

डिप्रेशन आज के युवा वर्ग के लिए सबसे बड़ी मानसिक चुनौती बनता जा रहा है। बार-बार सोचने की आदत यानी ओवर थिंकिंग दिमाग को थका देती है और मानसिक तनाव बढ़ाती है। इसे रोकने के लिए माइंडफुलनेस और खुलकर बातचीत सबसे प्रभावी तरीका हैं। मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल अब प्राथमिकता होनी चाहिए।
ओवर थिंकिंग और डिप्रेशन
New Delhi: हर साल 10 अक्टूबर को दुनिया भर में विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाना और यह समझाना है कि मानसिक बीमारियां भी उतनी ही गंभीर होती हैं जितनी शारीरिक बीमारियां। लेकिन आज के समय में, खासकर युवाओं के बीच मानसिक स्वास्थ्य की समस्या तेजी से बढ़ती जा रही है। डिप्रेशन, एंग्जायटी, स्ट्रेस जैसी मानसिक परेशानियां युवाओं की जिंदगी को प्रभावित कर रही हैं। आइए समझते हैं कि क्यों युवाओं में मानसिक स्वास्थ्य की ये समस्याएं बढ़ रही हैं और इन्हें कैसे रोका जा सकता है।
आज का युवा तेज रफ्तार जिंदगी जी रहा है। करियर की चिंता, सोशल मीडिया का दबाव, पढ़ाई और नौकरी की प्रतिस्पर्धा, परिवार की उम्मीदें, रिश्तों की जटिलताएं- ये सभी कारण मानसिक तनाव को जन्म देते हैं। युवाओं की एक बड़ी समस्या है ओवर थिंकिंग यानी किसी बात को बार-बार सोचते रहना। जब कोई चिंता या समस्या मन में आती है, तो उसे बार-बार याद करके दिमाग उस पर उलझ जाता है। इससे चिंता और तनाव बढ़ जाता है।
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सोशल मीडिया ने युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर बड़ा असर डाला है। इंस्टाग्राम, फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म पर परफेक्ट जिंदगी दिखाने का चलन है। इससे युवा खुद को दूसरों से तुलना करने लगते हैं और जब वे अपनी असली जिंदगी को देखते हैं, तो निराशा और खालीपन महसूस करते हैं। इससे आत्मसम्मान गिरता है और डिप्रेशन की स्थिति बन सकती है।
ओवर थिंकिंग
इसके अलावा, युवाओं में नींद की कमी, अस्वास्थ्यकर खान-पान, और शारीरिक गतिविधियों का अभाव भी मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालते हैं। डिजिटल उपकरणों (मोबाइल, लैपटॉप) के ज्यादा इस्तेमाल से न केवल आंखों पर असर पड़ता है, बल्कि दिमाग भी थक जाता है। लगातार स्क्रीन के सामने बैठने से मानसिक थकान होती है, जो चिंता और डिप्रेशन को बढ़ावा देती है।
साथ ही, मानसिक स्वास्थ्य को लेकर समाज में अभी भी कलंक और भ्रांतियां मौजूद हैं। बहुत से लोग मानसिक समस्याओं को कमजोरी समझते हैं और मानसिक चिकित्सक के पास जाने से कतराते हैं। इस वजह से समय पर इलाज नहीं हो पाता और समस्या गंभीर हो जाती है।
यह जानना बहुत जरूरी है कि मानसिक स्वास्थ्य कमजोरी नहीं, बल्कि हमारी ताकत का हिस्सा है। जैसे शरीर बीमार हो सकता है, वैसे ही दिमाग भी बीमार हो सकता है। लेकिन इसका इलाज संभव है, यदि हम सही समय पर कदम उठाएं।
सबसे पहला और आसान उपाय है खुलकर बात करना। अपनी भावनाओं और परेशानियों को परिवार या दोस्तों के साथ साझा करना मानसिक बोझ को हल्का कर सकता है। अक्सर हम अपनी समस्याओं को खुद में दबाकर रखते हैं, जिससे मानसिक तनाव बढ़ता है। बात करने से मन हल्का होता है और समाधान के रास्ते खुलते हैं।
दूसरा उपाय है मेडिटेशन और योग। ये दोनों मानसिक शांति और तंदुरुस्ती के लिए बहुत फायदेमंद हैं। नियमित मेडिटेशन से दिमाग की सक्रियता बढ़ती है और चिंता कम होती है। योग से न केवल शरीर बल्कि मन भी स्वस्थ रहता है।
युवाओं की मानसिक परेशानी
तीसरा, पर्याप्त नींद लेना और संतुलित आहार लेना जरूरी है। नींद की कमी से दिमाग थका रहता है और तनाव बढ़ता है। हेल्दी खाना दिमाग को ऊर्जा देता है और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार करता है।
चौथा, डिजिटल डिटॉक्स यानी मोबाइल, लैपटॉप और सोशल मीडिया से कुछ समय दूर रहना चाहिए। इससे दिमाग को आराम मिलता है और आंखों पर भी दबाव कम होता है।
अगर समस्या गंभीर हो, तो मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए। आज कई ऐसे विशेषज्ञ और हेल्पलाइन उपलब्ध हैं जो मानसिक स्वास्थ्य संबंधी सहायता देते हैं। मानसिक समस्या का इलाज समय पर करने से बेहतर परिणाम मिलते हैं।
ओवर थिंकिंग तब होती है जब हम किसी समस्या या स्थिति के बारे में बार-बार सोचते रहते हैं, पर कोई ठोस समाधान नहीं निकाल पाते। यह दिमाग के लिए बहुत थकाने वाला और तनावजनक होता है। अक्सर यह आदत तब बनती है जब हम अपने बारे में बहुत ज्यादा चिंता करने लगते हैं या असफलताओं से डरते हैं।
इसे रोकने के लिए सबसे पहले जरूरी है कि आप अपने विचारों को नियंत्रित करना सीखें। जब आप देखें कि कोई बात बार-बार मन में आ रही है, तो उस वक्त खुद को व्यस्त करें, कोई नई गतिविधि करें या ध्यान लगाएं। मेडिटेशन और माइंडफुलनेस प्रैक्टिस से दिमाग को शांत करना सीखें। साथ ही, अपनी चिंताओं को लिखने का भी अभ्यास करें, जिससे आप उन्हें बाहर निकाल सकें। यह भी जरूरी है कि आप खुद को याद दिलाएं कि हर बात पर ज्यादा सोचने से समाधान नहीं आता, बल्कि इससे तनाव बढ़ता है। समस्या को हल्के-फुल्के नजरिए से देखना सीखें और जरूरत पड़े तो मदद मांगने से न डरें।
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