्गों से गुजरते हैं।
इस यात्रा को एशिया की सबसे लंबी पैदल यात्रा के तौर पर गिना जाता है, जो चमोली जिले के कर्णप्रयाग नौटी गांव से शुरु होकर होमकुंड तक सफर तय करती है। बता दें कि यह यात्रा अंतिम बार वर्ष 2014 में हुई थी। वैसे यह यात्रा साल 2013 में होनी थी, लेकिन आपदा के कारण इसे रद्द कर वर्ष 2014 में आयोजित की और अब अगली यात्रा साल 2026 में होने की आंशका है।
उत्तराखंड के चमोली जिले के कर्णप्रयाग के पास कोटी पहाड़ी गांव में एक पुरुष मेमना ने जन्म ले लिया है, जिसके चार पूरी तरह विकसित सींग हैं। इन सब के बाद स्थानीय लोगों के बीच धार्मिक उमंग भर आई। बता दें कि यह मेमना एक स्थानीय चरवाहे के झुंड में पैदा हुआ है, जिसे राज्य के निवासी 'चौसिंघा खडू' कहते हैं।
चौसिंघा खडू (सोर्स- इंटरनेट)
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हालांकि आप सोच रहे होंगे कि इस यात्रा से इस बकरी यानी 'चौसिंघा खडू' का क्या तालमेल है तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यह खडू पूरी नंदादेवी राज जात यात्रा का नेतृत्व करती है। ऐसा माना जाता है कि यह खडू यात्रा शुरु होने से दो-ढाई साल पहले जन्म ले लेती है। इस खडू तो मां नंदा देवी की सवारी भी कहते हैं, जिसे सोना-चांदी पहनाया जाता है और होमकुंड में विदा कर दिया जाता है। ताकि वह आगे की यात्रा कर कैलाश पहुंच सके।
नन्दा देवी राज जात यात्रा का इतिहास 1200 वर्षों से भी पुराना है, हालांकि लिखित दस्तावेज 1843 से उपलब्ध हैं। प्रारंभ में यह यात्रा कत्युरी राजाओं द्वारा आयोजित की जाती थी, बाद में गढ़वाल के राजाओं ने इसे जारी रखा, और वर्तमान में यह स्थानीय समुदायों द्वारा सरकारी सहायता से आयोजित होती है। यह यात्रा देवी नन्दा के हिमालय लौटने की प्रतीक है, जिसमें एक चार सींग वाले बकरा (चौसिंगा) को होमकुंड में छोड़ा जाता है, जो देवी के संदेशवाहक के रूप में कार्य करता है।
यात्रा का मार्ग कुरुर से शुरू होकर नंदकेसरी, मुण्डोली, वाण, बेदनी बुग्याल, पत्थर नचौनी, भगवाबासा, त्रिशुली, रूपकुंड, शिला समुद्र होते हुए होमकुंड तक जाता है। इस मार्ग में श्रद्धालु विभिन्न गांवों और उच्च हिमालयी स्थलों पर विश्राम करते हैं। यात्रा के दौरान, देवी नन्दा की पूजा, यज्ञ और अन्य धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं, जो स्थानीय संस्कृति और परंपराओं का हिस्सा हैं।
मां नन्दा देवी (सोर्स- इंटरनेट)
नन्दा देवी राज जात यात्रा न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह उत्तराखंड की सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान का प्रतीक भी है। यात्रा के दौरान, गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्रों के लोग एकजुट होते हैं, और विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों, लोक गीतों और नृत्यों का आयोजन किया जाता है। यह यात्रा क्षेत्रीय एकता, भाईचारे और सांस्कृतिक धरोहर को बढ़ावा देती है।
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हाल ही में, उत्तराखंड सरकार ने 2026 की यात्रा के लिए डिजिटल ट्रैकिंग प्रणाली और दूरसंचार सुविधाओं की स्थापना की योजना बनाई है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य स्तर पर मासिक और विभागीय स्तर पर साप्ताहिक निरीक्षणों का निर्देश दिया है, ताकि यात्रा की सुरक्षा, स्वास्थ्य, आवास, भोजन और चिकित्सा सुविधाओं को सुनिश्चित किया जा सके। इसके अतिरिक्त, पर्यावरण संरक्षण और सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा के लिए भी कदम उठाए जा रहे हैं।