DN Exclusive: कई केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति क्यों नहीं कर पा रही है सरकार?
देश के कई केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कुलपतियों के कई पद काफी समय से रिक्त हैं। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
नई दिल्ली: देश में उच्च शिक्षा को लेकर सरकार बड़े-बड़े दावे करती है लेकिन चौंकाने वाली बात ये है कि देश के कई केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कुलपतियों के पद लंबे अर्से से खाली पड़े हैं। लंबे समय से कुलपतियों की नियुक्ति नहीं हो पाना बड़ सवाल खड़ करती है। वहीं यूजीसी के नए ड्रॉफ्ट के बाद अब वीसी मामले में हंगामा शुरु हो गया है जिससे फिलहाल वीसी की नियुक्ति प्रक्रिया में रोड़ा अटक गया है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार जिन विश्वविद्यालयों में कुलपति के पद खाली पड़े हैं उनमें हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक, अंग्रेजी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय, हैदराबाद, विश्व भारती विश्वविद्यालय, कोलकाता, सिक्किम विश्वविद्यालय शामिल हैं।
जानकारी के अनुसार किसी भी उच्च शैक्षिक संस्थान को दिशा-दशा में कुलपति की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वह विश्वविद्यालय का प्रमुख शैक्षणिक और कार्यकारी अधिकारी होता है। वह प्रशासनिक और शैक्षणिक हित में निर्देश जारी करता है।
उत्तराखंड का एकमात्र केंद्रीय विश्वविद्यालय हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्याल में बीते 30 अक्टूबर से कुलपति का पद रिक्त है। वीसी की नियुक्ति नहीं होने से छात्रों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। जिसके चलते छात्रों को डिग्री भी नहीं मिल पा रही है। इसके अलावा विश्वविद्यालय के जरूरी काम भी प्रभावित हो रहे हैं।
इसी तरह इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक, अंग्रेजी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय, हैदराबाद, विश्व भारती विश्वविद्यालय, कोलकाता, सिक्किम विश्वविद्यालय में भी वीसी का पद खाली होने से संबंधित छात्रों और विवि के प्रशासनिक कार्य रुक रहे हैं।
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नियुक्तियों में राजनीतिक हस्तक्षेप
वीसी की नियुक्ति में राजनीतिक हस्तक्षेप बढ़ गया है। सरकार की ओर से अपनी पसंद के लोगों को कुलपति बनाए जाने के कारण अक्सर विवाद रहता है। सवाल है कि जिस पर यूनिवर्सिटी की गरिमा बनाए रखने की जिम्मेदारी हो, वही यदि ‘भ्रष्टाचार की गंगोत्री’ में डुबकी लगाने लगे तो शिक्षा व्यवस्था का क्या हश्र होगा?
कुलपतियों पर भ्रष्टाचार के मामले पिछले डेढ़-दो दशक में काफी बढ़े हैं। परीक्षा कराने से लेकर निर्माण कार्यो में टेंडर और अन्य कार्यो को लेकर कुलपति के निर्णयों पर सवाल खड़े होते रहे हैं। कभी कुलपति का पद बहुत ही गरिमापूर्ण हुआ करता था।
केंद्रीय विश्वविद्यालयों के मामले में केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 2009 से इसका निर्धारण होता है। राष्ट्रपति केंद्रीय विश्वविद्यालयों में विजिटर होने के साथ-साथ इन विश्वविद्यालयों में कुलाधिपति और कुलपति की नियुक्ति भी करते हैं।
केंद्र सरकार की ओर से गठित चयन समिति इसके लिए कई नामों की संस्तुति करती है। केंद्रीय विश्वविद्यालयों को छोड़कर राज्य संचालित अन्य विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति में राज्यपाल की महत्वपूर्ण भूमिका होने के कारण अक्सर विवाद सामने आते रहे हैं।
यूजीसी ने बनाया नियम
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने कुलपति की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर अपनी संशोधित गाइडलाइंस का मसौदा तैयार किया है। इसमें कई बदलाव किए गए। अभी तक VC के पद पर नियुक्त होने के लिए जो अहर्ताएं हैं, उनमें उम्मीदवार को एक प्रतिष्ठित शिक्षाविद् होना जरूरी है जिनके पास प्रोफेसर के रूप में या रिसर्च लीडरशिप की भूमिका में कम से कम दस साल का अनुभव हो।
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लेकिन नए मसौदे में VC के पद के लिए प्रोफेसर होना जरूरी नहीं है। इसके तहत वैसे लोग भी अब VC बन सकते हैं जिनके पास इंडस्ट्री, लोक प्रशासन या सरकारी क्षेत्र में कम से कम दस साल काम करने का अनुभव हो और जो शिक्षा या शोध के क्षेत्र में अहम योगदान देने का ट्रैक रिकॉर्ड रखते हों।
हालांकि इस बदलाव की कुछ लोगों ने आलोचना की है। केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि यह संघ परिवार (RSS) के लोगों को विश्वविद्यालय प्रशासन के शीर्ष पदों पर लाने का एक शॉर्टकट तरीका है।
मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने केंद्र सरकार की मंशा पर सवाल उठाए हैं तो तमिलनाडु सरकार ने यूजीसी रेगुलेशन 2025 को संविधान और संघवाद के मूल सिद्धांत के खिलाफ बताया है।
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