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ब्रिटिश नागरिक बन चुके मौलाना शमसुल हुदा खान को गलत तरीके से वेतन, अवकाश लाभ और VRS दिलाने के आरोप में यूपी सरकार ने अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के 4 अधिकारियों को निलंबित किया। एटीएस जांच में मौलाना का पाकिस्तान और कट्टरपंथी नेटवर्क से संबंध सामने आया है। मामला अब SIT की जांच में है।
आरोपी मौलाना
Lucknow: ब्रिटिश मौलाना शमसुल हुदा खान मामले में उत्तर प्रदेश सरकार ने सख्त कार्रवाई करते हुए अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के चार अधिकारियों को निलंबित कर दिया है। यह कदम उस गंभीर आरोप के बाद उठाया गया है, जिसमें कहा गया था कि ब्रिटेन की नागरिकता लेने के बाद भी मौलाना को भारत में वेतन, अवकाश, पेंशन और VRS जैसे लाभ दिलाए गए। मामला सिर्फ विभागीय लापरवाही का नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े संभावित खतरे से जुड़ा होने के कारण सरकार ने इस पर त्वरित सख्ती दिखाई है।
मौलाना शमसुल हुदा खान सिद्धार्थनगर का रहने वाला और आजमगढ़ के एक मदरसे में सहायक अध्यापक के रूप में नियुक्त था। विभागीय रिकॉर्ड के अनुसार 12 जुलाई 1984 को उसकी नौकरी शुरू हुई। वर्ष 2007 में वह ब्रिटेन चला गया और वहां 2013 में नागरिकता भी हासिल कर ली। दिलचस्प बात यह है कि ब्रिटिश नागरिक बन जाने के बावजूद वह 2017 तक भारत के मदरसे से वेतन लेता रहा।
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एटीएस की जांच में सामने आया कि विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से उसे मेडिकल लीव, वेतन, अवकाश और बाद में VRS के लाभ तक मिलते रहे। आश्चर्यजनक रूप से मौलाना को न सिर्फ 2017 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दे दी गई, बल्कि उसके GPF और पेंशन के फायदे भी जारी रहे। माना जा रहा है कि करीब 16 लाख रुपये उसने अवैध तरीके से प्राप्त किए।
सरकार ने जिन अधिकारियों को निलंबित किया है। उनमें संयुक्त निदेशक एस.एन. पांडेय, गाजियाबाद के डीएमओ साहित्य निकष सिंह, बरेली के लालमन और अमेठी के प्रभात कुमार शामिल हैं। ये सभी अधिकारी उस समय आजमगढ़ में तैनात थे और उन पर मौलाना को गलत तरीके से लाभ दिलाने का आरोप है।
एटीएस जांच में यह भी सामने आया है कि मौलाना लंबे समय से संदिग्ध गतिविधियों में शामिल रहा। रिपोर्ट के अनुसार वह 2007 से ही “इस्लामी प्रचार” के नाम पर पाकिस्तान के काफी शहरों में जाता था। कई धार्मिक संगठनों और मौलवियों से संपर्क में था। उसके भारत में जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेताओं और कुछ संदिग्ध व्यक्तियों से भी संबंध मिले हैं।
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एटीएस ने यह भी खुलासा किया कि मौलाना ‘दावते इस्लाम’ जैसी गतिविधियों को संचालित करता था, जिसे कट्टरपंथ फैलाने वाली गतिविधि माना जाता है। इसके अलावा वह विदेशों से मिली फंडिंग के स्रोत छिपाने की कोशिश करता था और उनका दुरुपयोग करता था।
मौलाना शमसुल हुदा खलीलाबाद में ‘कुलियातुल बनातिर रजबिया’ नाम से एक गर्ल्स मदरसा चला रहा था। वर्ष 2024 में प्रशासन ने संदिग्ध गतिविधियों के चलते इस मदरसे को पहली बार सील किया। लेकिन मौलाना ने तुरंत पास की ही बाउंड्री में इसी नाम से दूसरा मदरसा खोल लिया।
3 नवंबर 2024 को प्रशासन ने दूसरे मदरसे को भी सील कर दिया। जांच टीम का अनुमान है कि विदेशी फंडिंग और कट्टरपंथी नेटवर्क इसी जगह से संचालित होता था। इसके अलावा, मौलाना एक मकान में गर्ल्स हॉस्टल भी चलाता था, जिसमें बस्ती, संतकबीरनगर, आजमगढ़ और अन्य प्रांतों की छात्राएं रहती थीं।
अब तक मौलाना के खिलाफ तीन मामले दर्ज किए जा चुके हैं। विदेशी फंडिंग से जुड़े मामले संतकबीरनगर में दर्ज हैं, जबकि धोखाधड़ी और आर्थिक अनियमितताओं का केस आजमगढ़ में दर्ज है। सबसे नया मामला 2 नवंबर 2024 को खलीलाबाद कोतवाली में दर्ज किया गया, जिसमें विदेशी मुद्रा अधिनियम उल्लंघन, अवैध आर्थिक लाभ और अन्य गंभीर आरोप शामिल हैं।