दिल्ली में नौकरशाही संबंधी विवाद जारी, मंत्री सौरभ भारद्वाज ने LG से की ये नई अपील

डीएन ब्यूरो

दिल्ली सरकार में मंत्री सौरभ भारद्वाज ने उपराज्यपाल वी के सक्सेना से सेवा सचिव आशीष मोरे के स्थानांतरण संबंधी एक फाइल को मंजूरी देने का शुक्रवार को अनुरोध किया और कहा कि इस देरी के कारण कई प्रशासनिक बदलाव अटके हुए हैं। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

दिल्ली सरकार में मंत्री सौरभ भारद्वाज
दिल्ली सरकार में मंत्री सौरभ भारद्वाज


नयी दिल्ली: दिल्ली सरकार में मंत्री सौरभ भारद्वाज ने उपराज्यपाल वी के सक्सेना से सेवा सचिव आशीष मोरे के स्थानांतरण संबंधी एक फाइल को मंजूरी देने का शुक्रवार को अनुरोध किया और कहा कि इस देरी के कारण कई प्रशासनिक बदलाव अटके हुए हैं।

भारद्वाज ने उपराज्यपाल को लिखे पत्र में कहा कि दिल्ली सरकार ने दो दिन पहले फाइल भेजी थी।

दिल्ली सरकार ने 11 मई को उच्चतम न्यायालय की ओर से उसे स्थानांतरण-पदस्थापना पर नियंत्रण प्रदान करने के कुछ घंटों बाद ही सेवा विभाग के सचिव आशीष मोरे का तबादला कर दिया था।

सक्सेना ने भारद्वाज से फाइल को मंजूरी देने का आग्रह करते हुए कहा, ‘‘हमने सचिव (सेवा) को बदलने का प्रस्ताव दो दिन पहले भेजा था।’’

उन्होंने कहा कि दिल्ली की निर्वाचित सरकार कई प्रशासनिक बदलाव करना चाहती है, जिसके लिए सेवा सचिव को बदलना जरूरी है। उन्होंने कहा कि इसमें देरी के कारण बहुत काम रुका हुआ है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार मंत्री ने कहा कि उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने अपने दो फैसलों में कहा है कि उपराज्यपाल को दुर्लभतम मामलों में ही विचारों के अंतर के अधिकार का इस्तेमाल करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि सचिव (सेवा) में बदलाव एक ‘‘नियमित मामला है और इसमें विचारों के अंतर के अधिकार का इस्तेमाल करना उचित नहीं है।’’

यदि उपराज्यपाल और दिल्ली में सरकार के बीच किसी मामले पर विचारों का अंतर है, तो उपराज्यपाल उस मामले को राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित रख सकते हैं।

भारद्वाज ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने 2018 के अपने फैसले में कहा था कि फाइल को उपराज्यपाल के पास मंजूरी के लिए नहीं भेजा जाना चाहिए और केवल फैसलों की जानकारी दी जानी चाहिए।

उन्होंने कहा कि हालांकि, जीएनसीटीडी (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार) संशोधन अधिनियम ने न्यायालय के फैसले को पलट दिया।

मंत्री ने कहा, ‘‘अब, हमें सभी नियमित फाइल भी उपराज्यपाल को भेजनी पड़ती हैं। इस जीएनसीटीडी संशोधन अधिनियम को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई है।’’










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