जन्मदिन विशेष: अखिलेश यादव, 2022 का चुनाव होगा बड़ा टर्निंग प्वाइंट 

सुभाष रतूड़ी

भारतीय राजनीति के इतिहास को देखें तो अखिलेश यादव अपने हम उम्र नेताओं से कोसों आगे खड़े दिखते हैं। कम उम्र में देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के पद को सुशोभित करने वाले समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का आज जन्म दिन है। 1 जुलाई 1973 को जन्मे अखिलेश के 47वें बर्थडे पर पढ़ें डाइनामाइट न्यूज़ का ये विशेष लेख:

अखिलेश यादव पत्नी डिंपल व बच्चों अदिति, अर्जुन व टीना के साथ
अखिलेश यादव पत्नी डिंपल व बच्चों अदिति, अर्जुन व टीना के साथ


नई दिल्ली/लखनऊ: उत्तर प्रदेश यदि भारतीय राजनीति के समीकरण को सुलझाने का सबसे बड़ा केंद्र हैं तो अखिलेश यादव उस समीकरण के सबसे बड़े सूत्र हैं। कोई उनसे राजनीतिक या वैचारिक रुप से इत्तेफाक रखे या न रखे, लेकिन अखिलेश को नजरअंदाज करना किसी भी के लिये भी फिलहाल मुमकिन नहीं है, भले ही वह सत्ता पक्ष ही क्यों न हो। दरअसल, अखिलेश से जुड़ी कई ऐसी बातें है, जो उन्हें भारत की वर्तमान राजनीति की रीढ़ और एक अहम सूत्र के रूप में स्थापित करती है।

जोखिम लेने से नहीं हटते पीछे 

उम्दा और त्वरित निर्णायक क्षमता, राजनीतिक लचीलापन, दृढ़ और आत्मविश्वासी फैसले, अनुभवी लोकाचार, जोखिमों से खेलने की कला, राजनीति को चुनावी हार-जीत से ऊपर देखने का उनका दर्शन और हमेशा प्रयोगवादी होना उन्हें अन्य नेताओं से अलग व सक्षमवान बनाता हैं।

सेंस ऑफ ह्यूमर के मुरीद हैं विरोधी भी 

बेहद ऊर्जावान व्यक्तित्व और अथाह राजनीतिक संभावनाओं से युक्त अखिलेश यादव भारतीय राजनीति के इकलौते ऐसे चेहरे हैं, जिसे युवा वर्ग सबसे ज्यादा पसंद भी करता है। बिना लाग-लपेट के कोई बात कहना और उसमें भी सेंस ऑफ ह्यूमर का शानदार इस्तेमाल करना उन्हें युवाओं के करीब लाता है। सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर अखिलेश की सक्रियता जहां उनकी सामाजिक स्वीकार्यता पर मुहर लगाती है वहीं इसी विशिष्ट गुण के कारण वह युवाओं के अलावा हर उम्र दराज लोगों के दिल में भी जगह बना लेते हैं। कुछ खास शैली और व्यक्तित्व भले ही उन्हें विरासत में मिलें हो लेकिन इसमें भी कोई संदेह नहीं कि बहुत कुछ उन्होंने खुद साधा, पाया और सीखा है। 

अतीत के झरोखों में अखिलेश 

अगर ये सब बातें न होती तो, भारतीय राजनीति में सबसे युवा मुख्यमंत्री बनने का स्वर्णिम इतिहास अखिलेश के नाम पर कभी दर्ज न होता। महज 38 वर्ष की आयु में जब भारत में कई लोग राजनीति में पदार्पण की सोच रहे होते हैं, उस उम्र में अखिलेश के सिर पर देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के 33वें मुख्यमन्त्री का ताज का सजना उनके एक बड़े राजनीतिक खिलाड़ी होने का जीवंत सबूत है।

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एक युवा के तौर पर यूपी की गद्दी संभालने के वक्त अखिलेश यादव के अनुभव को लेकर राजनीतिक गलियारों में भी तब कई बातें हुई और देश के राजनीतिक पंडितों ने कुछ सवाल भी उठाये, लेकिन अखिलेश ने सूझबूझ और अपनी खास कार्यशैली से सभी को अपने कामों से बखूबी जबाव भी दिया।

