लोकसभा कार्यवाही: नाराज़ होकर इस सांसद ने कह दी बड़ी बात, बोले- सांसदों से करो वसूली

लोकसभा सत्र के दौरान केवल 37 घंटे चर्चा हो सकी, जबकि 120 घंटे निर्धारित थे। इस बीच, दमन और दीव के निर्दलीय सांसद उमेश पटेल ने मांग की कि जब संसद न चले, तो सांसदों का वेतन और भत्ते रोक दिए जाएं। उन्होंने कहा कि जब जनता का काम नहीं हो रहा, तो उसे सांसदों के खर्च का बोझ क्यों उठाना चाहिए?

Post Published By: Mrinal Pathak
Updated : 21 August 2025, 5:26 PM IST
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New Delhi: लोकसभा के हालिया सत्र के लिए कुल 120 घंटे चर्चा निर्धारित किए गए थे, लेकिन वास्तविकता में केवल 37 घंटे ही चर्चा हो सकी। इनमें से भी अधिकांश समय 'ऑपरेशन सिंदूर' जैसे मुद्दों पर चर्चा में खर्च हुआ। उसके अलावा अधिकांश सत्र हंगामे और विपक्ष-सत्तापक्ष के बीच खींचतान की भेंट चढ़ गया। इसके चलते कई अहम विधेयक बिना पर्याप्त बहस के ही पारित हो गए, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।

सदन न चलने पर सांसदों का रुकेगा वेतन?

इस स्थिति से आक्रोशित दमन और दीव के निर्दलीय सांसद उमेश पटेल ने संसद भवन परिसर में अनोखा विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने एक बैनर के साथ अपनी मांगों को सार्वजनिक किया, जिस पर लिखा था "माफी मांगो, सत्ता पक्ष और विपक्ष माफी मांगें।" उनका स्पष्ट कहना था कि जब संसद का सत्र नहीं चल रहा है, तब सांसदों को वेतन और अन्य भत्ते नहीं मिलने चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि जो खर्च इस निष्क्रिय सत्र पर हुआ है, उसकी भरपाई सांसदों की जेब से होनी चाहिए।

सत्र खर्च जनता क्यों उठाए?

उमेश पटेल का तर्क था कि जब संसद नहीं चलती, तो जनता के पैसे का अपव्यय होता है। ऐसे में यह जिम्मेदारी सांसदों की बनती है कि वे न केवल माफी मांगें, बल्कि इस खर्च की भरपाई भी करें। उन्होंने सवाल उठाया कि आम आदमी को टैक्स चुकाकर ऐसी संसद की कार्यवाही का खर्च क्यों उठाना चाहिए, जो उसके मुद्दों पर चर्चा ही न कर सके?

पहले भी रख चुके हैं यह मांग

यह पहली बार नहीं है जब उमेश पटेल ने ऐसी मांग की हो। लगभग दो हफ्ते पहले भी उन्होंने यही मुद्दा उठाया था कि संसद न चलने पर सांसदों को भत्ता नहीं मिलना चाहिए। उन्होंने सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों पर आरोप लगाया कि उनके आपसी टकराव और राजनीतिक अहंकार के कारण सदन बाधित होता है। जबकि विपक्षी दल सरकार को इसके लिए जिम्मेदार ठहराते हैं, उमेश पटेल का रुख दोनों ही पक्षों के खिलाफ सख्त नजर आता है।

जनता के प्रति जिम्मेदारी की मांग

उमेश पटेल की इस मांग को लेकर सोशल मीडिया पर भी चर्चा शुरू हो गई है। कई लोग इसे एक साहसिक पहल मान रहे हैं, तो कुछ इसे राजनीतिक स्टंट बता रहे हैं। फिर भी, यह मुद्दा आम जनता की सोच को जरूर दर्शाता है कि जब काम नहीं हो रहा, तो सैलरी क्यों मिलनी चाहिए?

छीड़ गई नई बहस

ऐसे में अब इस पूरे घटनाक्रम ने संसद के कामकाज और जवाबदेही पर एक नई बहस छेड़ दी है। कई लोग उमेश पटेल की मांग को जायज बताते हुए सांसदों की आलोचना कर रहे हैं।

 

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