Gorakhpur News : कांवड़ यात्रा के दौरान टला बड़ा हादसा, श्रद्धा या जानलेवा लापरवाही?

गोरखपुर में कांवड़ यात्रा के दौरान श्रद्धा की आड़ में लापरवाही का खतरनाक नजारा देखने को मिला। डीजे के साथ चल रही यात्रा में कांवड़ियों ने बिजली के नंगे तारों से ट्रक निकालने की कोशिश की, जिससे बड़ा हादसा होते-होते टल गया। गोरखपुर के कांवड़ियों की लापरवाही ने आस्था के साथ जान को भी जोखिम में डाल दिया।

Gorakhpur : श्रावण मास में शिवभक्ति का उफान अपनी चरम सीमा पर है, लेकिन गोरखपुर के कांवड़ियों की लापरवाही ने श्रद्धा को खतरे की कगार पर ला खड़ा किया। बोल बम कांवरिया संघ, चवरिया बुजुर्ग (कौड़ीराम) के शिवभक्तों ने बड़हलगंज से पिपराइच शिव मंदिर तक की कांवर यात्रा में ऐसा खतरनाक नजारा पेश किया, जिसे देखकर हर कोई दहल गया।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, 10 चक्का ट्रक पर लदा 10-15 फीट ऊंचा डीजे साउंड सिस्टम जब गीता वाटिका के पास पहुंचा, तो सड़क के ऊपर से गुजर रहे नंगे बिजली के तारों ने रास्ता रोक लिया। कांवड़ियों ने बिना सोचे-समझे जान को दांव पर लगाते हुए नंगे तारों को हाथों से उठाकर ट्रक को निकाला। अगर उस वक्त बिजली सप्लाई चालू हो जाती, तो एक भयानक हादसा निश्चित था, जिसमें न सिर्फ कांवड़ियों की जान खतरे में पड़ती, बल्कि आसपास के लोग भी चपेट में आ सकते थे।

कान फोड़ते शोर से बुजुर्ग-बीमार परेशान

इस दौरान, डीजे की तेज आवाज ने हालात को और बदतर किया। इतना तेज शोर कि राहगीरों को कान बंद करने पड़े। हृदय रोगियों और बुजुर्गों के लिए यह शोर जानलेवा साबित हो सकता है। प्रशासन ने डीजे की ऊंचाई और साउंड लिमिट को लेकर सख्त निर्देश जारी किए हैं, लेकिन कांवड़ियों ने इन नियमों को ठेंगा दिखाते हुए खुलेआम उल्लंघन किया।

प्रशासन की चुप्पी

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या प्रशासन और बिजली विभाग ऐसी संवेदनशील जगहों पर निगरानी कर रहे हैं? अगर कोई हादसा हो जाता, तो इसका जिम्मेदार कौन होता? कांवड़िए प्रशासन को दोष देने में देर नहीं लगाते, लेकिन क्या श्रद्धा के नाम पर जान जोखिम में डालना उचित है?

श्रद्धा या प्रदर्शन की होड़?

यह घटना सवाल खड़े करती है- क्या डीजे की ऊंचाई और कान फोड़ता शोर भक्ति का हिस्सा है या महज दिखावे की होड़? श्रद्धा जरूरी है, लेकिन जब शरीर ही मंदिर है, तो इसे खतरे में डालना कहां की समझदारी? यह वक्त है कि प्रशासन सख्ती से नियम लागू करे और कांवड़िए भी अपनी सुरक्षा को प्राथमिकता दें। आस्था का सम्मान करें, लेकिन जान की कीमत पर नहीं। फिलहाल सवाल बना हुआ है कि क्या यह लापरवाही रुकेगी या श्रद्धा के नाम पर खतरे का खेल जारी रहेगा?

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