आज भी याद किये जाते हैं काम

किसी पद पर आसीन होना और उसे लोकोपयोगी कार्यों से जस्टिफाई करना राजनीति की कसौटी पर खरा उतरना माना जाता है। ऐसे में अखिलेश ने बतौर मुख्यमंत्री यूपी में जो कर दिया दिखाया, वह कई मायनों में अपेक्षा से अधिक और अभूतपूर्व रहा। आज भी अखिलेश द्वारा बनाये गये आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस वे को देश का सबसे आधुनिक एक्सप्रेस वे माना जाता है। राज्य में यूपी100 पुलिस सेवा, 108 फ्री एंबुलेन्स सेवा, लखनऊ मेट्रो रेल, लखनऊ इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम, एशिया का सबसे बड़ा  जनेश्वर मिश्र पार्क, जयप्रकाश नारायण इंटरनेशनल सेंटर, लखनऊ-बलिया समाजवादी पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे आदि ऐसी परियोजनायें हैं, जिनके लिये अखिलेश को एक राजनेता के अलावा अव्वल टैक्नोक्रेट और सोशल इंजीनियरिंग में माहिर माना जाता है। 

हालांकि 2017 में हुए विधान सभा चुनावों में अखिलेश के राजनीतिक प्रयोग सफल न हो सके लेकिन इन्हीं प्रयोगों को उन्होंने अपनी नई सीख का आधार भी बनाया। चुनावी हार के बाद भी अखिलेश की राजनीतिक सक्रियता में कभी कोई कमी नहीं देखी गयी। यहीं कारण भी है कि सत्ता पक्ष को चुनौती देते रहने की उनकी कलाबाजी का जिक्र सड़क से लेकर संसद तक समय-समय पर होता रहता है। जन-समुदाय से जुड़े मुद्दों को लेकर अपने राजनीतिक फलक के आकार को बढाते रहना अखिलेश की सबसे बड़ी खूबी है। इसलिये जन सरोकारों से जुड़े मुद्दे पर उन्होंने खुद को कभी सीमित नहीं रखा और चाहे राज्य हो या केंद्र सरकार उसकी घेराबंदी में कभी कोई कसर नहीं छोड़ी।

2022 के चुनाव होगा बड़ा टर्निंग प्वाइंट 

हालांकि पिछले विधान सभा चुनावों के प्रयोग से सीखने की बात करने वाले अखिलेश के लिये आने वाले दो साल बेहद अहम हैं। 2022 के विधान सभा चुनाव को अखिलेश यादव की असली अग्निपरीक्षा कही जाये तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। ये चुनाव भारतीय राजनीति में उनके कद का निर्धारण करने वाले साबित होंगे। इसलिये 2022 के चुनाव व्यक्तिगत तौर पर अखिलेश यादव के लिये बड़े टर्निंग प्वाइंट साबित होने वाले हैं। अखिलेश की राजनीतिक जमीन पर दमदार मौजूदगी अभी इस बात की दस्तक दे रही है कि सत्ता से बाहर होने के बावजूद भी उन्होंने जनता के बीच गहरी पैठ बनायी है और अपनी जमीन को मजबूत किया है।

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युवाओं के बीच हैं खासे लोकप्रिय

इसके अलावा युवाओं के बीच उनकी लोकप्रियता का ग्राफ आज भी काफी ऊपर है। ये सब ऐसे फैक्टर हैं, जो अभी तक अखिलेश के पक्ष में हैं लेकिन उन्हें ये बात हरगिज नहीं भूलनी होगी कि आने वाले दो सालों में एक छोटी भी राजनीतिक चूक उनके लिये बेहद भारी पड़ सकती है। इसलिये कदम दर कदम देखकर पांव रखना और आगे बढते रहना उनके और समाजवादी पार्टी के हित में हैं।      

       
आज अखिलेश का जन्मदिन उत्तर प्रदेश समेत देश भर में मनाया जा रहा है। उनके चाहने वाले और पार्टी कार्यकर्ता अलग-अलग अंदाज में जन्मदिन मना रहे हैं। इसी बीच कन्नौज की पूर्व सांसद डिंपल यादव ने एक ट्वविट कर पार्टी कार्यकर्ताओं से एक भावनात्मक अपील की और जन्मदिन को वर्तमान कोरोना संकट में बेहद सादगी के साथ गरीबों की सेवा कर मनाने का अनुरोध किया। 

 










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