Maharashtra Politics: महाराष्ट्र के राजनीतिक विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई, जानिये मामले का पूरा अपडेट

डीएन ब्यूरो

उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र राजनीतिक संकट से संबंधित उद्धव ठाकरे और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे गुटों की ओर से एक दूसरे के खिलाफ दायर विभिन्न याचिकाओं पर बृहस्पतिवार को फैसला सुरक्षित रख लिया। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित


नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र राजनीतिक संकट से संबंधित उद्धव ठाकरे और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे गुटों की ओर से एक दूसरे के खिलाफ दायर विभिन्न याचिकाओं पर बृहस्पतिवार को फैसला सुरक्षित रख लिया।

प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने उद्धव और एकनाथ दोनों गुटों और राज्यपाल के कार्यालय की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा।

न्यायमूर्ति एम.आर. शाह, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा की सदस्यता वाली पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, ए.एम. सिंघवी, देवदत्त कामत और अधिवक्ता अमित आनंद तिवारी की दलीलें सुनने के बाद सुनवाई पूरी की।

शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले गुट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज किशन कौल, हरीश साल्वे, महेश जेठमलानी और अधिवक्ता अभिकल्प प्रताप सिंह की दलीलें भी सुनीं।

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सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मामले में राज्यपाल कार्यालय की पैरवी की।

पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने नौ दिन की सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। इन याचिकाओं पर सुनवाई 21 फरवरी से शुरू हुई थी।

17 फरवरी को, शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र में जून 2022 में पैदा हुए सियासी संकट संबंधी याचिकाओं को सात न्यायाधीशों की पीठ को भेजने से इनकार कर दिया था। इनमें 2016 के नबाम रेबिया फैसले पर पुनर्विचार का आग्रह किया गया था।

न्यायालय ने 2016 में अरुणाचल प्रदेश के नबाम रेबिया के मामले पर फैसला दिया था कि यदि विधानसभा अध्यक्ष को हटाने के लिए नोटिस सदन में पहले से लंबित हो, तो वह विधायकों को अयोग्य ठहराने के लिए दी गई अर्जी पर कार्यवाई नहीं कर सकता।

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दरअसल, 29 जून 2022 को महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट चरम पर पहुंच गया था जब शीर्ष अदालत ने ठाकरे के नेतृत्व वाली 31 महीने पुरानी एमवीए सरकार का बहुमत परीक्षण कराने के राज्यपाल के निर्देश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।

ठाकरे ने हार को भांपते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना-भाजपा सरकार बनी थी।










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