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उत्तर प्रदेश के राज्य कर विभाग ने करोड़ों रुपए के आईटीसी घोटाले में बड़ी कार्रवाई की है इस घोटाले की गंभीरता को देखते हुए विभाग ने तीन अफसरों पर गाज गिराई है।
आईटीसी घोटाले में बड़ा एक्शन
Lucknow: यूपी के राज्य कर विभाग ने मंगलवार को 21 करोड़ के आईटीसी घोटाले में बड़ी कार्रवाई की है। राज्य कर विभाग मामले में हापुड़ में तैनात तीन सहायक आयुक्त को निलंबित कर दिया है।
जानकारी के अनुसार इन तीनों सहायक आयुक्तों पर फर्जीवाड़े से आईटीसी का गलत लाभ उठाने का आरोप है। इन अधिकारियों पर मिलीभगत और लापरवाही के आरोप लगे है। सरकार ने मामले को
गंभीरता को देखते हुए तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है।
बताते चले कि इस मामले की शुरू में उच्च स्तरीय जांच की गई थी। जानकारी के अनुसार विभागीय जांच में 19.5 करोड़ की बोगस फर्म का आरोप है। हापुड़ के तत्कालीन सहायक आयुक्त जितेंद्र कुमार और अभय कुमार पटेल को सस्पेंड किया गया।
विभागीय जांच में सामने आया कि हापुड़ में तैनात दो सहायक आयुक्तों की लापरवाही से करीब 19.5 करोड़ रुपये की बोगस फर्म संचालित होती रही थी।
वहीं गोरखपुर के सहायक आयुक्त अजय कुमार को दस्तावेजों की जांच के बिना ही जीएसटी पंजीकरण करने के आरोप में सस्पेंड किया गया।
जांच रिपोर्ट के मुताबिक बोगस फर्मों के जरिए फर्जी बिलिंग (Fake Billing) कर टैक्स चोरी की गई। इन फर्मों ने गलत तरीके से आईटीसी का फायदा उठाया। विभागीय सूत्रों का कहना है कि इस पूरे खेल में अधिकारियों की मिलीभगत से सिस्टम का दुरुपयोग हुआ।
कई महीनों तक फर्जीवाड़ा जारी रहा और विभाग को करोड़ों का नुकसान हुआ। घोटाले की गंभीरता को देखते हुए विभाग ने तत्काल प्रभाव से तीनों सहायक आयुक्तों को निलंबित कर दिया। अधिकारियों पर आरोप है कि उन्होंने न केवल लापरवाही बरती बल्कि जानबूझकर निगरानी नहीं की। विभागीय आदेश में साफ कहा गया है कि टैक्स चोरी से जुड़े मामलों में किसी भी स्तर पर ढिलाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
हाल ही में राज्य सरकार ने टैक्स चोरी और आईटीसी घोटालों पर जीरो टॉलरेंस (Zero Tolerance) की नीति अपनाई है। सरकार का मानना है कि ऐसे घोटाले सीधे राज्य की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाते हैं। अधिकारियों पर कार्रवाई का मकसद सिस्टम को साफ और पारदर्शी बनाना है।
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मामला अब उच्च स्तरीय जांच समिति को सौंप दिया गया है। समिति यह पता लगाएगी कि अधिकारियों की भूमिका कितनी गहरी थी और किस स्तर तक मिलीभगत हुई। माना जा रहा है कि जांच के बाद और भी बड़े नाम सामने आ सकते हैं।
निलंबित अधिकारियों पर मिलीभगत करने और अपने क्षेत्र में पर्यवेक्षण (निगरानी) में ढिलाई बरतने के गंभीर आरोप लगे हैं। यह पूरा मामला अब उच्च स्तरीय जांच के अधीन है, ताकि घोटाले की जड़ तक पहुंचा जा सके और इसमें शामिल अन्य व्यक्तियों की पहचान की जा सके।