प्रयागराज में भी मुम्बई जैसी गणेश चतुर्थी की रौनक, मूर्ति निर्माण में जुटे बंगाल के कलाकार

प्रयागराज में 27 अगस्त से शुरू हो रहे गणेश महोत्सव को लेकर तैयारियां जोरों पर हैं। बंगाल से आए कलाकार महीनों पहले से प्रतिमाएं बना रहे हैं। मूर्ति निर्माण के बाद वे दुर्गा पूजा की तैयारियों में भी लग जाएंगे।

Post Published By: Tanya Chand
Updated : 21 August 2025, 1:11 PM IST
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Prayagraj: उत्तर प्रदेश का पावन नगरी प्रयागराज अब सिर्फ कुंभ और संगम के लिए नहीं, बल्कि गणेश महोत्सव की भव्यता के लिए भी जाना जा रहा है। जैसे-जैसे 27 अगस्त की तारीख नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे यहां गणेश चतुर्थी की तैयारियां अंतिम चरण में पहुंच गई हैं। शहर के कई मोहल्लों और कॉलोनियों में पंडाल सजाए जा चुके हैं और कुछ स्थानों पर मूर्तियां स्थापित कर पूजा-अर्चना भी प्रारंभ हो गई है।

पिछले कुछ वर्षों से प्रयागराज में गणेश महोत्सव का उत्सव जिस तेजी से बढ़ रहा है, उसने यहां की धार्मिक-सांस्कृतिक छवि को एक नया आयाम दिया है। खासकर युवा वर्ग और विभिन्न सामाजिक संगठनों की भूमिका इसे और भी भव्य बना रही है।

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बंगाल से आए कलाकारों की मेहनत रंग ला रही
गणेश महोत्सव की तैयारियों के बीच सबसे अधिक आकर्षण का केंद्र बनी हैं यहां की खूबसूरत और जीवंत मूर्तियां। इन मूर्तियों को बनाने के लिए विशेष रूप से पश्चिम बंगाल से कलाकार प्रयागराज पहुंचे हैं। इन्हीं में से एक कलाकार सुब्रतो बनर्जी हैं, जो पिछले कई वर्षों से प्रयागराज आकर मूर्ति निर्माण का कार्य करते आ रहे हैं।

सुब्रतो बताते हैं, "हम मई-जून के महीने में ही आकर काम शुरू कर देते हैं। एक मूर्ति को बनाने में कम से कम एक से दो महीने का समय लग जाता है। पहले उसका ढांचा तैयार किया जाता है, फिर मिट्टी की परत चढ़ाई जाती है। जब भगवान के स्वरूप की बारीकी तय हो जाती है, तब रंग-रोगन के साथ प्रतिमा को अंतिम रूप दिया जाता है।"

श्रद्धा और कला का मेल
सुब्रतो और उनकी टीम की कोशिश यही होती है कि जब लोग मूर्ति को देखें, तो उन्हें यह महसूस हो कि वे वास्तव में भगवान गणेश के दर्शन कर रहे हैं। मूर्तियों की आंखों की पुतलियां, मुख की भाव-भंगिमा, और हाथों में वस्त्रों की कलाकारी देखकर कोई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता।

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इन मूर्तियों में पारंपरिक स्वरूप के साथ-साथ आधुनिक थीमों का भी समावेश हो रहा है। कहीं इको-फ्रेंडली गणेश दिख रहे हैं तो कहीं पारंपरिक बंगाली शैली में रचित विशाल गणपति लोगों के आकर्षण का केंद्र हैं।

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