पीएम मोदी क्यों बोले- दुनिया संकट की स्थिति में है?

डीएन ब्यूरो

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बृहस्पतिवार को कहा कि दुनिया संकट की स्थिति में है और यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि अस्थिरता की यह स्थिति कब तक रहेगी। उन्होंने साथ ही इस बात पर जोर दिया कि वैश्विक दक्षिण क्षेत्र को ऐसी प्रणालियों एवं परिस्थतियों पर निर्भरता के चक्र से बचना चाहिए जो उनके अनुरूप नहीं हों। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी


नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बृहस्पतिवार को कहा कि दुनिया संकट की स्थिति में है और यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि अस्थिरता की यह स्थिति कब तक रहेगी। उन्होंने साथ ही इस बात पर जोर दिया कि वैश्विक दक्षिण क्षेत्र को ऐसी प्रणालियों एवं परिस्थतियों पर निर्भरता के चक्र से बचना चाहिए जो उनके अनुरूप नहीं हों।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि 21वीं सदी में वैश्विक वृद्धि दक्षिण के देशों से आयेगी।

प्रधानमंत्री ने ‘वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ’ शिखर सम्मेलन को डिजिटल माध्यम से संबोधित करते हुए खाद्य, ईंधन और उर्वरकों की बढ़ती कीमतों, कोविड-19 वैश्विक महामारी के आर्थिक प्रभावों के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न प्राकृतिक आपदाओं पर भी चिंता व्यक्त की।

मोदी ने विभिन्न विकासशील देशों के कई नेताओं की उपस्थिति में सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए कहा, ‘‘ हम नववर्ष की बेला में मिल रहे हैं और यह वर्ष नयी उम्मीदें और नयी ऊर्जा लेकर आया है। हमने पिछले वर्ष के पन्ने को पलटा है जिसमें हमने युद्ध, संघर्ष, आतंकवाद और भू राजनीतिक तनाव को देखा। खाद्य, उर्वरक, ईंधन की बढ़ती कीमतें, जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न आपदाएं और कोविड महामारी के दूरगामी आर्थिक प्रभाव इनमें शामिल हैं।’’

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘ यह स्पष्ट है कि दुनिया संकट की स्थिति में है। यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि अस्थिरता की यह स्थिति कब तक रहेगी।’’

उन्होंने कहा कि वक्त की जरूरत है कि हम सरल, व्यावहारिक और टिकाऊ समाधान ढूंढें जो समाज और अर्थव्यवस्थाओं में बदलाव ला सके।

उन्होंने कहा, ‘‘ विकासशील विश्व जिस तरह की चुनौतियों का सामना कर रहा है, उसके बावजूद मैं इस बात को लेकर आशावादी हूं कि हमारा समय आयेगा। वक्त की जरूरत है कि हम सरल, पूरा करने योग्य और टिकाऊ समाधान ढूंढें जो समाज और अर्थव्यवस्थाओं में बदलाव ला सके।’’

मोदी ने कहा, ‘‘ ऐसे दृष्टिकोण के साथ हम कठिन चुनौतियों से पार पा सकेंगे।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ मुझे विश्वास है कि साथ मिलकर वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) नये और रचनात्मक विचार ला सकता है। ये विचार जी20 एवं अन्य मंचों पर हमारी आवाज का आधार बन सकते हैं। हमारी प्रार्थना है...‘आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः’ । इसका अर्थ है कि नेक विचार दुनिया के हर कोने से आने चाहिए। वॉयस आफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन हमारे समग्र भविष्य के लिये नेक विचार प्राप्त करने का सामूहिक प्रयास है।’’

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘ हमारा (ग्लोबल साउथ) भविष्य सबसे अधिक दांव पर लगा है। अधिकतर वैश्विक चुनौतियों के लिए ‘ग्लोबल साउथ’ जिम्मेदार नहीं है, लेकिन इसका सबसे अधिक प्रभाव हम पर ही पड़ता है।’’

उन्होंने कहा कि भारत ने हमेशा उसके विकास संबंधी अनुभव को ‘‘ ‘ग्लोबल साउथ’ के अपने भाइयों’’ के साथ साझा किया है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत इस वर्ष जी20 की अध्यक्षता कर रहा है और स्वाभाविक है कि हमारा उद्देश्य ‘ग्लोबल साउथ’ की आवाज बुलंद करना होगा।

उन्होंने कहा कि दुनिया के भविष्य में वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) का सबसे अधिक दांव पर लगा है क्योंकि मानवता का तीन चौथाई हिस्सा हमारे देशों में निवास करता है।

उन्होंने कहा कि ऐसे में वैश्विक प्रशासन का आठ दशक पुराना मॉडल धीरे धीरे बदला है और हमें उभरती व्यवस्था को आकार देने का प्रयास करना चाहिए।

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने समापन संबोधन में कहा कि सम्मेलन की चर्चाओं में साझा चुनौतियों के विषय सामने आए हैं और यह हम सभी के मन में सबसे ऊपर है।

उन्होंने कहा, ‘‘ इनमें हमारी विकास की जरूरतों के लिये संसाधनों की कमी, प्राकृतिक और भू राजनीतिक जलवायु दोनों क्षेत्रों में बढ़ती अस्थिरता जैसी मुख्य चिंताएं शामिल हैं। इसके बावजूद यह भी स्पष्ट है कि विकासशील देश सकारात्मक ऊर्जा और पूरे आत्मविश्वास से भरे हुए हैं।’’

मोदी ने 20वीं शताब्दी में विकसित देशों के वैश्विक अर्थव्यवस्था का वाहक होने का जिक्र करते हुए कहा कि आज अधिकांश उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की रफ्तार धीमी हो गई है।

उन्होंने कहा, ‘‘ स्पष्ट है कि 21वीं सदी में वैश्विक वृद्धि दक्षिण के इन देशों से आयेगी। मैं समझता हूं कि अगर हम साथ मिलकर काम करते हैं तब हम वैश्विक एजेंडा तय कर सकते हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ वैश्विक दक्षिण को अपनी आवाज सामने रखने की जरूरत है। साथ मिलकर हम ऐसी प्रणालियों एवं परिस्थतियों पर निर्भरता के चक्र से बच सकते हैं जो हमारे अनुरूप नहीं हों।’’

भारत 12-13 जनवरी को दो दिवसीय ‘वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ’ शिखर सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है, जो यूक्रेन संघर्ष के कारण उत्पन्न खाद्य एवं ऊर्जा सुरक्षा सहित विभिन्न वैश्विक चुनौतियों के मद्देनजर विकासशील देशों को अपनी चिंताएं साझा करने के लिए एक मंच प्रदान करेगा।

‘ग्लोबल साउथ’ व्यापक रूप से एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के देशों को कहा जाता है। इस सम्मेलन का विषय, ‘मानव केंद्रित विश्व के लिए विकासशील देशों की आवाज’ है। सम्मेलन के मंत्री-स्तरीय समापन सत्र का विषय ‘यूनिटी ऑफ वॉयस-यूनिटी ऑफ पर्पज़’ होगा।

शिखर सम्मेलन में दस सत्रों का आयोजन होगा, जिनमें से चार सत्र बृहस्पतिवार को, जबकि छह सत्र शुक्रवार को होंगे। प्रत्येक सत्र में 10 से 20 देशों के नेताओं और मंत्रियों के शामिल होने की उम्मीद है।










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