गोरखपुर: पितृपक्ष में तर्पण करने का महत्व, जानें इसके पीछे की ये मान्यता

पितृपक्ष के पावन अवसर पर आचार्य विनोद जी महाराज ने पितृ तर्पण का महत्व बताते हुए कहा कि यह धार्मिक अनुष्ठान मनुस्मृति में पितृयज्ञ के रूप में वर्णित है। तर्पण का मुख्य उद्देश्य स्वर्गस्थ पूर्वजों की तृप्ति और संतानों के सुख-संतोष की वृद्धि करना है। पढिए पूरी खबर

Post Published By: Deepika Tiwari
Updated : 8 September 2025, 4:54 PM IST
google-preferred

गोरखपुर: पितृपक्ष के पावन अवसर पर आचार्य विनोद जी महाराज ने पितृ तर्पण का महत्व बताते हुए कहा कि यह धार्मिक अनुष्ठान मनुस्मृति में पितृयज्ञ के रूप में वर्णित है। तर्पण का मुख्य उद्देश्य स्वर्गस्थ पूर्वजों की तृप्ति और संतानों के सुख-संतोष की वृद्धि करना है। आचार्य जी ने बताया कि तर्पण का अर्थ केवल जल अर्पित करना नहीं, बल्कि उसमें दूध, जौ, चावल, तिल, चंदन, फूल आदि मिलाकर पवित्र भाव से पूर्वजों को समर्पित करना होता है। श्रद्धा, कृतज्ञता, प्रेम और शुभकामनाओं के साथ किए गए तर्पण से पूर्वज तृप्त होते हैं और अपने वंशजों पर आशीर्वाद बरसाते हैं।

तर्पण करने से आत्माओं को मोक्षमार्ग

आचार्य विनोद जी महाराज ने यह भी स्पष्ट किया कि पितृ तर्पण उसी तिथि को किया जाता है, जिस दिन पूर्वजों का परलोक गमन हुआ था। यदि मृत्यु तिथि ज्ञात न हो तो आश्विन कृष्ण अमावस्या यानी सर्वपितृमोक्ष अमावस्या को तर्पण करना आवश्यक माना गया है। इसके पीछे यह मान्यता है कि बिना तर्पण के मृत आत्माएं भटकती रहती हैं और शांति को प्राप्त नहीं हो पातीं। तर्पण करने से आत्माओं को मोक्षमार्ग प्राप्त होता है।

6 प्रकार के तर्पण कर्मकांड

आचार्य जी ने पितृ तर्पण की गूढ़ प्रक्रिया पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि श्राद्ध के दौरान कुल 6 प्रकार के तर्पण कर्मकांड होते हैं। देवतर्पण में जल, वायु, सूर्य, अग्नि, चंद्र, विद्युत और अवतारी ईश्वर अंशों की मुक्त आत्माएं पवित्र उद्देश्य से मानव कल्याण हेतु आती हैं। ऋषितर्पण में नारद, व्यास, सुश्रुत जैसे ऋषियों के प्रति श्रद्धा व्यक्त की जाती है। दिव्यमानवतर्पण में पांडव, महाराणा प्रताप, राजा हरिश्चंद्र, शिवाजी जैसे महापुरुषों का सम्मान किया जाता है। दिव्यपितृतर्पण में परंपरा और पवित्रता की विरासत छोड़ने वाले पूर्वजों की श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। यमतर्पण के माध्यम से जीवन-मरण चक्र की व्यवस्था करने वाली शक्ति यमराज के प्रति स्मरण और सम्मान प्रकट किया जाता है। मनुष्यपितृतर्पण में अपने परिवार के सभी सदस्य, गुरु, मित्र, शिष्य आदि के प्रति आभार प्रकट किया जाता है।

सकारात्मक सोच और सद्भावना का संचार

आचार्य विनोद जी महाराज ने कहा कि तर्पण कर्मकांड हमारे जीवन में सकारात्मक सोच और सद्भावना का संचार करता है। इससे मनुष्य सत्कर्म की ओर अग्रसर होकर अपने जीवन का सर्वोत्तम लक्ष्य साध सकता है। उन्होंने सभी वंशजों से आग्रह किया कि पितृपक्ष में श्रद्धा भाव से तर्पण करें और पूर्वजों को आशीर्वाद स्वरूप स्मरण करें। यह पावन कार्य हमारे जीवन को धार्मिकता, सदाचार और नैतिकता के मार्ग पर स्थिर बनाता है।

Sonbhadra: नदी में छलांग लगाकर विवाहिता ने की आत्महत्या की कोशिश, पुलिस के पूछताछ पर हुआ चौकाने वाला खुलासा

 

Location :