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अमोल मजूमदार की कहानी किसी साधारण कोच की नहीं, बल्कि उस खिलाड़ी की है जिसने कभी भारत की जर्सी नहीं पहनी, लेकिन अपने अनुभव और दृष्टिकोण से भारतीय महिला क्रिकेट टीम को 2025 वनडे विश्व कप फाइनल तक पहुंचाया। कमजूमदार ने धैर्य और संघर्ष का परिचय दिया।
अमोल मजूमदार (Img: X)
Mumbai: अमोल मजूमदार की कहानी सिर्फ़ एक कोच की नहीं है। यह उस खिलाड़ी की गाथा है जिसने कभी भारतीय टीम की जर्सी नहीं पहनी, लेकिन उसने वह कर दिखाया जो शायद टीम में खेलने वाले भी नहीं कर पाए। मैदान पर खुद खेल न पाने के बावजूद, उन्होंने दूसरों को मौके दिए और भारत की महिला क्रिकेट टीम को 2005 और 2017 के बाद तीसरी बार वनडे विश्व कप के फाइनल तक पहुँचाया।
मजूमदार का क्रिकेट जीवन इंतजार और धैर्य से भरा रहा। 1988 में 13 साल की उम्र में उन्होंने स्कूल टूर्नामेंट हैरिस शील्ड में बल्लेबाजी का मौका नहीं पाया। उसी दिन सचिन तेंदुलकर और विनोद कांबली ने 664 रनों की ऐतिहासिक साझेदारी की। यह घटना उनके जीवन का प्रतीक बन गई, जहां बैटिंग की बारी हमेशा उनसे दूर रही।
1993 में बॉम्बे (अब मुंबई) के लिए प्रथम श्रेणी क्रिकेट में डेब्यू करते ही उन्होंने 260 रन की पारी खेल डाली, जो उस समय डेब्यू में किसी भी खिलाड़ी की सबसे बड़ी पारी थी। इसके बावजूद, दो दशक से अधिक लंबे करियर में उन्होंने 11,000 से अधिक रन और 30 शतक बनाए, लेकिन भारत के लिए कभी मैच नहीं खेल पाए।
अमोल मजूमदार (Img: X)
2002 तक मजूमदार लगभग हार मान चुके थे। तब उनके पिता ने कहा, "खेल छोड़ना नहीं, तेरे अंदर अभी क्रिकेट बाकी है।" यह एक वाक्य उनकी जिंदगी बदल गया। उन्होंने वापसी की और 2006 में मुंबई को रणजी ट्रॉफी जिताई। इसी दौरान उन्होंने युवा रोहित शर्मा को पहला मौका दिया।
2014 में संन्यास लेने के बाद उन्होंने कोचिंग अपनाई। नीदरलैंड, दक्षिण अफ्रीका और राजस्थान रॉयल्स जैसी टीमों के साथ काम करने के बाद अक्टूबर 2023 में उन्हें भारतीय महिला टीम का मुख्य कोच बनाया गया। आलोचनाओं के बावजूद, दो साल में उन्होंने टीम को विश्व कप फाइनल तक पहुंचाया।
2025 महिला विश्व कप के ग्रुप स्टेज में टीम के खराब प्रदर्शन के बाद मजूमदार ने खिलाड़ियों को सीधे शब्दों में चुनौती दी। उनके स्पष्ट निर्देश और भावनात्मक समर्थन ने टीम की मानसिकता बदल दी। हरमनप्रीत कौर ने कहा कि उनका तरीका दिल से था और टीम ने उसे सही भावना में लिया।
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सेमीफाइनल से पहले ड्रेसिंग रूम में डाली गई लाइन-“बस एक रन ज्यादा चाहिए” ने खेल का दृष्टिकोण बदल दिया। जेमिमा रॉड्रिग्स की 127 और हरमनप्रीत कौर की 89 रनों की पारियों की मदद से भारत ने 339 रनों का पीछा कर सबसे बड़ी सफल चेज़ दर्ज की।
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अमोल ने टीम को केवल तकनीक नहीं सिखाई, बल्कि आत्मविश्वास और विश्वास भी दिया। जिसने कभी बल्लेबाजी का मौका नहीं पाया, वही कोच बनकर पूरी टीम को जीत की बारी दे सका। उनकी कहानी यह दिखाती है कि क्रिकेट सिर्फ खेलने वालों का खेल नहीं, बल्कि उसे बदलने वालों का भी खेल है।