Bihar: हथुआ गांव की कई पीढ़ियों ने सहेज कर रखी है बांसुरी बनाने की कला, देश के हर हिस्से में है डिमाण्ड

डीएन ब्यूरो

हथुआ गांव के करीब दो सौ परिवार पीढ़ियों से बांसुरी बनाने के काम में लगे हैं। यहां की बांसुरी की सुरीली आवाज सभी राज्यों में गूंजती है। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

कई पीढ़िओं ने सहेज कर रखी है बांसुरी बनाने की कला
कई पीढ़िओं ने सहेज कर रखी है बांसुरी बनाने की कला


गोपालगंज: बिहार के गोपालगंज जनपद का हथुआ गांव बांसुरी बनाने के लिए प्रसिद्ध है। यहां सैकड़ों परिवार कई पीढ़ियों से इसी व्यवसाय में जुड़े हैं  और  बांसुरी का निर्माण कर रहे हैं । यहां बनने वाली बांसुरी न सिर्फ बिहार बल्कि देश के अलग-अलग राज्यों में अपनी पहचान बना चुकी है। कला की परख और अच्छी बिक्री के चलते इस इलाके में समृद्धि है।

मो. सागीर अंसारी ने बताया कि बांसुरी बनाने के लिए नरकट की लकड़ी की जरुरत पड़ती है। एक नरकट की कीमत 25 रुपए तक पड़ जाती  है। इसे खरीदकर लाना पड़ता है और एक बांसुरी को तैयार करने में  करीब 35 रुपए खर्च आता है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार मो. सागीर अंसारी के मुताबिक हम लोग बांसुरी बनाकर बिहार के अलावा उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात सहित अन्य राज्यों में भेजते हैं। उन्होंने बताया कि उनके दादा जी कोलकाता से सीखकर आए और हथुआ में बांसुरी बनाना शुरू कर दिया। पहले वे बांसुरी बनाकर गांव, मेला और बाजार में घुम-घूमकर बेचते थे।

उसके बाद गांव के लोगों ने भी दादा जी से बांसुरी बनाने का तरीका सीखा और इसी काम में जुट गए। इस गांव की लड़कियां जब शादी के बाद अपने ससुराल गई  तो वहां भी बांसुरी बनाने लगी। धीरे-धीरे बांसुरी बनाने की कला इलाके में फैल गई। हालांकि इसकी शुरुआत हमारे घर से ही हुई थी। 










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