

मथुरा के वृंदावन में लाखों की संख्या में भक्त बांके बिहारी के दर्शन करने के लिए जाते है। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
बांके बिहारी मंदिर
हापुड़: पिलखुवा हैंडलूम नगरी के नाम से देश से लेकर विदेश तक अपने कपड़ों को लेकर काफी विख्यात है। देश की राजधानी से 50 किलोमीटर दूर पिलखुवा नगर बसा हुआ है। इसके रेलवे रोड पर स्थित घास मंडी तिराहे पर राधा कृष्ण मंदिर हैं। जो 200 साल प्राचीन है। जिसमें बांके बिहारी का साक्षात रूप विराजमान हैं।
डाइनामाइट न्यूज संवाददाता के अनुसार, मथुरा के वृंदावन में लाखों की संख्या में भक्त बांके बिहारी के दर्शन करने के लिए जाते है, लेकिन जो भी भक्त वृंदावन नहीं जा पाते हैं वो पिलखुवा के राधा कृष्ण मंदिर में दर्शन करने के लिए आते है।
200 साल से परिवार की चार पीढ़ी कर रही है सेवा
मंदिर समिति प्रबंधक मूलचंद अत्रे ने बताया कि राधा कृष्ण मंदिर करीब 200 सालों से अधिक पुराना है। उनका परिवार चार पीढ़ियों से मंदिर की देखरेख कर रहा है। उन्होंने बताया कि उनके पापा के दादा के पापा उस दौरान राजस्थान के जयपुर से राधा कृष्ण भगवान की प्रतिमा को लेकर यहां पर आए थे। जिसके बाद मंदिर का निर्माण कार्य शुरू कराया गया था और विधि विधान से मंदिर में मूर्ति को स्थापित किया था। मंदिर की मान्यता है कि जो भी भक्त मन में मनोकामना को मानकर 40 दिन की परिक्रमा करता हैं तो उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होती है। वहीं, जब देश में अंग्रेजों का राज था तो अंग्रेजी हुकुमत भी मंदिर में भगवान के दर्शन करने के लिए आते थे।
बांके बिहारी के रूप में है राधा कृष्ण
वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में बांके बिहारी राधा के रूप में विराजमान है। वहीं राधा कृष्ण मंदिर में भी बांके बिहारी जी के साथ राधा जी भी विराजमान है। मूलचंद अत्रे बताते है कि मंदिर में दर्शन करने के लिए पिलखुवा समेत आस पास से भक्त आते है। या जो वृंदावन नहीं जा पाते है वो मंदिर में आकर भगवान के दर्शन करते है।
आरती में आते हैं सैकड़ों भक्त
मंदिर के सेवादार राजीव शर्मा और पुजारी अंकुर शर्मा ने बताया कि मंदिर में प्रात काल और रात को मंदिर में आरती की जाती है। सैकड़ों की संख्या में भक्त मंदिर में आरती करने के लिए आते है। उन्होंने बताया कि भक्तों की मनोकामना पूर्ण होने के बाद मंदिर में आकर भंडारे का आयोजन करते है।