छांगुर बाबा के घोड़े पर भरा था माफिया अतीक ने चुनाव नामांकन, निकला ये कनेक्शन

छांगुर बाबा से जुड़े पूरे सिंडेकेट को लेकर रोज नए-नए खुलासा सामने आ रहे है, अब एक और ऐसा ही एक और चौंकाने वाला खुलासा सामने आया है, जिसको सुनकर आप भी दंग रह जाएंगे।

Post Published By: Rohit Goyal
Updated : 14 July 2025, 2:22 PM IST
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New Delhi: छांगुर बाबा से जुड़े पूरे सिंडेकेट को लेकर रोज नए-नए खुलासा सामने आ रहे है, अब एक और ऐसा ही एक और चौंकाने वाला खुलासा सामने आया है, जिसको सुनकर आप भी दंग रह जाएंगे।

धर्मांतरण का काला खेल चला रहे जलालुद्दीन उर्फ छांगुर बाबा के बारे में नए-नए खुलासे हो रहे हैं। अब पता चला है कि छांगुर बाबा माफिया अतीक अहमद का करीबी था। 2014 के लोकसभा चुनाव में श्रावस्ती सीट पर अतीक के लिए प्रचार करने गया था। उसने कई जनसभाओं में माफिया के साथ मंच साझा किया था।

अतीक और छांगुर के रिश्ते की एक दिलचस्प और नाटकीय घटना 2014 के लोकसभा चुनाव के नामांकन के दौरान बलरामपुर कलेक्ट्रेट में घटी थी। दद्दन मिश्र बताते हैं कि छांगुर बाबा ने ही अपना घोड़ा अतीक अहमद को दिया था, जिस घोड़े से अतीक ने 2014 के चुनाव में नामांकन किया था। अतीक उस घोड़े पर सवार होकर बलरामपुर नगर की ओर से कलेक्ट्रेट जा रहा था, तो उसने भाजपा समर्थकों की ओर भी घोड़े को दौड़ा दिया था।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार श्रावस्ती के मुस्लिम बहुल इलाकों में वोटरों को प्रभावित करने के लिए छांगुर बाबा अतीक अहमद के खातिर वोट मांग रहा था। 2014 के चुनाव में अतीक समाजवादी पार्टी के टिकट पर श्रावस्ती सीट से चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में बीजेपी और समाजवादी पार्टी की सीधी टक्कर थी। बीजेपी से दद्दन मिश्रा मैदान में थे और वो ही चुनाव जीते थे। छांगुर बाबा का कोई पैंतरा काम नही आया था और माफिया अतीक चुनाव हार गया।

बताया जाता है कि अतीक के मारे जाने से पहले छांगुर कई बार प्रयागराज भी गया। आरोप है कि अतीक के गुर्गों ने छांगुर के लिए मुंबई की राह आसान की, यानी कि छांगुर के मुंबई की ट्रेन पकड़ने में अतीक के गुर्गों ने भी मदद की थी। यही वो मोड़ था, जहां से कभी मामूली नग बेचने वाला छांगुर करोड़ों में खेलने लगा।

अतीक के संपर्क में आने के बाद छांगुर का प्रभाव इतना बढ़ गया था कि वह मुस्लिमों के बीच खुद को सूफी संत के रूप में स्थापित करने में जुट गया। वो खुद को मुस्लिमों के रहनुमा के तौर पर प्रचारित करने लगा। इसी प्रभाव के दम पर वो अपनी पत्नी को प्रधानी का चुनाव जिताने में भी सफल रहा।

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