The MTA Speaks: इजराइल-ईरान युद्ध में अमेरिका की एंट्री! क्या होगा अंजाम, देखें सबसे सटीक विश्लेषण

इजराइल-ईरान युद्ध में अमेरिका की एंट्री के बाद हालाल पहले से ज्यादा तनावपूर्ण हो गये है, “द एमटीए स्पीकस” में देखिये सबसे सटीक विश्लेषण वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश के साथ

Post Published By: Rohit Goyal
Updated : 23 June 2025, 6:48 PM IST
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नई दिल्ली: इस समय पूरी दुनिया वैश्विक संकट से जूझ रही है, जो सिर्फ पश्चिम एशिया तक सीमित नहीं रहा, बल्कि अमेरिका, रूस, भारत और पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले चुका है। 22 साल बाद अमेरिका पहली बार सीधे किसी युद्ध में कूदा है। इससे इजराइल-ईरान युद्ध अब एक निर्णायक मोड़ पर है और परमाणु टकराव की ओर बढ़ता नजर आ रहा है।

ऑपरेशन मिडनाइट हैमर

इजराइल ने ईरान की मिसाइल फैक्ट्री पर हमला कर युद्ध को नई ऊंचाई दी। जवाब में अमेरिका ने ‘ऑपरेशन मिडनाइट हैमर’ चलाया और ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों – फोर्डो, नतांज और इस्फहान – पर भीषण बमबारी की। यह वही अमेरिका है जिसने 2003 के इराक युद्ध के बाद से सीधे युद्ध से परहेज़ किया था। इस ऑपरेशन में 7 B-2 स्टील्थ बॉम्बर्स ने भाग लिया और बंकर बस्टर बम गिराकर परमाणु इन्फ्रास्ट्रक्चर को तबाह कर दिया।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने बयान दिया, "अगर मौजूदा सरकार देश को महान नहीं बना सकती तो बदलाव ज़रूरी है। Make Iran Great Again." उन्होंने ईरान में सत्ता परिवर्तन की वकालत की, जिससे पूरी दुनिया के कूटनीतिक गलियारों में हलचल मच गई। वहीं रूस ने खुलकर ईरान का समर्थन किया और यहां तक कह दिया कि अगर जरूरत पड़ी तो ईरान को वॉरहेड्स दिए जाएंगे। रूस के पूर्व राष्ट्रपति मेदवेदेव ने चेताया कि अमेरिका का यह कदम उलटा असर डालेगा और ईरान और अधिक ताकतवर बनकर उभरेगा।

इजराइल का मिसाइल इंजन फैक्ट्री पर निशाना

इस बीच इजराइल ने देर रात ईरान के शाहरुद में स्थित मिसाइल इंजन फैक्ट्री को निशाना बनाया, जो बैलिस्टिक मिसाइल निर्माण का मुख्य केंद्र माना जाता है। साथ ही तेहरान, केरमांशाह और हमादान जैसे शहरों पर भी एयर स्ट्राइक की गई, जिससे कई सैन्य संयंत्र नष्ट हो गए। यह हमला उस समय हुआ जब अमेरिका इस संघर्ष में प्रत्यक्ष रूप से शामिल हो गया है।

भारत ने इस संकट के दौरान अब तक 1713 नागरिकों को सफलतापूर्वक निकाला है। 'ऑपरेशन सिंधु' के तहत ईरान और इजराइल दोनों क्षेत्रों से भारतीयों की सुरक्षित वापसी कराई गई। इस आपरेशन में भारतीय वायुसेना और विदेश मंत्रालय ने तेजी से समन्वय किया।

ईरान ने दागी बैलिस्टिक मिसाइलें

ईरान ने भी जवाबी कार्रवाई करते हुए 40 से ज्यादा बैलिस्टिक मिसाइलें इजराइल पर दागीं, जिनमें खैबर शकन जैसी एडवांस मिसाइलें शामिल थीं। ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची रूस पहुंचे और राष्ट्रपति पुतिन से मुलाकात कर रणनीतिक सहयोग की बात की। वहीं संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस ने अमेरिका पर अंतरराष्ट्रीय राय और संयुक्त राष्ट्र चार्टर की अवहेलना करने का आरोप लगाया।

तेल बाजार पर बड़ा असर

तेल बाजार भी इस युद्ध के झटके से अछूता नहीं रहा। कच्चे तेल की कीमतों में 3.6% तक की बढ़ोतरी देखी गई और अमेरिकी शेयर बाजारों में भारी गिरावट दर्ज हुई। डाउ फ्यूचर्स 250 अंक नीचे चला गया। अमेरिका ने अपने नागरिकों को विदेशों में अलर्ट रहने की सलाह दी है।

ईरान ने होर्मुज जल डमरू मध्य को बंद करने की ओर कदम बढ़ाया है, जो दुनिया के एक-चौथाई समुद्री तेल व्यापार का मुख्य मार्ग है। ईरानी संसद ने इसके लिए प्रस्ताव भी पास कर दिया है। अंतिम निर्णय सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद लेगी। अगर यह रास्ता बंद होता है तो भारत, चीन और जापान जैसे ऊर्जा-आधारित देश गंभीर संकट में आ सकते हैं।

