इलाहाबाद हाईकोर्ट में रसूखवालों को मिल जाएगा मौका, जानें क्या है पूरा मामला

इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा अधिवक्ताओं की नियुक्ति व्यवस्था पर कड़ा रुख अपनाते हुए बताया गया है कि यहाँ एक तरह की “हकदारी संस्कृति” व्याप्त हो किया गया है। इसके चलते सिर्फ प्रभावशाली परिवारों को मौका मिल जाता है। पढ़ें पूरी खबर

Post Published By: Deepika Tiwari
Updated : 16 August 2025, 3:03 PM IST
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Prayagraj News: इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा अधिवक्ताओं की नियुक्ति व्यवस्था पर कड़ा रुख अपनाते हुए बताया गया है कि यहाँ एक तरह की “हकदारी संस्कृति” व्याप्त हो किया गया है। इसके चलते सिर्फ प्रभावशाली परिवारों को मौका मिल जाता है। वहीं इस दौरान देखा जाए तो मेहनती लोगों को धोखा दिया जा रहा है। यहां आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोट की एकलपीठ द्वारा जुबेदा बेगम एंव दूसरे लोगों की याचिका सुनवाई के दौरान दिया गया है।

पूर्व चालक के परिवार से जुड़ा

जानकारी के मुताबिक, कोर्ट ने जानकारी देते हुए बताया गया है कि मामला उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम (यूपीएसआरटीसी) के एक पूर्व चालक के परिवार से जुड़ा हो गया था। इसमें निगम के अधिवक्ता पर लापरवाही का आरोप लगाया गया है।सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने साफ तौर पर दिया गया है कि पारिवारिक प्रभाव की वजह बिना काम कर रहे युवा और पहले पीढ़ी को लेकर सक्षम वकीलों को निगमों को लेकर प्रतिनिधित्व करने को लेकर मौका मिल जाता है।

अधिवक्ताओं की नियुक्ति के साथ पारदर्शिता

कोर्ट ने कहा कि वर्तमान नियुक्ति प्रथाओं से विधि-शासन कमजोर होने लग जाता है और बार के समक्ष नई प्रतिभाओं को योगदान देने का प्रयास किया गया है। इसकी वजह से वकीलों को हक हनन होने लग जाते हैं। इसकी वजह से न्याय व्यवस्था को लेकर प्रतिकूल असर पड़ना शुरू हो जाता है। इसकी वजह से न्यायालय द्वारा निगमों को लेकर अधिवक्ताओं की नियुक्ति के साथ पारदर्शिता के साथ पेशेवर योग्यता की जांच करने को लेकर जोर दिया जा चुका है।

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निगमों के कानूनी प्रतिनिधित्व में निष्पक्षता

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपीएसआरटीसी के प्रबंध निदेशक द्वारा निर्देश दिया गया है कि वे बोर्ड की बैठक बुलाकर नियुक्ति प्रक्रिया पर नई, पारदर्शी नीति बनाया गया है। इसमें योग्यता को लेकर पहली पीढ़ी के साथ ही अवसर देने का प्राविधान स्पष्ट किया गया है।कोर्ट ने यह योजना अगली सुनवाई (22 सितंबर) तक प्रस्तुत करने को लेकर निर्देश दिया जा चुका है। न्यायालय ने संकेत दिया कि यदि नियुक्तियों में पारदर्शिता नहीं लाई जा चुकी है और ऐसी ही ‘हकदारी’ बन जाती है तो आगे सख्त निर्देश और कार्रवाई संभावित किया गया है, ताकि निगमों के कानूनी प्रतिनिधित्व में निष्पक्षता पुनः स्थापित किया जा सकता है।

इस आदेश का स्वागत वरिष्ठ वकीलों द्वारा किया गया है। उन्होंने बताया है कि अगर नियुक्ति प्रक्रिया पारदर्शी बनेगी तो पहली पीढ़ी के कई सक्षम वकीलों को पूरी तरह से अवसर प्राप्त हो जाएगा और विधि-शासन की मजबूती का प्रयास किया जाना है। वहीं अन्य विशेषज्ञों ने भी जानकारी दिया है कि कंपनियों व निगमों द्वारा पेशेवरता के आधार को लेकर अधिवक्ता चुनने से सार्वजनिक हितों का बेहतर संरक्षण हो जाता है।

 

 

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