2020 दिल्ली दंगा मामला: अदालत ने सरकारी वकील के खिलाफ ‘बेबुनियाद आरोपों’ की निंदा की

डीएन ब्यूरो

दिल्ली की एक अदालत ने एक सरकारी वकील के खिलाफ एक पुलिस कर्मी से धन लेने और उसे एक मामले में फंसाने की धमकी देने के, एक वकील के निराधार ‘‘बेबुनियाद आरोपों’’ की निंदा की। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

कड कड डूमा कोर्ट
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नयी दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत ने एक सरकारी वकील के खिलाफ एक पुलिस कर्मी से धन लेने और उसे एक मामले में फंसाने की धमकी देने के, एक वकील के निराधार ‘‘बेबुनियाद आरोपों’’ की निंदा की।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एएसजे) अमिताभ रावत ने 2020 में उत्तर पूर्व दिल्ली दंगों के पीछे कथित बड़ी साजिश से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की।

न्यायाधीश रावत ने कहा कि 26 अगस्त को एक आरोपी की जमानत पर बहस के दौरान वकील महमूद प्राचा और विशेष लोक अभियोजक (एसपीपी) अमित प्रसाद के बीच बहस ‘‘तल्ख’’ हो गई, जिसके परिणामस्वरूप सुनवाई स्थगित कर दी गई।

न्यायाधीश ने कहा कि मामला स्थगित होने के बाद प्राचा ने एक स्थगन आवेदन दायर किया जिसमें उन्होंने फिर से आरोप लगाया कि एसपीपी ने उन्हें इस मामले में फंसाने की धमकी दी थी।

उन्होंने कहा कि एसपीपी ने अपने जवाब में कहा कि प्राचा ने खासकर व्यक्तिगत आरोप लगाए। उन्होंने आरोप लगाया कि वकील ने उनके बारे में निजी जांच की, जिसमें पता चला कि प्रसाद ने गुप्त तरीके से पुलिस से नकदी ली थी।

एएसजे रावत ने एसपीपी के जवाब को सुना। इसके अनुसार अगर ये आरोप सही पाए गए तो वह मामले में बने रहने के योग्य नहीं हैं और एसपीपी की ईमानदारी पर सवाल उठाने वाले प्राचा ‘‘झूठे एवं गंभीर आरोपों’’ को साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर सामग्री रख सकते है।

न्यायाधीश ने कहा कि एसपीपी ने यह भी बताया कि प्राचा इस मामले में किसी आरोपी का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते क्योंकि यह ‘‘हितों का टकराव’’ है और बार काउंसिल के नियमों का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि प्राचा मामले में आरोपियों का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं या नहीं, इस पर कानूनी राय लेने के लिए प्रसाद ने अदालत से इस मामले को दिल्ली उच्च न्यायालय में भेजने का भी अनुरोध किया।

न्यायाधीश ने 25 नवंबर को पारित एक आदेश में कहा, ‘‘अदालत ने आरोपी के वकील और एसपीपी के बीच कहासुनी को शांत कराने की पूरी कोशिश की, लेकिन कोई सार्थक नतीजा नहीं निकला।’’

निजी जांच और हितों के टकराव के आरोपों पर न्यायाधीश ने कहा, ‘‘जब भी आरोपियों के वकील और एसपीपी किसी मामले में पेश होते हैं तो उन्हें बेबुनियाद आरोप लगाने के बजाय अपने मुवक्किल का प्रतिनिधित्व करना चाहिए।’’

न्यायाधीश ने कहा, ‘‘अदालत एसपीपी के खिलाफ बिना किसी सबूत के लगाए गए बेबुनियाद आरोपों की निंदा करती है और खासकर जब इसका मामले के गुण दोष से कोई सरोकार नहीं है।’’










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