

जनगणना और जाति जनगणना के कई पहलुओं पर वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने सटीक विश्लेषण किया। पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज पर
नई दिल्ली: केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने सोमवार को जनगणना अधिनियम, 1948 के तहत जनगणना और जातीय जनगणना से संबंधित ऑफिशियल गैजेट नोटिफिकेशन यानि कि आधिकारिक अधिसूचना जारी कर दी है। देश को लंबे समय से इस जनगणना का इंतजार था। इसकी सबसे बड़ी खास बात यह है कि आजादी के बाद पहली बार देश में ऐसी जनगणना होगी जिसमें जनसंख्या के साथ जाति का भी पता लगाया जायेगा कि देश में किस जाति के कितने लोग रहते हैं। इससे पहले अंग्रेजों के शासन काल में भारत में वर्ष 1931 में जातिगत जनगणना हुई थी, इसके बाद कभी भी जातिगत जनगणना देश में नहीं हुई।
वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने जनगणना और जाति जनगणना के कई पहलुओं पर विश्लेशण किए। इसके राजनीतिक और सामाजिक मायने आखिर हैं क्या? जातिगत जनगणना की यह पूरी प्रक्रिया कैसे पूरी की जायेगी, कैसे जनगणना होगी, कितने दिनों तक यह अभियान चलेगा। इसके क्या फायदे हैं और क्या नुकसान हैं। आखिर क्या कारण है कि पहले केन्द्र सरकार जातीय जनगणना के खिलाफ थी और अब सरकार तैयार हो गयी है। क्या इसके पीछे विपक्षी दलों का दबाव है जिसके आग सरकार झुक गयी। अभी भी क्यों विपक्ष सरकार की नीयत पर सवाल खड़े कर रहे हैं। क्या इसके पीछे सिर्फ राजनीति है? अगले आम चुनाव से ठीक दो साल पहले होने वाली जनगणना और जातियों की गिनती से देश के सियासी समीकरण में क्या बदलाव होने वाला है। इस बार में सटीक विश्लेशण किए।
जाति जनगणना के अहम पहलु
जनगणना से निकलने वाले जातिगत आंकड़े देश के राजनीतिक परिदृश्य को किस तरह प्रभावित करेंगे सबसे पहले हम बात करते हैं पिछली जनगणना की। देश में बिना जाति वाली जनगणना 2011 में हुई थी लेकिन इसके आंकड़े नहीं जारी किये गये थे। इसे हर 10 साल में किये जाने का नियम है लेकिन 2021 में होनी वाली जनगणना को कोविड महामारी के कारण टाल दिया गया था लेकिन इस बार की जनगणना काफी खास होने वाली है कि क्योंकि इस बार जाति के आंकड़ें भी सामने आय़ेंगे।
बड़े वोट बैंक पर नजर
जातिगत आंकड़े राजनीतिक दलों के वोट बैंक के लिहाज से काफी अहम होंगे इसलिए हर दल इस पर अपनी पैनी निगाह जमाये हुए है। सोमवार को जारी अधिसूचना के बाद जनगणना से जुड़ी विभिन्न एजेंसियां सक्रिय हो गयी हैं। पहले चरण में स्टाफ की नियुक्ति, ट्रेनिंग, फॉर्मेट तैयार होगा, फील्ड वर्क की प्लानिंग की जाएगी. यह पूरी प्रक्रिया दो फेज में पूरी होगी। पहला चरण एक अक्टूबर 2026 तक पूरा किया जाएगा, जबकि दूसरा चरण एक मार्च 2027 तक पूरा होगा। इसके लिए एक मार्च 2027 की मिड नाइट को रेफरेंस डेट माना जाएगा, यानी उस समय देश की जनसंख्या और सामाजिक स्थिति का जो भी आंकड़ा होगा, वही भारत के आधिकारिक रिकॉर्ड में दर्ज किया जाएगा. इस दिन के बाद से आंकड़े सार्वजनिक रूप से सामने आने लगेंगे. दुर्गम क्षेत्रों, हिमालयी और विशेष भौगोलिक हालात वाले राज्यों जैसे जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और उत्तराखंड में यह प्रक्रिया अन्य राज्यों से पहले अक्टूबर 2026 तक पूरी कर ली जाएगी. इन इलाकों में मौसम की कठिनाइयों और दुर्गम क्षेत्रों को देखते हुए यह फैसला लिया गया है। इन राज्यों के लिए एक अक्टूबर 2026 को रेफरेंस डेट माना जाएगा। इस बार जनगणना की पूरी प्रक्रिया डिजिटल तकनीक पर आधारित होगी, जिसमें मोबाइल ऐप्स और स्व-गणना का विकल्प भी शामिल है। इसके लिए सबसे पहले प्रोफॉर्मा तैयार किया जायेगा. इसमें हाउसिंग सेंसस और पॉपुलेशन सेंसस के लिए प्रश्नावली यानि कि प्रोफॉर्मा को अंतिम रूप दिया जाना शामिल है।
