

अपना दल की मुखिया अनुप्रिया पटेल ने आरपी गौतम को पार्टी का नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया। पूरी अपडेट के लिए पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की ये रिपोर्ट
आरपी गौतम को बनाया पार्टी का नया प्रदेश अध्यक्ष
लखनऊ: उत्तर प्रदेश में इस वक्त काफी हंगामा मचा हुआ है, जिसके चलते केंद्रीय मंत्री और अपना दल (Soneylal) की मुखिया अनुप्रिया पटेल सुर्खियों में बनी हुई है। बता दें कि अनुप्रिया पटेल ने आरपी गौतम को पार्टी का नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है। अब तक वह सहकारिता मंच के प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे थे, जो अब प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभालेंगे।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता को मिली जानकारी के मुताबिक अपना दल ने प्रेस विज्ञाप्ति जारी करते हुए इस बात का ऐलान किया और कहा कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी के संस्तुति पर तथा माननीया राष्ट्रीय अध्यक्ष से प्राप्त अनुमोदन के क्रम में प्रदेश अध्यक्ष (सहकारिता मंच) के पद पर कार्यरत जाटव आरपी गौतम को अपना दल (एस) उत्तर प्रदेश का प्रदेश अध्यक्ष नामित किया जाता है।
सीतापुर के निवासी है पार्टी के नए प्रदेश अध्यक्ष
बता दें कि यह आरपी गौतम सीतापुर के रहने वाले हैं, जो एक दलित वर्ग से संबंधित है। ऐसे में अनुप्रिया पटेल ने उन्हें अपना दल का प्रदेश अध्यक्ष बनाकर पिछड़े वर्ग के साथ-साथ दलित वर्ग को भी साधा है और उनका सर्पोट हासिल किया है।
पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का बयान
पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने कहा है कि आरपी गौतम की छवि एक जनसंपर्क में दक्ष और निचले तबके से गहरा जुड़ाव रखने वाले नेता के रूप में रही है। गौतम की संगठनात्मक क्षमता और सामाजिक अनुभव को देखते हुए उन्हें यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई है। हमें और पूरी पार्टी को विश्वास है कि उनके नेतृत्व में पार्टी प्रदेश में और अधिक सशक्त होगी।
प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति पर राजनीतिक विश्लेषकों का कहना
वहीं राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि एक हफ्ते पहले ही अनुप्रिया पटेल ने घोषणा की थी कि उनकी पार्टी पंचायत चुनाव अकेले लड़ेगी। ऐसे में आरपी गौतम को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर उन्होंने दलित कार्ड खेला है, जिसका लाभ उन्हें आगामी पंचायत चुनाव में मिल सकता है।
राजकुमार पाल ने 6 मई को दिया इस्तीफा
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि छह मई को राजकुमार पाल ने प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। अनुप्रिया पटेल को भेज गए लेटर में उन्होंने आरोप लगाए थे कि पार्टी डॉ. अंबेडकर और डॉ. सोनेलाल पटेल के विचारों से भटक चुकी है। इसके बारे में उन्होंने कई बार पार्टी को अवगत कराया, लेकिन उनकी बातों को अनसुना कर दिया गया।