

टिहरी झील के पानी में गिरावट के साथ, स्थानीय लोग अजीब सी घंटी की आवाज़ सुनने का दावा करते हैं। वैज्ञानिक इसे प्राकृतिक कारणों से जोड़ते हैं, लेकिन क्या यह कोई छुपा हुआ रहस्य है? क्या झील के नीचे कुछ और दबा हुआ है, जिसे समय ने छुपा रखा है? जाननें के लिए पढ़ें पूरी खबर
टिहरी की गहराइयों में छिपी एक कहानी
Tehri: उत्तराखंड की टिहरी झील आज देश की सबसे बड़ी मानव निर्मित झीलों में गिनी जाती है। लेकिन इसी झील के नीचे बसा था एक पुराना टिहरी शहर, जिसमें मंदिर, बाजारों और यादों से भरा एक संसार था। जब बांध बना, पूरा शहर पानी में समा गया। वर्षों बाद भी उस पुराने शहर की कहानियाँ लोगों की ज़ुबान पर हैं।
झील किनारे रहने वाले कई लोग दावा करते हैं कि गर्मियों के दिनों में, जब पानी का स्तर घटता है, तो रात के सन्नाटे में मंदिर की घंटी बजती हुई सुनाई देती है। रमेश गढ़वाली, जो झील के पास रहते हैं, वह बताते हैं कि पहले लगा हवा का असर होगा, पर हर बार पानी घटते ही वही आवाज़ आती है। ऐसा लगता है जैसे कोई पुकार रहा हो। यह आवाज़ आसपास के गांवों में चर्चा का विषय बनी रहती है। बुज़ुर्ग इसे डूबे शहर की याद कहते हैं।
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भूविज्ञानी डॉ. सीमा भट्ट के अनुसार यह hydro-acoustic effect हो सकता है। मतलब जब झील का पानी नीचे जाता है, तब तल में मौजूद हवा, मिट्टी और दबाव से ध्वनियाँ बनती हैं, जो घंटी जैसी प्रतीत होती हैं। उन्होंने यह भी बताया कि झील के तल में बचे संरचनाओं से आवाज़ें टकराकर echo पैदा करती हैं, जिससे लगता है जैसे घंटी बज रही हो।
वहीं स्थानीय लोगों के लिए यह केवल भौतिक प्रभाव नहीं, बल्कि आस्था की गूंज है। वे मानते हैं कि यह घंटी पुराने मंदिर की आत्मा की पुकार है जो आज भी अपने देवस्थान की याद में बज उठती है। हर साल कुछ श्रद्धालु झील किनारे दीप जलाते हैं और प्रार्थना करते हैं कि पुराना टिहरी फिर किसी रूप में जीवित रहे।
टिहरी प्रशासन के अनुसार अब तक किसी ने इस तरह की आवाज़ का आधिकारिक प्रमाण नहीं दिया है। जिलाधिकारी कार्यालय के अनुसार, ऐसी कोई रिकॉर्डिंग या वैज्ञानिक पुष्टि नहीं है, लेकिन स्थानीय मान्यताएँ अपनी जगह कायम हैं।
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वैज्ञानिक चाहे इसे प्राकृतिक ध्वनि कहें, पर जो लोग वहां रहते हैं उनके लिए यह सिर्फ़ आवाज़ नहीं, बल्कि खोए हुए टिहरी की सांसें हैं। जब हवा और पानी एक साथ गूंजते हैं, तो लगता है जैसे पहाड़ खुद बोल रहे हों मैं अभी ज़िंदा हूँ।