आवासीय स्थिति और प्रवास से जुड़े सवाल
इस जनगणना में करीब 34 लाख कर्मचारियों की फौज को मैदान में उतारने का प्लान है, इनकी बाकायदे ट्रेनिंग होगी और इसके बाद पर्यवेक्षक भी नियुक्त किए जाएंगे. इनका प्रशिक्षण करीब दो महीने तक चलेगा, जिसमें डिजिटल डिवाइस और मोबाइल ऐप्स का इस्तेमाल करना सिखाया जाएगा. डिजिटल गणना के लिए सॉफ्टवेयर में जाति, उप-जाति और OBC के लिए नए कॉलम और मेन्यू शामिल किए जाएंगे। हाउसिंस सेंसस के प्रोसेस के दौरान घरों की लिस्ट तैयार की जाती है और आवासीय स्थिति, सुविधाओं, और संपत्ति से संबंधित जानकारी जमा कर ली की जाती है। इस प्रकिया में गणनाकार घर-घर जाकर परिवारों से सवाल पूछते हैं। जैसे घर का इस्तेमाल आवासीय/वाणिज्यिक किस तरह से करते हैं, पेयजल की उपलब्धता, शौचालय, बिजली, और अन्य सुविधाएं, संपत्ति का स्वामित्व, वाहनों की संख्या का डेटा जमा किया जाता है. इसके बाद पॉपुलेशन सेंसस की गणना की जाएगी, जिसका मकसद हर व्यक्ति की जनसांख्यिकीय, सामाजिक और आर्थिक जानकारी जमा करना है। गणनाकार दोबारा घर-घर जाकर राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) और जनगणना से संबंधित सवाल पूछते हैं। इस बार 30 सवाल पूछे जाने की संभावना है, जिनमें नाम, आयु, लिंग, जन्म तिथि, वैवाहिक स्थिति, शिक्षा, रोजगार, धर्म, जाति, और उप-संप्रदाय, परिवार के मुखिया के साथ रिश्ता, आवासीय स्थिति और प्रवास से जुड़े सवाल शामिल होंगे।
हिंदी हार्टलैंड से साउथ तक के समीकरण
देश में आजादी के बाद पहली बार जनगणना के साथ-साथ जातिगत जनगणना भी होगी, जिसमें OBC, SC, ST, और सामान्य श्रेणी की सभी जातियों की गणना की जाएगी। इसके तहत सामाजिक-आर्थिक स्थिति जैसे आय, शिक्षा, रोज़गार का डेटा भी जमा किया जाएगा. यह डेटा को सरकार की योजनाओं, आरक्षण नीतियों और सामाजिक न्याय से जुड़ी योजनाओं का आधार बनेगा. केंद्रीय वित्त आयोग राज्यों को अनुदान देने के लिए भी इस डेटा का इस्तेमाल करता है. यह डेटा सामाजिक-आर्थिक नीतियों और आरक्षण के लिए बहुत ही अहम होगा। इससे हिंदी हार्टलैंड से साउथ तक के समीकरण बदल सकते हैं। डिजिटल प्रोसेस के अलावा इस बार जनगणना में जातिगत गणना भी शामिल होगी। इससे पहले भी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से जुड़ी जानकारी मांगी जाती थी लेकिन अन्य जातियों के बारे में जनगणना के दौरान जानकारी नहीं ली जाती थी. लेकिन इस बार हर व्यक्ति को अपनी जाति बताने का ऑप्शन दिया जाएगा, जो कि लंबे वक्त से चली आ रही मांग का हिस्सा है। यह समूचा अभियान 21 महीने तक चलेगा।
जनगणना का प्राइमरी डेटा मार्च 2027 में जारी