भारत ने पहले से ही रणनीतिक तैयारी कर रखी है। भारत अब 40 देशों से कच्चा तेल खरीदता है और 74 दिन का रणनीतिक तेल भंडार मौजूद है। एलपीजी का 50% घरेलू उत्पादन से आता है। पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी के अनुसार, भारत के पास 500 तेल कुएं और 42 बिलियन बैरल रिजर्व है। एलएनजी के लिए कतर, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे विकल्पों पर भी तेजी से काम हो रहा है।

जहां एक ओर भारत बहुआयामी रणनीति के तहत ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने में जुटा है, वहीं सरकार ने स्पष्ट संकेत दिया है कि घरेलू पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर असर न पड़े, इसके लिए वह हर स्तर पर निगरानी और हस्तक्षेप के लिए तैयार है। पिछले तीन वर्षों में भारत ने तीन बार ईंधन की कीमतों में कटौती की है और अगर जरूरत पड़ी तो निर्यात को सीमित कर घरेलू आपूर्ति को प्राथमिकता दी जाएगी।

अरब देशों ने की अमेरिका के हमले की निंदा

अब बात करते हैं मुस्लिम और अरब देशों की प्रतिक्रिया की। पाकिस्तान ने अमेरिका के हमले की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि इससे क्षेत्रीय हिंसा बढ़ेगी और ईरान को आत्मरक्षा का पूरा अधिकार है। सऊदी अरब ने इस हमले को ईरान की संप्रभुता का उल्लंघन बताया और कहा कि केवल कूटनीति से ही समाधान निकाला जा सकता है। मिस्र और लेबनान ने भी चेतावनी दी है कि यह हमला पूरे क्षेत्र को अराजकता की ओर ले जाएगा। इराक ने अमेरिका की कार्रवाई को अंतरराष्ट्रीय कानून के खिलाफ बताया और कतर ने कहा कि मौजूदा तनाव का वैश्विक असर हो सकता है। ओमान ने परमाणु ठिकानों पर हमले को गैरकानूनी करार देते हुए रेडिएशन और पर्यावरणीय खतरे की बात कही है लेकिन चिंता की बात यह है कि इस संघर्ष का अगला चरण और भी गंभीर हो सकता है। ईरान ने संकेत दिया है कि यदि इजराइल और अमेरिका अपने हमले जारी रखते हैं तो वह अमेरिकी सैन्य ठिकानों और नौसेना पर सीधा हमला कर सकता है। अमेरिका के कुवैत, कतर और बहरीन में सैन्य अड्डे हाई अलर्ट पर हैं। इजराइल ने अपने नागरिकों को बंकरों में रहने की सलाह दी है और रेड अलर्ट पूरे देश में जारी कर दिया गया है।

संयुक्त राष्ट्र ने जताया बड़ा खतरा

संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय यूनियन और चीन जैसे महत्त्वपूर्ण पक्षों ने तत्काल युद्धविराम और बातचीत की अपील की है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने चेताया है कि अगर युद्ध इसी तरह बढ़ता रहा तो यह तीसरे विश्व युद्ध जैसी स्थिति पैदा कर सकता है। वहीं चीन ने साफ किया है कि वह पश्चिम एशिया में स्थिरता चाहता है और तेल आपूर्ति में रुकावट को बर्दाश्त नहीं करेगा।

ऐसे में आने वाले दिन बेहद नाजुक और निर्णायक हो सकते हैं। अमेरिका के आगामी राष्ट्रपति चुनाव भी इस स्थिति को प्रभावित कर सकते हैं। ट्रम्प के आक्रामक रुख ने जहां युद्ध को नई दिशा दी है, वहीं उनके विपक्षी इसे गैर-जिम्मेदाराना और वैश्विक शांति के लिए घातक बता रहे हैं। अगर यह युद्ध और आगे बढ़ता है तो इसके दायरे में लेबनान, सीरिया और यमन जैसे देश भी आ सकते हैं, जो पहले से ही अस्थिर हैं। इससे वैश्विक आतंकवाद को भी नया ईंधन मिल सकता है।
इस पूरे घटनाक्रम में भारत ने संतुलित और शांति की पक्षधर भूमिका निभाई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ईरानी राष्ट्रपति पेजेशकियान के बीच फोन पर बातचीत हुई, जिसमें भारत ने शांति, संवाद और स्थिरता का संदेश दिया। भारत का फोकस नागरिक सुरक्षा और ऊर्जा सुरक्षा पर केंद्रित रहा है।

यह पूरा घटनाक्रम हमें बताता है कि कैसे एक क्षेत्रीय संघर्ष वैश्विक संकट बन सकता है। इजराइल और ईरान के बीच शुरू हुआ यह संघर्ष अब अमेरिका और रूस जैसे वैश्विक महाशक्तियों के सीधे टकराव में बदल चुका है। युद्ध की यह आग अब सिर्फ मिसाइलों तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसका असर कूटनीति, व्यापार, ऊर्जा आपूर्ति और वैश्विक शांति व्यवस्था तक पहुंच गया है।

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