New Delhi: भारत ने ड्रोन टेक्नोलॉजी में तेजी से कदम बढ़ाए हैं और उन प्रगतियों में सबसे प्रमुख नाम है देश का उन्नत कॉम्बैट ड्रोन रुस्तम‑2, जिसे वैश्विक रूप से Tapas‑BH 201 के नाम से भी जाना जाता है। शुरुआती दिनों में सिर्फ निगरानी के काम आने वाले ऐसे प्लेटफार्म अब सशस्त्र रूप में भी तैयार हैं और सीमाओं पर भारत की युद्ध क्षमता में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। रुस्तम‑2 की विशेषताएँ और क्षमताएँ उसे भारत का सबसे खतरनाक ड्रोन बनाती हैं- न सिर्फ निगरानी में बल्कि लक्ष्यों पर सटीक हमला करने में भी।
दुश्मनों की हर हरकत पर रहेगी पैनी नजर
रुस्तम‑2 एक MALE (Medium Altitude Long Endurance) श्रेणी का यूसीएवी है, जिसका डिज़ाइन लंबी उड़ान और उच्च सतर्कता के लिए किया गया है। इसकी प्रमुख विशेषताओं में लंबी अवधि तक हवा में बने रहने की क्षमता, ऊँची क्रूज़िंग ऊँचाई और हाई‑रेज़ोल्यूशन सेंसर सिस्टम शामिल हैं। रुस्तम‑2 लगातार 24 घंटे से अधिक समय तक उड़ान भर सकता है और यह एयरबेस से दूरी पर विस्तृत संचालन कर सकता है- इस कारण सीमा क्षेत्र में सतत निगरानी और त्वरित प्रतिक्रिया संभव होती है।
ऊँचाई की बात करें तो रुस्तम‑2 लगभग 35,000 फीट तक ऑपरेट कर सकता है, जिससे यह कई पारंपरिक रडार और दृष्टि प्रणालियों से उम्रभर छिपा नहीं रह पाता और अधिक सुरक्षित ऑपरेशन देता है। इसमें लगे उच्च क्षमता वाले इलेक्ट्रो‑ऑप्टिकल/इन्फ्रारेड (EO/IR) सेंसर दिन‑रात और किसी भी मौसम में लक्ष्यों की पहचान तथा ट्रैकिंग कर सकते हैं। साथ ही राडार‑सेंसिंग और काउंटर‑इंटेलिजेंस क्षमताएँ भी इसे अधिक उपयोगी बनाती हैं।
सबसे खतरनाक ड्रोन तैनात
रुस्तम‑2 की सबसे चिंताजनक विशेषता यह है कि इसे हथियारों से लैस किया जा सकता है। इसमें प्रिसिशन‑गाइडेड बम और मिसाइलें तैनात की जा सकती हैं, जिससे यह न केवल दुश्मन की गतिविधियों पर नजर रखता है बल्कि आवश्यक होने पर सटीक हवाई हमले भी कर सकता है- बिना किसी पायलट के जोखिम के। यही वजह है कि सीमाई इलाकों पर रुस्तम‑2 के संचालन से दुश्मन की योजनाओं और ठिकानों पर दबाव बढ़ता है और उनकी चालों पर रोक लगती है।

DRDO का घातक हथियार
रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और सशस्त्र बलों के साथ सहयोग से विकसित यह प्लेटफॉर्म भारत की सामरिक क्षमताओं को नई दिशा दे रहा है। रुस्तम‑2 का उपयोग सीमा‑पार गतिविधियों, अर्द्ध‑सैनिक अभियानों, बख्तरबंद इकाइयों की निगरानी और उच्च‑जोखिम लक्ष्यों की त्वरित नाशिनी कार्रवाई के लिए किया जा रहा है। इसके अलावा, डेटा लिंक और कमांड‑कंट्रोल सिस्टम इसे वास्तविक‑समय इंटेलिजेंस और जटिल निशानदेही कार्यों में प्रभावी बनाते हैं।
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भारत रुस्तम‑2 तक सीमित नहीं है- भविष्य की योजनाओं में और भी उन्नत प्लेटफॉर्म शामिल हैं। इनमें Ghatak Stealth UCAV जैसे स्टेल्थ क्षमतावाले युद्धक ड्रोन हैं, जो रडार‑डिटेक्शन को चुनौती देंगे और उच्च‑गोपनीयता में गहरे हमलों की गुंजाइश पैदा कर सकते हैं। इन परियोजनाओं के सफल होने पर भारत न सिर्फ क्षेत्रीय बल्कि वैश्विक स्तर पर ड्रोन टेक्नोलॉजी में अग्रसर माना जाएगा।
आसमान से बरसती है तबाही
हालाँकि, उन्नत ड्रोन क्षमताएँ रणनीतिक फायदे देती हैं, पर इनसे जुड़े नैतिक, कानूनी और सुरक्षा‑संबंधी सवाल भी उठते हैं- जैसे निगरानी की सीमाएं, नागरिक हानियों की संभावनाएँ और सरहदी घुसपैठ के रूपों में बदलाव। इसलिए इन तकनीकों का उपयोग अंतरराष्ट्रीय कानून, नियमों और मानवीय दृष्टिकोण के अनुरूप होना आवश्यक है।
रुस्तम‑2 (Tapas‑BH 201) ने भारत की सामरिक तस्वीर बदल दी है- यह केवल एक निगरानी उपकरण नहीं, बल्कि सटीक हमले और निरंतर क्षेत्रीय दबाव के लिए एक शक्तिशाली साधन बन चुका है। सीमा पर भारतीय सुरक्षा संरचना में इसकी मौजूदगी से प्रतिद्वंद्वी देशों के लिए रणनीतिक‑विकल्प सीमित हुए हैं और भारतीय सेना को युद्धक्षमता में नई मजबूती मिली है। भविष्य में जैसे‑जैसे और उन्नत प्लेटफॉर्म सक्रिय होंगे, देश की सामरिक क्षमताएँ और भी व्यापक होंगी।