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जिले में एक युवक की “घर वापसी” और पुनः हिंदू रीति-रिवाज से विवाह का मामला सुर्खियों में है। यह आयोजन विश्व हिंदू परिषद से जुड़े धर्म यात्रा महासंघ की देखरेख में बाबा रामसनेही घाट मंदिर परिसर में संपन्न हुआ। कार्यक्रम में स्थानीय हिंदू शामिल हुए।
युवक की घर वापसी,हिन्दू रीति रिवाज से हुआ विवाह
Barabanki: बाराबंकी जिले में एक युवक की “घर वापसी” और पुनः हिंदू रीति-रिवाज से विवाह का मामला सुर्खियों में है। यह आयोजन विश्व हिंदू परिषद से जुड़े धर्म यात्रा महासंघ की देखरेख में बाबा रामसनेही घाट मंदिर परिसर में संपन्न हुआ। कार्यक्रम में स्थानीय हिंदू संगठनों के कई पदाधिकारी और संत शामिल हुए।
जानकारी के अनुसार, खेतासरांय थाना क्षेत्र के रिंकू रावत उर्फ मोहम्मद इसरार पुत्र राम औतार रावत की मुलाकात करीब चार वर्ष पहले अयोध्या जनपद के दाऊपुर, मजरा मोहम्मदपुर निवासी साहिबा पुत्री अनवर से मोबाइल फोन के ज़रिए हुई थी। बातचीत का सिलसिला धीरे-धीरे प्रेम संबंध में बदल गया और दोनों घर छोड़कर चले गए।
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आरोप है कि करीब दो वर्ष पूर्व युवती साहिबा ने युवक का धर्म परिवर्तन करा दिया था और दोनों ने मुस्लिम रीति से निकाह किया था। लेकिन अब, दोनों ने हिंदू समाज में पुनः शामिल होने का निर्णय लिया और धर्म यात्रा महासंघ के ज़रिए “घर वापसी” की प्रक्रिया पूरी की।
शुक्रवार को धर्म यात्रा महासंघ के जिला प्रमुख विनय सिंह राजपूत की मौजूदगी में बाबा रामसनेही घाट मंदिर परिसर में दोनों का “शुद्धिकरण संस्कार” किया गया। इसके बाद वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच हिंदू रीति-रिवाज से विवाह संपन्न हुआ।
विवाह के बाद युवती का नाम साहिबा से बदलकर शांति देवी रखा गया, जबकि युवक का नाम पुनः रिंकू रावत रखा गया। दोनों को पुनः हिंदू धर्म में शामिल करते हुए उनके दो बच्चों का नाम भी रखा गया — बड़े बेटे का नाम राम प्रकाश और छोटे का नाम श्याम प्रकाश।
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कार्यक्रम में विश्व हिंदू महासंघ के सोशल मीडिया प्रदेश मंत्री विपिन कौशल, हिंदू सुरक्षा सेवा संघ के जिला अध्यक्ष शुभम कसौधन, नरेंद्र सिंह सोनू, सूरज सिंह, बाबा मुकुंदपुरी, नितिन श्रीवास्तव समेत कई पदाधिकारी मौजूद रहे।
सूत्रों के अनुसार, लगभग दस दिन पहले युवती साहिबा अपने पति का नाम बदलवाने के लिए तहसील कार्यालय आई थी। इसी दौरान एक वकील के माध्यम से यह जानकारी हिंदू संगठनों तक पहुंची। इसके बाद दिल्ली में रह रहे रिंकू रावत को बुलाया गया और पूरी प्रक्रिया मंदिर में पूरी कराई गई।
बाराबंकी का यह मामला न केवल प्रेम और धर्म परिवर्तन की जटिलता को दिखाता है, बल्कि घर वापसी और धार्मिक पहचान के मुद्दे को भी दोबारा चर्चा में ले आया है। स्थानीय संगठनों का कहना है कि यह “सांस्कृतिक पुनर्जागरण” है, जबकि सामाजिक स्तर पर इस घटना ने धार्मिक स्वतंत्रता बनाम सामाजिक दबाव की बहस को फिर से हवा दे दी है।