Fatehpur: खेतों में पराली जलाने का सिलसिला जारी, जिम्मेदारों की अनदेखी से बढ़ा प्रदूषण संकट
फतेहपुर जिले में पराली जलाने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं जिसे रोकने में प्रशासन नाकाम साबित हो रहा है। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज की ये रिपोर्ट।
फतेहपुर: जिले में पराली जलाने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। प्रशासन इसे रोकने में पूरी तरह नाकाम साबित हो रहा है। किसानों द्वारा मनमाने तरीके से खेतों में पराली जलाई जा रही है, जिससे हवा में जहर घुल रहा है। पर्यावरण को हो रहे इस गंभीर नुकसान के बावजूद जिम्मेदार अधिकारी और विभाग केवल कागजी आदेश जारी करने तक सीमित हैं।
सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी के आदेश हवा में
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) और सर्वोच्च न्यायालय ने पराली जलाने पर सख्त पाबंदी लगाने के आदेश दिए हैं। वहीं फतेहपुर में इन आदेशों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। किसान पराली जलाने से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान और मिट्टी की उर्वरता पर पड़ने वाले प्रभाव से अनजान हैं।
प्रदूषण से बढ़ रही मुसीबत
पराली जलाने से निकलने वाला जहरीला धुआं स्थानीय निवासियों के लिए बड़ी परेशानी का सबब बन गया है। बिसौली से भिटौरा मार्ग पर शाम होते ही खेतों से उठने वाली धुंध सड़क हादसों का कारण बन सकती है। साथ ही, इस जहरीले धुएं से स्वास्थ्य समस्याएं, जैसे सांस लेने में तकलीफ और अस्थमा बढ़ रही है।
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प्रशासन की अनदेखी
प्रशासन द्वारा किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए बैठकों और जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन करने के दावे किए जा रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। किसानों का कहना है कि प्रशासन की नीतियां केवल कागजों तक सीमित हैं। उन पर कोई ठोस अमल नहीं हो रहा है।
किसानों की मजबूरी या लापरवाही?
पराली को जलाने के विकल्प के रूप में किसानों को बायो-डिकम्पोजर और मशीनरी की उपलब्धता के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए। लेकिन जागरूकता के अभाव और सरकारी सहायता की कमी के चलते किसान पराली जलाने को मजबूर हैं।
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जरूरत ठोस कार्रवाई की
पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए प्रशासन को न केवल कड़ी कार्रवाई करनी होगी, बल्कि किसानों को आर्थिक और तकनीकी सहायता भी देनी होगी। इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी के आदेशों को प्रभावी ढंग से लागू करने की दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।