

ग्रेटर नोएडा स्थित शारदा यूनिवर्सिटी एक बार फिर विवादों के घेरे में है। बीडीएस सेकंड ईयर की छात्रा ज्योति की आत्महत्या ने न केवल यूनिवर्सिटी की आंतरिक व्यवस्था को कटघरे में खड़ा कर दिया है, बल्कि भारत के उच्च शिक्षा संस्थानों में छात्र-कल्याण की सच्चाई को भी उजागर कर दिया है।
शारदा यूनिवर्सिटी आत्महत्या का मामला
Greater Noida: ग्रेटर नोएडा स्थित शारदा यूनिवर्सिटी एक बार फिर विवादों के घेरे में है। बीडीएस सेकंड ईयर की छात्रा ज्योति की आत्महत्या ने न केवल यूनिवर्सिटी की आंतरिक व्यवस्था को कटघरे में खड़ा कर दिया है, बल्कि भारत के उच्च शिक्षा संस्थानों में छात्र-कल्याण की सच्चाई को भी उजागर कर दिया है।
ज्योति ने यूनिवर्सिटी के गर्ल्स हॉस्टल "मंडेला" में फांसी लगाकर जान दे दी। उसके कमरे से मिले सुसाइड नोट ने माहौल को और भी सनसनीखेज बना दिया। इस नोट में उसने पीसीपी और डेंटल मटेरियल विभाग के दो प्रोफेसरों और यूनिवर्सिटी प्रबंधन पर गंभीर आरोप लगाए हैं—मानसिक उत्पीड़न, झूठे आरोप और चरित्र पर हमला।
2009 में स्थापित शारदा यूनिवर्सिटी ने खुद को एक निजी डेमी यूनिवर्सिटी के रूप में प्रोजेक्ट किया है, जो मेडिकल, इंजीनियरिंग, लॉ, और मैनेजमेंट सहित कई क्षेत्रों में शिक्षा प्रदान करती है। लेकिन यह पहला मौका नहीं है जब इस यूनिवर्सिटी में छात्र प्रताड़ना के आरोप लगे हों। पूर्व में भी छात्रों द्वारा फीस, अनुशासन और दबाव को लेकर प्रदर्शन होते रहे हैं, लेकिन उन पर कोई ठोस नीति सामने नहीं आई।
ऐसे मामलों में यूजीसी और डीसीआई जांच हो सकती है। यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (UGC) और डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया (DCI) इस घटना का खुद संज्ञान लेकर मान्यता पर विचार कर सकती है। यदि छात्र कल्याण तंत्र विफल पाया गया, तो यूनिवर्सिटी पर मानसिक स्वास्थ्य सुरक्षा नीतियों की अनदेखी के लिए नोटिस और फाइन भी लग सकता है। जिसे मानसिक स्वास्थ्य ऑडिट कहा जाता है। प्रबंधन की जवाबदेही तय करने के लिए आंतरिक जांच कमेटी के साथ-साथ स्वतंत्र जांच समिति का गठन अनिवार्य हो सकता है। जोकि गवर्निंग बॉडी की जिम्मेदारी होती है।
सुसाइड के लिए उकसाने के तहत IPC की धारा 306 लगाई गई है। यदि मानसिक उत्पीड़न और झूठे आरोप साबित होते हैं तो धारा 504, और 505 भय पैदा करने वाली अफवाह फैलाना को लेकर ये धारा भी लग सकती हैं। साथ ही यदि जांच में आरोप सिद्ध होते हैं, तो संबंधित प्रोफेसरों की सेवा समाप्त की जा सकती है। प्रबंधन पर छात्र कल्याण की लापरवाही के लिए शैक्षणिक लापरवाही और आपराधिक अनदेखी के तहत केस बन सकता है।
IPC 306 आत्महत्या के लिए उकसाना, IPC 504 जानबूझकर मानसिक चोट पहुँचाना, IPC 505 अफवाह या झूठे आरोप से भय फैलाना और IPC 120B साजिश की धाराएं (यदि समूह में उत्पीड़न साबित हुआ तो ये धाराएं लगाई जा सकती है।
इस हादसे के बाद शारदा यूनिवर्सिटी की छवि पर गहरा असर देखने को मिल सकता है। छात्रों और अभिभावकों के बीच भरोसे की कमी, जिससे नए एडमिशन पर असर पड़ सकता है। DCI जैसे नियामक संस्थान यूनिवर्सिटी की काउंसिलिंग और मान्यता को लेकर सख्त रुख अपना सकते हैं। आने वाले दिनों में छात्र राजनीति तेज हो सकती है, जिससे कैंपस का माहौल अशांत रहने की आशंका है।
क्या भारत के बड़े निजी संस्थानों में "शिक्षा" से ज़्यादा "दबाव" हावी हो चुका है? क्या सिर्फ इंफ्रास्ट्रक्चर और ब्रांडिंग से एक यूनिवर्सिटी "सुरक्षित" कहलाती है, या फिर छात्रों की भावनात्मक सुरक्षा भी उतनी ही ज़रूरी है? ऐसे में इस हादसे का दोषि किसे ठहराया जाए?
वही आने वाले दिनों में ये देखने वाली बात होगी की आखिर ये मामला आगे क्या मोड़ लेता है। क्या इस छात्रा के सुसाइट के बाद कोई और बड़ा राज खुल सकता है?