

एएमयू प्रोफेसर ने धीरेन्द्र शास्त्री द्वारा बकरीद और कुर्बानी को लेकर दिए गए बयान पर विवाद गहराता जा रहा है। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
एएमयू प्रोफेसर ने बाबा बागेश्वर पर किया पलटवार
अलीगढ़: बाबा बागेश्वर धाम के मुखिया धीरेन्द्र शास्त्री द्वारा बकरीद और कुर्बानी को लेकर दिए गए बयान पर विवाद गहराता जा रहा है। अब इस मुद्दे पर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. रेहान अहमद ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता को मिली जानकारी के अनुसार, उन्होंने बाबा के बयान की कड़ी निंदा करते हुए आरोप लगाया कि यह धार्मिक मान्यताओं और आस्थाओं में हस्तक्षेप है।
‘आज कुर्बानी मना कर रहे, कल नमाज़-रोज़ा मना करेंगे?’
प्रोफेसर रेहान अहमद ने कहा कि बाबा बागेश्वर धाम द्वारा कुर्बानी के खिलाफ दिया गया बयान पूरी तरह अनुचित है। उन्होंने तंज कसते हुए कहा, "आज अगर वह कुर्बानी को गलत बता रहे हैं, तो क्या कल को रोज़ा, नमाज़ और जकात को भी न मानने की बात कहेंगे? यह धार्मिक स्वतंत्रता में सीधा हस्तक्षेप है।"
हज के बिना कुर्बानी अधूरी
प्रोफेसर ने यह भी कहा कि इस्लाम धर्म में कुर्बानी का विशेष महत्व है, विशेषकर हज के अवसर पर यह एक अनिवार्य धार्मिक कर्तव्य है। "अगर कोई व्यक्ति कुर्बानी नहीं करता, तो उसका हज अधूरा माना जाता है। यह केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक कर्तव्य है," उन्होंने कहा।
‘बलि प्रथा के पक्ष में नहीं’
बता दें कि बाबा बागेश्वर धाम प्रमुख धीरेन्द्र शास्त्री ने एक सभा के दौरान कहा था कि "हम बलि प्रथा के पक्ष में नहीं हैं। किसी भी जीव की हिंसा धर्म नहीं हो सकती। जब हम किसी को जीवन नहीं दे सकते, तो उसे मारने का अधिकार भी नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि बकरीद में दी जाने वाली कुर्बानी की प्रथा का एक समय पर संदर्भ रहा होगा, लेकिन आज उसके विकल्प मौजूद हैं। इसीलिए वे बलि प्रथा को उचित नहीं मानते।
प्रशासन ने जारी की गाइडलाइन
प्रशासन ने इस पूरे विवाद के बीच बयान जारी कर कहा है कि कुर्बानी केवल उन्हीं पशुओं की की जानी चाहिए जो सरकार द्वारा अनुमत हैं। किसी भी प्रतिबंधित पशु की कुर्बानी नहीं होनी चाहिए। साथ ही सभी धार्मिक गतिविधियों को कानून और गाइडलाइंस के दायरे में रहकर करना जरूरी है।
निंदा और समर्थन दोनों जारी
जहां एक ओर एएमयू प्रोफेसर सहित मुस्लिम समुदाय के लोग बाबा बागेश्वर के बयान की आलोचना कर रहे हैं, वहीं कुछ लोग उनकी जीव हिंसा के विरोध की बात का समर्थन भी कर रहे हैं। फिलहाल यह मुद्दा धार्मिक भावना और धार्मिक स्वतंत्रता के बीच संतुलन की चुनौती बन गया है।