जनगणना की पूरी प्रक्रिया एक मार्च 2027 तक खत्म हो जाएगी, जनगणना का प्राइमरी डेटा मार्च 2027 में जारी हो सकता है, जबकि डिटेल डेटा जारी होने में दिसंबर 2027 तक का वक्त लगेगा. अब हम आपको एक और महत्वपूर्ण बात बताते हैं। जनगणना का काम पूरा होने के बाद लोकसभा और विधानसभा सीटों का परिसीमन का काम प्रारंभ होगा। यह काम 2028 तक शुरू हो सकता है. इस दौरान महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण भी लागू किया जा सकता है। यानी 2029 के लोकसभा चुनाव से पहले-पहले महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों की तस्वीर साफ हो सकती है. जनगणना के बाद परिसीमन आयोग का गठन किया जाएगा ताकि आबादी के हिसाब से लोकसभा सीटों का बंटवारा हो सके। इसे लेकर दक्षिण के राज्यों में परेशानी बढ़ी हुई है क्योंकि वहां उत्तर भारतीय राज्यों के मुकाबले आबादी कम है। ऐसे में उन्हें डर हैं कि सीटें घट जाने से लोकसभा में उनका प्रतिनिधित्व कम हो सकता है. ऐसे में सरकार को परिसीमन पर काफी विचार-विमर्श करना होगा. हालांकि सरकार ने भरोसा दिया है कि परिसीमन की प्रक्रिया में दक्षिणी राज्यों की चिंताओं का ध्यान रखा जाएगा। राजनीतिक दलों के वोट बैंक के लिहाज से यह जातीय जनगणना बेहद अहम है। इसलिए यहां आपको यह बताया बेहद जरुरी है कि पहले केन्द्र सरकार जातिय जनगणना के खिलाफ थी और अब सरकार तैयार हो गयी है। इसके लिए कांग्रेस सहित विभिन्न विपक्षी दल सड़क से लेकर संसद तक सरकार को घेरते थे। विपक्षी दल इसलिए भी ज्यादा दबाव बनाने में सफल रहे क्योंकि देश के दो राज्यों बिहार और तेलंगानी की राज्य सरकारों ने अपने वहां जाति जनगणना करा दी।
आरक्षण की सीमा बढ़ाने की मांग
इसके बाद से केन्द्र सरकार पर दबाव बढ़ गया था। अब जब केन्द्र सरकार ने अधिसूचना जारी कर दी है तब कांग्रेस की प्रतिक्रिया सामने आयी है। कांग्रेस का कहना है कि लगातार मांग और दबाव के चलते ही प्रधानमंत्री को जातिगत जनगणना की मांग के आगे झुकना पड़ा। संसद हो या सुप्रीम कोर्ट - मोदी सरकार ने जातिगत जनगणना के विचार को सिरे से खारिज कर दिया था। और अब से ठीक 47 दिन पहले, सरकार ने खुद इसकी घोषणा की। कांग्रेस ने एक बार फिर सवाल खड़ा किया है कि कहा है कि आज की राजपत्र अधिसूचना में जातिगत गणना का कोई उल्लेख नहीं है। तो क्या यह फिर वही यू-टर्न है, या फिर आगे इसके विवरण सामने आयेंगे? कांग्रेस की मांग है कि जनगणना में तेलंगाना राज्य वाला मॉडल अपनाया जाए यानी सिर्फ जातियों की गिनती ही नहीं बल्कि जातिवार सामाजिक और आर्थिक स्थिति से जुड़ी विस्तृत जानकारी भी जुटाई जानी चाहिए।
नीति निर्माण में पारदर्शिता सुनिश्चित
वहीं पर मोदी सरकार का मानना है कि जनगणना का यह कदम सामाजिक और आर्थिक समानता को बढ़ावा देगा, साथ ही नीति निर्माण में पारदर्शिता सुनिश्चित करेगा। यूं तो जातिगत जनगणना के कई फायदे हैं, लेकिन इसके संभावित नुकसान और जोखिम भी कम नहीं हैं। कईयों का मानना है कि यह सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर कई चुनौतियां पैदा कर सकता है। देश में जाति के आधार पर भेदभाव से जुड़ी समस्याओं की जड़ें बेहद गहरी है। जातिगत जनगणना समाज में पहले से मौजूद जातिगत विभाजन को और गहरा कर सकती है। जातिगत जनगणना से कुछ समुदायों की जनसंख्या अपेक्षा से अधिक हो सकती है, जिससे आरक्षण की सीमा बढ़ाने की मांग उठ सकती है। कुल मिलाकर यह जनगणना भारत की राजनीति को और भी अधिक गहरे रूप से प्रभावित करेगा। सामाजिक स्तर पर भी इसके दूरगामी नतीजे देखने को मिलेंगे।