Gujarat Bridge Collapse: मौत के पुल ने छीना कई बच्चों के सर से मां-बाप का साया, कई की उजड़ी गोद, कौन असली कातिल?
गुजरात में मेरोबी ब्रिज हादसे में कई बच्चे अनाथ हो गये हैं। मौत के पुल ने जहां कई बच्चों के सर से मां-बाप का साया छीन लिया है वहीं कई की गोद उजड़ गई है। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
मोरबी: गुजरात के मोरबी में मच्छु नदी पर बना केबिल ब्रिज हादसे में कई बच्चे अनाथ हो गये हैं। लापरवाही के इस पुल ने कई बच्चों के सर से जहां मां-बाप का साया छीन लिया है वहीं कई मांओं की गोद भी उजड़ चुकी है। मां-पिता अपने बच्चों को खो चुके हैं। क्षेत्र में चारों ओर मातम पसरा हुआ है। हर चेहरा रुआंसा और आंखे भरी हुई है। इस हादसे को लेकर सभी लोग पूछ रहे हैं आखिर असली कातिल कौन है?
मोरबी ब्रिज हादसे में अब तक 140 से अधिक लोगों के शव बरामद किये जा चुके हैं। 170 से अधिक लोगों को बचाया गया है। अभी भी कई लोग अस्पताल में भर्ती हैं और कुछ लापता बताये जा रहे हैं। कई बच्चों ने मोरबी ब्रिज हादसे में अपने मां-बाप को खो दिया है। वहीं दूसरी तरफ कुछ मां-बाप हमेशा के लिये अपने बच्चों को खो चुके हैं।
गमगीन माहौल के बीच हर पीड़ित और आम आदमी ये सवाल उठा रहा है कि निर्दोषों को मौत के मुंह में धकेलने के लिये आखिर कौन जिम्मेदार है। लोग सरकार समेत शासन-प्रशासन को कोस रहे हैं। कहा जा रहा है कि इस ब्रिज को गुजराती नव वर्ष पर महज 5 दिन पहले ही रिनोवेशन के बाद चालू किया गया था। रिनोवेशन के बाद भी इतना बड़ा हादसा होने पर अब कई तरह के सवाल उठ रहे हैं।
बताया जाता है कि इस पुल की क्षमता एक बार में केवल 100 लोगों की थी। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर क्यों 500 से अधिक टिकट एक समय पर दिये गये। क्यों इतनी बड़ी संख्या में लोगों को इस ब्रिज पर जाने की इजाजत दी गई।
बताया जा रहा है कि फिटनेस सर्टिफिकेट लिए बिना ही ब्रिज को शुरू कर दिया गया था। मोरबी हादसे को लेकर रखरखाव करने वाली एजेंसी के खिलाफ 304, 308 और 114 के तहत क्रिमिनल केस दर्ज किया गया है। आज से ही जांच शुरू कर दी गई है।
हादसे के बाद रेस्क्यू के लिए सेना, नेवी, एयरफोर्स एनडीआरएफ, फायर ब्रिगेड, एसडीआरएफ की टीमें जुटी हुई हैं। अब तक 177 लोगों को रेस्क्यू किया जा चुका है।
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बता दें कि यह केबल ब्रिज 100 साल से ज्यादा पुराना बताया जा रहा है। यह ब्रिटिश शासन के दौरान बनाया गया था। राजा-महाराजाओं के समय का यह पुल ऋषिकेश के राम-झूला और लक्ष्मण झूला पुल कि तरह झूलता हुआ सा नजर आता था, इसलिए इसे झूलता पुल भी कहते थे।