

सुप्रीम कोर्ट एक दंपत्ति के बीच पारिवारिक विवाद की सुनवाई कर रही थी, जिसमें उनके दो नाबालिग बच्चों का भविष्य भी दांव पर है। इस दौरान कोर्ट ने विवाह संस्था, भावनात्मक जुड़ाव और बच्चों के हितों को लेकर अहम टिप्पणियां कीं।
सुप्रीम कोर्ट में पति-पत्नी के विवाद पर सुनवाई (फोटो सोर्स गूगल)
New Delhi: सुप्रीम कोर्ट एक दंपत्ति के बीच पारिवारिक विवाद की सुनवाई कर रही थी, जिसमें उनके दो नाबालिग बच्चों का भविष्य भी दांव पर है। इस दौरान कोर्ट ने विवाह संस्था, भावनात्मक जुड़ाव और बच्चों के हितों को लेकर अहम टिप्पणियां कीं।
सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा कि पति-पत्नी का एक-दूसरे पर भावनात्मक और सामाजिक रूप से निर्भर रहना स्वाभाविक है। जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने टिप्पणी की, "कोई भी यह नहीं कह सकता कि मैं अपने जीवनसाथी पर निर्भर नहीं रहना चाहता। यह असंभव है। शादी का अर्थ ही आपसी सहयोग और साथ है।"
जस्टिस नागरत्ना ने कहा, "छोटे बच्चों को टूटे हुए परिवार का बोझ क्यों झेलना पड़े?" उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि पति-पत्नी आपसी मतभेद दूर कर एक साथ रहते हैं, तो यह बच्चों के लिए सबसे अच्छा होगा। कोर्ट ने दोनों पक्षों से आपसी बातचीत और समझौते के ज़रिए समाधान निकालने की अपील की।
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पत्नी ने कहा कि "एक हाथ से ताली नहीं बज सकती", जिस पर बेंच ने दो टूक कहा कि यह बात दोनों पक्षों पर समान रूप से लागू होती है।
मामले में बताया गया कि पति वर्तमान में सिंगापुर में हैं, जबकि पत्नी हैदराबाद में रह रही हैं। पत्नी ने आरोप लगाया कि सिंगापुर में पति का व्यवहार उसके लिए असहनीय था, और अब वह बिना किसी आर्थिक मदद के बच्चों की परवरिश कर रही है। वहीं, पति की ओर से कहा गया कि दोनों के पास सिंगापुर में अच्छी नौकरियां थीं, लेकिन पत्नी बच्चों के साथ लौटने को तैयार नहीं है।
कोर्ट ने पति को निर्देश दिया कि वह पत्नी और बच्चों के लिए पाँच लाख रुपये की राशि जमा करे। साथ ही, बच्चों के जन्मदिन पर पिता को उनके साथ समय बिताने और सप्ताहांत में अंतरिम कस्टडी का अधिकार देने का आदेश दिया गया।पत्नी द्वारा यह कहने पर कि वह किसी पर निर्भर नहीं रहना चाहती, जस्टिस नागरत्ना ने कहा, "अगर ऐसा है तो शादी क्यों की? पत्नी हमेशा अपने पति पर भावनात्मक रूप से निर्भर रहती है।"