दिल्ली में डॉक्टरों ने रचा इतिहास, सफल हुआ चुनौतीपूर्ण गुर्दा प्रतिरोपण, युवक को मिला जीवनदान, पढ़ें पूरी खास रिपोर्ट
दिल्ली के एक अस्पताल के चिकित्सकों ने नियमित तौर पर ‘हेमोडायलिसिस’ पर निर्भर अरुणाचल प्रदेश के 33 वर्षीय व्यक्ति का चुनौतीपूर्ण गुर्दा प्रतिरोपण किया है, जिसके असफल होने की अत्यधिक आशंका थी। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर
नयी दिल्ली: दिल्ली के एक अस्पताल के चिकित्सकों ने नियमित तौर पर ‘हेमोडायलिसिस’ पर निर्भर अरुणाचल प्रदेश के 33 वर्षीय व्यक्ति का चुनौतीपूर्ण गुर्दा प्रतिरोपण किया है, जिसके असफल होने की अत्यधिक आशंका थी।
ओखला में फोर्टिस एस्कॉर्ट्स अस्पताल में नेफ्रोलॉजी और किडनी प्रत्यारोपण के प्रमुख निदेशक डॉ. संजीव गुलाटी ने कहा कि फुंट्सो सेरिंग नामक व्यक्ति का 10 साल पहले गुर्दा प्रतिरोपण हुआ था। बाद में, रोगी को ‘क्रोनिक एलोग्राफ्ट डिसफंक्शन’ हुआ, जो गुर्दा प्रतिरोपण के बाद ‘क्रिएटिनिन’ स्तर में वृद्धि के कारण होता है। इससे रोगी नियमित ‘हेमोडायलिसिस’ पर निर्भर हो जाता है।
इसी अस्पताल में ‘यूरोलॉजी’ और गुर्दा प्रतिरोपण मामलों के निदेशक डॉ. गुलाटी और डॉ. अनिल गुलिया के नेतृत्व में डॉक्टरों की एक टीम ने 11 फरवरी को चार घंटे लंबी प्रतिरोपण प्रक्रिया को अंजाम दिया।
डॉ. गुलाटी ने कहा कि सर्जरी के आठवें दिन मरीज को छुट्टी दे दी गई। हालांकि, इस कठिन प्रतिरोपण की योजना बनाने और इसे अंजाम तक पहुंचाने में एक वर्ष से अधिक समय लगा।
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उन्होंने कहा कि रोगी के रक्त में एंटीबॉडी काफी अधिक थीं।
डॉ. गुलाटी ने कहा कि इसमें असफल होने का अत्यधिक जोखिम था क्योंकि क्योंकि एंटीबॉडी बहुत अधिक थी और निर्धारित सीमा में नहीं थी। इसलिए मरीज को डायलिसिस जारी रखने के लिए कहा गया।
कई अस्पतालों द्वारा मना किए जाने के बाद, मरीज गुर्दा प्रतिरोपण के लिए फोर्टिस एस्कॉर्ट्स अस्पताल लौट आया।
डॉक्टर ने कहा कि मरीज को बता दिया गया था कि इस प्रक्रिया में काफी जोखिम है। उसकी मंजूरी के बाद प्रक्रिया शुरू की गई।
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डॉ गुलाटी ने कहा, “डायलिसिस उनके राज्य में आसानी से उपलब्ध नहीं है और जीवित रहने की दर भी खराब है। इसलिए रोगी ऑपरेशन के नाकाम होने के लिए भी तैयार था।”
उन्होंने कहा कि इसके बाद गुर्दा प्रतिरोपण टीम ने प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का फैसला किया। मरीज को प्लाज्मा थेरेपी के और चार सत्रों से गुजरना पड़ा और इस बार एंटीबॉडी स्वीकार्य सीमा में पाई गईं।
डॉ. गुलाटी ने कहा, “गुर्दा प्रतिरोपण के बाद रोगी की तबीयत अच्छी हुई है और बायोप्सी में पुष्टि हुई है पुष्टि की है कि कोई परेशानी नहीं है। यदि प्रतिरोपण नहीं किया गया होता, तो रोगी अधिकतम पांच साल तक जीवित रह पाता।”