

जामा मस्जिद विकासनगर के मुतवल्ली खालिद मंसूरी ने जानकारी देते हुए बताया कि बकरीद केवल कुर्बानी का ही नहीं, बल्कि त्याग और सेवा का प्रतीक पर्व है। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
अदा की गई ईद की नमाज
विकासनगर: उत्तराखंज के विकास नगर क्षेत्र में आज पूरे श्रद्धा और उल्लास के साथ ईद-उल-अजहा (बकरीद) का त्यौहार मनाया गया। इस अवसर पर जामा मस्जिद विकासनगर समेत क्षेत्र की तमाम मस्जिदों में सुबह नमाज अदा की गई। नमाज में बड़ी संख्या में मुस्लिम समाज के लोग शामिल हुए और देश की खुशहाली, भाईचारे और अमन-चैन के लिए दुआ की गई।
जामा मस्जिद विकासनगर के मुतवल्ली खालिद मंसूरी ने जानकारी देते हुए बताया कि बकरीद केवल कुर्बानी का ही नहीं, बल्कि त्याग और सेवा का प्रतीक पर्व है। उन्होंने बताया कि मस्जिद में शांतिपूर्ण तरीके से नमाज अदा की गई और इसके बाद लोगों ने एक-दूसरे को ईद की मुबारकबाद दी।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार खालिद मंसूरी ने अपने संबोधन में मुस्लिम समाज से विशेष अपील करते हुए कहा कि कुर्बानी के दौरान ली गई फोटो और वीडियो को सोशल मीडिया पर साझा न करें, क्योंकि इससे समाज के दूसरे वर्गों की भावनाएं आहत हो सकती हैं। उन्होंने कहा कि कुर्बानी को पर्दे में रहकर किया जाए और वेस्ट मटेरियल का सही ढंग से निपटान किया जाए ताकि साफ-सफाई बनी रहे और किसी को कोई आपत्ति न हो।
उन्होंने कहा कि यह पर्व इंसानियत, भाईचारे और बलिदान का संदेश देता है, इसलिए सभी समुदायों को एक-दूसरे के धार्मिक भावनाओं का सम्मान करना चाहिए। साथ ही, समाज में सौहार्द बनाए रखने के लिए सभी को संयम और समझदारी के साथ पर्व मनाना चाहिए।
इस मौके पर विकासनगर पुलिस प्रशासन भी पूरी तरह से सतर्क नजर आया। नगर के विभिन्न इलाकों में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे। मस्जिदों के बाहर पुलिस बल की तैनाती की गई थी ताकि कोई भी असामाजिक तत्व माहौल बिगाड़ने की कोशिश न कर सके। क्षेत्रीय पुलिस अधिकारी भी लगातार गश्त कर रहे थे।
कुल मिलाकर विकासनगर में बकरीद का पर्व शांति और सद्भाव के साथ संपन्न हुआ, जिसमें सभी ने एकता, प्रेम और भाईचारे का संदेश दिया।
क्यों है ईद-उल-अजहा का महत्व
ईद-उल-अजहा की कहानी हज़रत इब्राहीम से जुड़ी है, जिसमें वे अल्लाह के आदेश पर अपने बेटे हज़रत इस्माईल की कुर्बानी देने को तैयार हो गए थे. लेकिन, खुदा ने उन्हें एक जानवर दे दिया. इसलिए, इस दिन एक बकरी, भेड़ या अन्य जानवर की कुर्बानी दी जाती है. बकरीद पर सबसे अहम रस्म होती है ‘कुर्बानी’. इस कुर्बानी के जरिए यह संदेश दिया जाता है कि अल्लाह की राह में कुछ भी कुर्बान करने का जज्बा रखना चाहिए।
जाने क्यों दी जाती हैं कुर्बानी
ईद-उल-अजहा हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में मनाया जाता है. इस दिन इस्लाम धर्म के लोग किसी जानवर की कुर्बानी देते हैं. इस्लाम में सिर्फ हलाल के तरीके से कमाए हुए पैसों से ही कुर्बानी जायज मानी जाती है. कुर्बानी का गोश्त अकेले अपने परिवार के लिए नहीं रख सकता है. इसके तीन हिस्से किए जाते हैं. पहला हिस्सा गरीबों के लिए होता है. दूसरा हिस्सा दोस्त और रिश्तेदारों के लिए और तीसरा हिस्सा अपने घर के लिए होता है।