DN Exclusive महराजगंज: अंतिम सांसें गिन रहे 30 साल पुराने अग्निशमन केंद्र को सरकारी संजीवनी की जरूरत
लगभग 30 साल पहले स्थापित जिले के इस अग्निशमन केंद्र पर लगभग तीन सौ गांवों को आग से बचाने की जिम्मदारी सौंपी गयी थी, लेकिन तमाम लापरवाहियों के चलते यह आज खुद अपनी ही सुरक्षा के लिये तरस रहा है। डाइनामाइट न्यूज की स्पेशल रिपोर्ट..
सिसवा बाजार (महराजगंज): जब क्षेत्र और जनता की सुरक्षा के लिये स्थापित कोई सरकारी सुविधा खुद ही बीमार पड़ जाए तो आम जनता की सुरक्षा का खतरे में पड़ना लाजमी है। महराजगंज जनपद के सबया अग्निशमन केंद्र की भी यही स्थिति है। सरकारी उपेक्षा और संसाधनों की भारी कमी के चलते यह फायर स्टेशन अपनी ही बदहाली पर आसूं बहा रहा है। लगभग 30 पहले स्थापित सबया अग्निशमन केंद्र पर सिसवा और निचलौल ब्लॉक के लगभग तीन सौ गांवों को आग से बचाने की जिम्मदारी सौंपी गयी थी लेकिन तमाम तरह की लापरवाहियों के चलते यह आज खुद अपनी ही सुरक्षा के लिये तरस रहा है।
जिला मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर स्थित सबया अग्निशमन केंद्र की व्यवस्था बेहद बदहाल हो गयी है। मौके पर दमकल परिसर में एकाध बेजान गाड़ियों के अलावा कुछ नही। खंडहर में तब्दील हो चुके इस अग्निशमन केंद्र पर विशाल क्षेत्र की जिम्मेदारी है। मगर विभाग उदासीनता के चलते जिम्मेदारी न उठा पाने के लिये यह खुद ही लाचार हो गया है।
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सिसवा-निचलौल मुख्य मार्ग सबया में स्थित अग्निशमन केंद्र 1989 में नींव की ईट रखकर निर्माण कार्य की शुरुआत की गई थी। जब अग्निशमन केंद्र का निर्माण कार्य शुरू हुआ तो आसपास के क्षेत्र में लोगों के प्रति खुशी दौड़ पड़ी। परंतु आज अग्निशमन केंद्र की बदहाली देखकर हर कोई परेशान है।
बता दें कि सिसवा व निचलौल ब्लाक के लगभग 3 सौ गांवों को आग से बचाने के लिए सबया में बना अग्निशमन केंद्र विभागीय उपेक्षा के शिकार है। टूटा हुआ छत विभाग के ऊपर पड़े बोझ को बयां करता है और पेड़ों के ऊपर लटकता नंगा तार तमाम अधिकारियों की पोल खोलता हुआ नजर आता है।
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यहां कुल 15 कर्मचारी है, जिसमें दरोगा और नायब दरोगा की तैनाती कई वर्षों से राम भरोसे है, दमकल की 2 छोटी बड़ी गाडियां हैं जिसमें एक लगभग नीलामी के बेहद करीब है। परिसर में शौचालय की व्यवस्था भी सबसे घटिया स्तर पर पहुंच चुकी है।
अग्निशमन केंद्र सबया में तैनात दीवान के अनुसार संसाधनों की कमी होने के कारण काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, कई बार प्रस्ताव भेजा गया है लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई है ऐसे में विवश होने के सिवा कोई और रास्ता नहीं है।