क्या जलवायु परिवर्तन का असर हमारी भाषाओं पर भी हो रहा है?, अगर हां... तो क्या होंगे इसके परिणाम

डीएन ब्यूरो

भाषाएं हमारी पहचान, हमारे इतिहास, हमारे पारंपरिक ज्ञान और दुनिया के बारे में हमारे विचारों को बयां करती हैं। कुछ मामलों में भाषा ही हमें, हमारे पूर्वजों से जोड़ने का एकमात्र साधन हो सकती है। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर

फाइल फोटो
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मेलबर्न: भाषाएं हमारी पहचान, हमारे इतिहास, हमारे पारंपरिक ज्ञान और दुनिया के बारे में हमारे विचारों को बयां करती हैं। कुछ मामलों में भाषा ही हमें, हमारे पूर्वजों से जोड़ने का एकमात्र साधन हो सकती है।

जिस तरह जलवायु परिवर्तन हो रहा है उसके मद्देनजर भाषाओं के लिए भी अपने अस्तित्व को बनाए रखना जोखिम भरा हो गया है।

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डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, आज हमारे द्वारा बोली जानी वाली आधी भाषाएं इस सदी के अंत तक विलुप्त हो जाएंगी या फिर विलुप्त होने की कगार पर पहुंच जाएंगी। इसके पीछे बहुत से कारक हो सकते हैं लेकिन सबसे महत्वपूर्ण कारक, जो उभरकर सामने आया है वह जलवायु परिवर्तन है।

पर्यावरणीय आपदाओं की वजह से समुदायों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है और नई जगह पर किसी दूसरी भाषा का प्रभुत्व होने की वजह से लोग अपनी भाषाएं अपनी ही भावी पीढ़ी को नहीं सिखा पाते, जो भाषाओं के विलुप्त होने का प्रमुख कारण है।

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दुनिया के सबसे अधिक भाषाई रूप से विविध देशों में हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देश हैं और ये क्षेत्र विशेष रूप से पर्यावरणीय आपदाओं के प्रति संवेदनशील होने के लिए भी जाने जाते हैं।










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