अवसाद के पलों में जानिये कैसे रहें खुश, हताश महसूस करने पर अपनाएं ये टिप्स
अक्सर ऐसा माना जाता है कि अगर कोई अवसाद ग्रस्त है तो वह हर वक्त दुखी या हताश महसूस करेगा। लेकिन कई लोगों को यह नहीं मालूम कि अवसाद का केवल यही लक्षण नहीं है।पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर
रीडिंग: अक्सर ऐसा माना जाता है कि अगर कोई अवसाद ग्रस्त है तो वह हर वक्त दुखी या हताश महसूस करेगा। लेकिन कई लोगों को यह नहीं मालूम कि अवसाद का केवल यही लक्षण नहीं है। अवसाद का एक और लक्षण है कि आपको उन चीजों में अब मजा नहीं आता या उनमें दिलचस्पी नहीं होती जिनमें पहले होती थी और इस लक्षण को कई बार नजरअंदाज कर दिया जाता है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, इस लक्षण को ‘एनहेडोनिया’ के नाम से जाना जाता है और यह अवसाद से जूझ रहे 75 प्रतिशत वयस्कों तथा युवाओं में देखा जाता है। यह लक्षण बहुत आम है लेकिन इसके बावजूद इसका इलाज तथा इससे निपटना मुश्किल है।
खुशी महसूस न होना :
एनहेडोनिया को सभी या लगभग हर उस गतिविधि में दिलचस्पी कम होने के रूप में परिभाषित किया जाता है जिनका कोई व्यक्ति पहले आनंद उठाता था। अगर किसी व्यक्ति को कम से कम दो हफ्ते से लगातार एनहेडोनिया है तो उसे अवसादग्रस्त कहा जा सकता है भले ही वह दुखी या हताश महसूस न कर रहा हो।
मैंने और मेरे सहकर्मियों ने अवसाद के बारे में जिन युवाओं का गहनता से साक्षात्कार लिया, उसमें पाया कि एनहेडोनिया केवल खुशी का खोना ही नहीं बल्कि मनपसंद कामों को करने के लिए प्रेरणा की कमी होना भी है।
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ऐसे में सलाह दी जाती है कि हल्के अवसाद का इलाज, बात करने (टॉक) की थेरेपी से किया जाए। गंभीर अवसाद से जूझ रहे लोगों को अवसाद के इलाज में कारगर दवाएं लेने की सलाह दी जाती है।
ये सभी उपचार अवसाद के लक्षणों पर काबू पाने में मदद करने के उद्देश्य से किए जाते हैं लेकिन आधे से ज्यादा लोगों पर पहली बार उपचार का कोई फर्क नहीं पड़ता। बल्कि उपचार का तरीका बदलने के बाद भी तकरीबन 30 प्रतिशत मरीजों को अवसाद के लक्षण महसूस होते हैं।
ऐसी दलील दी गयी है कि इलाज के प्रभाव की इस कम दर का कारण एनहेडोनिया से सही तरीके से निपटना न हो सकता है।
इलाज के विकल्प :
एनहेडोनिया जटिल हो सकता है लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि इससे पीड़ित लोगों के लिए कोई उम्मीद नहीं है।
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उदाहरण के लिए, अनुसंधान से पता चलता है कि बातचीत थेरेपी एनहेडोनिया से निपटने में मदद कर सकती है। हाल में एक प्रायोगिक अध्ययन में यह भी पाया गया कि एक नयी प्रकार की ‘टॉक थेरेपी’ अवसाद के इलाज में संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी से बेहतर काम कर सकती है क्योंकि इस थेरेपी में मरीज के नकारात्मक और सकारात्मक दोनों अनुभवों पर ध्यान केंद्रित कर खासतौर से एनहेडोनिया का इलाज किया जाता है।
इसके साथ ही डोपामाइन जैसी दवा भी एनहेडोनिया के मरीजों के उपचार में कारगर हो सकती है।
अगर आप एनहेडोनिया से जूझ रहे हैं तो आपके लिए प्रेरणा तलाशना मुश्किल हो सकता है लेकिन मनोरंजक गतिविधियों या किसी शौक के लिए वक्त निकालने से एनहेडोनिया से निपटने में मदद मिल सकती है।