नवरात्रि स्पेशल: मां शैलपुत्री की आराधना से पाएं मनोवांछित फल
नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा होती है। मां शैलपुत्री को अखंड सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है। यदि आज आप मां शैलपुत्री के पूजन में लगे हैं तो यह रिपोर्ट जरूर पढ़ें...
नई दिल्ली: शारदीय नवरात्रि आज गुरूवार, 21 सितंबर से शुरू हो चुके हैं। नौ दिनों तक चलने वाली इस पूजा में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि के नौ दिनों में विधि पूर्वक यदि देवी के सभी रूपों की अराधना की जाए, तो मनचाहा वर हासिल होता है। नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा होती है इसलिए इन्हें ही प्रथम दुर्गा कहा जाता है। शैलपुत्री भगवती पार्वती को कहा जाती है। शैलपुत्री की पूजा-अर्चना करने से महिलाओं को सुयोग्य वर की प्राप्ति व तपस्वी बनने की प्रेरणा मिलती है।
मां शैलपुत्री का पूजन
नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस मां शैलपुत्री की पूजा-अराधना की जाती है। यदि आज आप मां शैलपुत्री के पूजन की तैयारी में लगे हैं तो उन्हें प्रसन्न करने के लिए मां को श्वेत वस्त्र एवं सफेद पुष्प ही अर्पित करें। मां शैलपुत्री के लिये आप निम्न मंत्र का जाप कर सकते हैं।
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ॐ शैल पुत्रैय नमः"
कहते हैं कि मां शैलपुत्री की आराधना से मनोवांछित फल और कन्याओं को उत्तम वर की प्राप्ति होती है। साथ ही साधक को मूलाधार चक्र जाग्रत होने से प्राप्त होने वाली सिद्धियां हासिल होती हैं। इस दिन मां 'शैलपुत्री' को घी का भोग लगाएं और उस भोग का दान करें। माता को इस उपाय से प्रसन्न करने से रोगी को कष्टों से मुक्ति मिलती है और उसका शरीर निरोगी होता है।
अखंड सौभाग्य का प्रतीक
पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा। हिमालय की पुत्री होने के कारण यह देवी प्रकृति स्वरूपा भी हैं। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी प्रथम दुर्गा हैं। पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। ये ही सती के नाम से भी जानी जाती है। स्त्रियों के लिए उनकी पूजा करना श्रेष्ठ और मंगलकारी माना जाता है। इस देवी की आराधना करने से जीवन में स्थिरता आती है। हिमालय हमारी शक्ति, दृढ़ता, आधार व स्थिरता का प्रतीक है।
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शैलराज हिमालय की पुत्री की कहानी
एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया, भगवान शंकर को नहीं। सती यज्ञ में जाने के लिए विकल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है। सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव है। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को क्लेश पहुंचा। वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं। इनका महत्व और शक्ति अनंत है।
डाइनामाइट न्यूज़ के पाठक शारदीय नवरात्र के पावन पर्व (21 से 29 सितंबर तक) पर हर रोज मां दुर्गा के नौ रूपों से संबंधित कहानियां, पूजा-अर्चना के विधि-विधान, नवरात्र से जुड़ी जुड़ी धार्मिक, आध्यात्मिक कथा-कहानियों की श्रृंखला विशेष कालम नवरात्र स्पेशल में पढ़ सकते हैं। आप हमारी वेबसाइट भी देख सकते हैं DNHindi.com